दिल्ली की एक सड़क पर शुरू की गई बस रैपिड ट्रांजिट (बीआरटी) प्रणाली की खराब शुरुआत हुई, लेकिन एक दर्जन से ज्यादा शहरों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई और उन्हें केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय से पैसा भी मिलना शुरू हो गया है।
लिहाजा, दिल्ली में जो कुछ हुआ, उससे सही सबक सीखना जरूरी है जिससे कि राजधानी का अनुभव और जगह न दोहराया जा सके। सिर्फ अवधारणा के बारे में प्रतिबद्धता जताने और पैसा जारी करने का मतलब यह नहीं कि प्रणाली काम करेगी, इस पर अमल भी अच्छे से करना होगा।
बीआरटी जकार्ता, बगोटा, सोल और पेरिस जैसे विश्व के शहरों में शहरी परिवहन का जांचा-परखा और अपनाया हुआ तरीका है। न्यूयार्क और लंदन में भी इसे लागू करने की योजना है। दिल्ली की परियोजना पर सालों से तैयारी चल रही थी और कई अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ इसमें शामिल रहे हैं। यह अध्ययन करने की जरूरत है कि इस पर अमल क्यों नाकाम रहा?
यह जांचने की जरूरत नहीं कि बसें अच्छी बात हैं या नहीं, या बीआरटी अपना कर उन्हें तवज्जो दी जा रही है। बसों के पक्ष में जितने भी कारण हों, अब उनमें तेल ईंधन की मौजूदा लागत और ग्लोबल वार्मिंग का मसला भी जोड़ना होगा। मेट्रो रेल अच्छी बात है, पर यह मंहगी है और उससे सीमित संख्या में ही लोगों को फायदा पहुंचता है। आप हर सड़क पर मेट्रो रेल लाइन नहीं बिछा सकते।
ऐसा महसूस होगा कि दिल्ली का प्रयोग इसलिए गड़बड़ाया, क्योंकि जिस पुलिस को नई लेन प्रणाली के तहत यातायात को निर्देशित करना था, वह इसे नहीं समझ पाई। कौनसी गाड़ी सड़क की किस लेन में चलेगी, इस बारे में लगाए गए संकेतक बहुत मददगार नहीं थे। मुसाफिर सड़क को पार करके नए बस स्टॉप तक पहुंचें, इस बारे में उचित सुविधाएं नहीं विकसित की गईं।
जब लोगों ने चलते यातायात के बीच हड़बड़ी दिखाई तो अराजकता मची। ऐसा लगता है कि समूची बस प्रणाली को दुरुस्त करने से पहले ही बीआरटी अपनाने की बड़ी गलती कर दी गई। हो सकता है कि इंदौर में सब कुछ ठीक-ठाक हो जिसने अपनी बस प्रणाली को सुधारने के लिए पहली बार यह अनूठा कदम उठाया था और फिर अन्य सड़कों पर भी उसने बीआरटी पर अमल किया।
इंदौर में इस गलियारे में उन निजी बसों को चलाया जाएगा जो कुछ गुणवत्ता की जरूरतें पूरी करें। साथ ही आईटी और ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके बसों का संचालन किया जाना है। बसों के लिए जगह की जरूरत को देखते हुए यह तभी संभव हो सकता है जब बड़ी सड़कों पर इन्हें चलाया जाए और छोटी सड़कों से बसों तक फीडर बसें चलें। बीआरटी में अतिरिक्त बात यह है कि इसमें बसें तेजी से चलती हैं।
साथ ही साइकिल सवारों और पैदल यात्रियों के लिए अलग निर्धारित जगह होती है। चूंकि भारतीय शहरों में गांवों से भारी संख्या में गरीब लोगों के आने के कारण आबादी का दबाव बढ़ रहा है, इसलिए सक्षम सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पहले अपनाई जानी चाहिए।