मौद्रिक नीति की समीक्षा के साथ ही नए बैंकों के लिए लाइसेंस नियम जारी कर सकता है केंद्रीय बैंक
सुमित शर्मा / मुंबई July 25, 2010
नया बैंक लाइसेंस हासिल करने की कवायद में जुटे बैंकों को इसके बदले क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के साथ करार करने के लिए कहा जा सकता है। इन बैंकों को देश के ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराने में क्षेत्रीय बैंकों की मदद करनी होगी।
उद्योग से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लाइसेंस के बदले नए बैंकों से ग्रामीण इलाकों में कुछ संख्या में शाखाएं खोलने के लिए कह सकता है। आरबीआई को इस महीने नए बैंक लाइसेंस के लिए मसौदे को अंतिम रूप देना है। बैंकरों को उम्मीद है कि 27 जुलाई को होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा के साथ ही इसकी नए बैंक लाइसेंस के नियमों की भी घोषणा हो सकती है।
देश में 619 जिलों में 82 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की 15,475 शाखाएं हैं। जबकि वाणिज्यिक बैंकों की पूरे देश में करीब 65,000 शाखाएं हैं। इनमें से दो-तिहाई शाखाएं छोटे शहरों और महानगरों तक ही सीमित हैं, इस कारण करीब 6,40,000 गांवों में बैंकिंग की सुविधा नहीं है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में केंद्र की हिस्सेदारी 50 फीसदी, राज्य की 15 फीसदी और 35 फीसदी हिस्सेदारी प्रायोजक बैंक की होती है। बजट भाषण में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की हालत मजबूत करने के लिए इन्हें अतिरिक्त पूंजी देने की घोषणा की थी।
20 अप्रैल को आरबीआई ने कहा था कि वह निजी क्षेत्र के बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस देने की योजना बना रहा है। उद्योग सूत्रों ने बताया कि आरबीआई विभिन्न कारोबार में दखल रखने वाले और बेहतर सेहत वाले कारोबारी घरानों को भी बैंकिंग लाइसेंस दे सकता है।
लेकिन प्रतिभूति कारोबार से जुड़ी कंपनियों की कमाई और बाजार पूंजी में अस्थिरता देखते हुए आरबीआई उन्हें बैंकिंग क्षेत्र से दूर रख सकता है। मंदी की हालत में इन कंपनियों की कमाई और मुनाफे में काफी गिरावट आ जाती है, जिससे ग्राहकों का भरोसा इनसे उठ सकता है।
आरबीआई की एक आंतरिक समिति इन दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दे रही है। बैंकिंग लाइसेंस के लिए न्यूनतम पूंजी 500 करोड़ रुपये तय की जा सकती है। लेकिन इस शर्त पर कि परिचालन के तीसरे साल तक इसे बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपये कर लिया जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि 20 फीसदी विदेशी निवेश को भी अनुमति मिल सकती है। अन्स्र्ट ऐंड यंग के पार्टनर व राष्ट्रीय प्रमुख (वैश्विक वित्तीय सेवाएं) अश्विन पारेख ने कहा, 'अगले पांच साल के दौरान ऋण एवं वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए देश के बैंकों को करीब 25 अरब डॉलर रकम की जरूरत पड़ेगी।'
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