वाहनों की भीड़ | संपादकीय / June 14, 2010 | | | | |
भारी यातायात के गंभीर संकट से जूझ रहे शहरों के लिए भीड़भाड़ कर (कंजेशन टैक्स) के विचार को समर्थन देकर केंद्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने इस बाबत जनमत तैयार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया है कि वह राज्य सरकारों पर यह विचार थोपना नहीं चाहते, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सिंगापुर (भारत के निजी वाहन मालिकों के उन्नतिशील वर्ग के लिए मॉडल) में इस तरह के टैक्स का चलन है। हालांकि शहर के घने अंदरूनी हिस्से में प्रवेश करने वाली कार पर लगाया जाने वाला कंजेशन टैक्स पहला नहीं बल्कि बाद का कदम होना चाहिए। तीनों स्तरों (स्थानीय, राज्य व केंद्र) पर सरकार का पहला लक्ष्य अनिवार्य रूप से स्वच्छ व कुशल यातायात व्यवस्था कायम करने का होना चाहिए ताकि लोग यह भरोसा कर सकें कि वे पर्याप्त आराम व तय समय में गंतव्य तक पहुंच जाएंगे और इस तरह वे अपनी कार या यहां तक कि दोपहिया वाहन भी पीछे छोड़ देंगे।
रेड्डी ने कहा है कि इसके लिए राज्य सरकारों को अपने शहरों के लिए एकीकृत मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी बनानी होगा, जो बस, बीआरटी, मोनोरेल, लाइट रेल व मेट्रो जैसे यातायात के विभिन्न साधनों को एकीकृत व अनुकूलित करे और इसके साथ ही चलने-फिरने वालों व साइकल सवारों के लिए पर्यावरण के अनुकूल जगह तैयार करे। उपयुक्त यातायात वाला परिदृश्य तैयार करने के लिए ऐसी ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी को शहर के लिए लैंड यूज मास्टर प्लान के तहत काम करना होगा। चूंकि भारत के कई शहर बिना लैंड यूज प्लान के बन गए हैं और वहां एकीकृत यातायात योजना पर कोई बात नहीं होती है, ऐसे में इन दोनों को यह बात ध्यान में रखते हुए वापस लाना होगा कि आज होने वाला भारी शहरी विध्वंस दशकों तक जारी रहेगा। ज्यादातर काम राज्य सरकारों को करने होंगे (उन्हें स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाना होगा), लेकिन कम से कम ऐसा आश्वासन जरूर मिलना चाहिए कि केंद्र विचारवान नेतृत्व की तरह काम कर रहा है और सही बात कर रहा है, ताकि शहरी विकास सचिव द्वारा व्याख्यायित शहरी यातायात अनाथ बच्चा न रहे।
भारी निवेश को ध्यान में रखते हुए शहरों के लिए विशेष कोष बनाया जाना चाहिए। परामर्शक विल्बर स्मिथ ने मंत्रालय के लिए साल 2008 में रिपोर्ट तैयार की थी और उसके मुताबिक इस बाबत अगले दो दशक में 4.35 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। सार्वजनिक, निजी और बहुपक्षीय वित्त पोषण सुरक्षित करना होगा, लेकिन अच्छी खबर यह है कि वैश्विक एजेंसियां भारतीय राज्यों व कार मालिकों के वर्ग की इस सोच से आगे हैं कि भविष्य के शहरों में सार्वजनिक परिवहन में केंद्र की भूमिका होगी। रेड्डी ने हाल में एक ऐसी परियोजना का उद्घाटन किया है जिसका वित्त पोषण ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी, यूएनडीपी और विश्व बैंक कर रहे हैं और यह शहरी परियोजनाओं की जरूरत पूरा करने के लिए हजारों लोगों को प्रशिक्षित करेगी। काफी लंबा रास्ता तय किया जाना है क्योंकि कई शहरों में किसी तरह का सार्वजनिक परिवहन नहीं है। अच्छी बस सेवा के आगाज से ऐसी शुरुआत हो सकती है जबकि मध्य वर्ग को महंगी मेट्रो रेल व्यवस्था से आकृष्ट किया जा सकता है।
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