बैंक स्टेटमेंट की शब्दावली को समझें | छह महीने ते कोई लेनदेन न होने पर खाता अस्थायी रूप से निष्क्रिय हो जाता है | | दीप्ता जोशी / July 28, 2010 | | | | |
काम के बाद बैंक खाते के स्टेटमेंट पर हमारी नजर शायद ही दोबारा कभी पड़ती हो। सालाना आयकर का हिसाब लगाने के लिए जब हमें इसे चार्टर्ड अकाउंटेंट को देना होता है, तो हम इस पर एक बार फिर गौर करते हैं, लेकिन यह एक महत्त्वपूर्ण कागजात है जो हर महीने या तीन महीने पर आपके पास आता है।
वित्तीय योजनाकार विद्या पटेल ने कहा, 'बैंक खाते के स्टेटमेंट में छोटे शुल्कों का भी जिक्र होता है जो आप तमाम लेनदेनों के दौरान चुकाते हैं। कुछ मामलों में ये भुगतान मिलकर एक बड़ी राशि बन जाते हैं।' खाते की संक्षिप्त जानकारी में शुरुआती बैलेंस, जमा की गई राशि, निकाली गई राशि और अंतिम बचत की जानकारी मिलती है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं है। बुनियादी स्तर से शुरुआत करें।
स्टेटमेंट के सबसे ऊपर
कस्टमर आईडी और खाता संख्या: यह आपके लिए विशेष नंबर होते हैं। बैंक में एक से ज्यादा खाते होने पर भी आपको एक आईडी दी जाती है। हालांकि, सभी खातों की खाता संख्या अलग-अलग होती है।
खाते की जानकारी: आपका खाता बचत है या चालू, इसकी जानकारी दी होती है। खाते की स्थिति: जिस खाते से सक्रिय रूप से लेनदेन होते रहते हैं उसे 'रेग्युलर' कहा जाता है। छह महीने ते कोई लेनदेन न होने पर खाता अस्थायी रूप से निष्क्रिय हो जाता है। खाता को फिर से चालू करने के लिए संबंधित बैंक शाखा से संपर्क करना होता है।
ओवरड्राफ्ट सुविधा: खाते की प्रकृति या सावधि जमा के मुताबिक ओवरड्राफ्ट राशि का जिक्र होता है। लाभार्थी: आपके खाते के लाभार्थी का नाम स्टेटमेंट की शुरुआत में लिखा होता है। लाभार्थी के नाम का जिक्र जरूरी होता है क्योंकि खाताधारी की आकस्मिक मृत्यु या किसी दुर्घटना के वक्त कोई दावा करने में मुश्किल हो सकती है।
विस्तृत जानकारी: स्टेटमेंट में दिए गए ब्योरे पर नजर डालें। यह आपको लेनदेन की विस्तृत जानकारी देगा जिसमें तारीख सहित निकासी, जमा और बैलेंस का जिक्र होता है। अगर लेनदेन चेक के जरिए किए गए हों, तो उनके नंबर भी इसमें दिए होते हैं।
किसी एक लेनदेन का विवरण देने के मामले में विभिन्न बैंकों की शब्दावली अलग-अलग होती है। कुछ बैंक ग्राहकों का ज्यादा ख्याल रखते हैं और स्टेटमेंट के आखिर में शब्दों और संकेतों का मतलब भी बताते हैं। वहीं, दूसरे बैंक आपके शब्द ज्ञान की परीक्षा लेते हैं।
'सीएचक्यु डीईपी-एमआईसीआर सीएलजी-सीएलईएआरआई' के जरिए आपके खाते में किसी चेक जमा को दर्शाया जाता है। कुछ बैंक चेक इश्यु और संबंधित बैंक की जानकारी भी देते हैं। मसलन संक्षिप्त जानकारी 'एक्सवाईजेड इंडिया एचडीएफसी' हो सकती है। आपका चार्टर्ड एकाउंटेंट इस जानकारी से खुश हो सकता है। जिन मामलों में यह जानकारी नहीं दी होती है, वैसे में आपको विस्तृत जानकारी रखनी चाहिए ताकि साल के अंत में कोई मुश्किल न हो।
स्टेटमेंट में दो और खण्ड होते हैं- ऑटोस्वीप और रिवर्स स्वीप। ऑटोस्वीप सुविधा में बैंक को आपके खाते से रकम सावधि जमा में डालने की अनुमति होती है। वहीं, किसी चेक भुगतान की आवश्यकता से कम रकम खाते में होने पर रिवर्स ऑटो स्वीप सुविधा काम करती है। सावधि जमा से रकम आपके खाते में डाली जाती है ताकि भुगतान पूरा किया जा सके। आपके द्वारा चुनी गई अवधि और रकम कितनी बार और कितनी जल्दी-जल्दी निकाली गई है, इसे देखते हुए सावधि जमा पर ब्याज जोड़ा जाता है।
आई बी, आईएनएफ, एनआईएफटी, टीपीटी- इंटरनेट के जरिए पैसों के लेनदेन प्रक्रिया के लिए बैंक 'आईबी' (इंटरनेट बैंकिंग) शब्द का इस्तेमाल करते हैं। इंटरनेट लेनदेन को आईएनएफ (इंटरनेट फंड ट्रांसफर) कहते हैं। दो बैंकों के बीच लेनदेन को एनईएफटी (नैशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्ïस ट्रांसफर) और थर्ड पार्टी लेनदेन के लिए टीपीटी (थर्ड पार्टी ट्रांसफर) कोड का इस्तेमाल करते हैं।
आरटीजीएस- 1 लाख रुपये से ज्यादा के इलेक्टा्ïनिक लेनदेन को आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रॉस सेटेलमेंट) कहते हैं।
आईएनडब्ल्यू सीएलजी- जब हम कोई चेक जारी करते हैं, तो बैंक की ओर से किए गए इंवर्ड क्लियरिंग को इस संकेत से सूचित करते हैं।
ईबीए- किसी बैंक द्वारा कारोबार संबंधी लेनदेन
बीआईएल- इंटरनेट के जरिए बिल भुगतान
एफआई, एसपी- कम रकम की वजह से बाउंस हुए चेक के लिए एफआई कोड का इस्तेमाल किया जाता है। एस पी (स्टॉप पेमेंट) भुगतान रोकने के लिए लिखा जाता है।
टीआईपीएस- किसी रेस्तरां में क्रेडिट कार्ड के जरिए भुगतान करने पर इस भुगतान के अतिरिक्त टीआईपी काटा जाता है।
आईएनटी- खाते में मौजूद नकदी पर (1 अप्रैल से प्रतिदिन) ब्याज मिलता है
एटीडब्ल्यू(एनडब्ल्यूबी/एटीएस या वीएटी/एमएटी/ एनएफएस): एटीडब्ल्यू एटीएम के जरिए निकाली गई राशि के लिए लिखा जाता है।
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