घरेलू बैंकों के एक्सॉटिव डेरिवेटिव्स यानी लुभावने डेरिवेटिव्स पर नजर रखने के अलावा अब से विदेशी बैंकों के डेरिवेटिव्स पर भी आरबीआई नजर रखेगा।
इस बाबत आरबीआई ने आठ ऐसे विदेशी बैंकों से आंकड़ों की भी मांग की है, जो स्ट्रक्चर्ड प्राडक्ड मार्के ट में संलिप्त हैं। यह इस प्रकार के बाजार का तकाजा है,जो संबंधित विदेशी बैंकों को लुभावने प्राडक्ट लांच करने पर मजबूर करते हैं।
सूत्रों के मुताबिक कम से कम आठ विदेशी बैंकों पर निगरानी की तलवार लटक रही है। इस संबंध में बिजनेस स्टैंडर्ड ने जब संपर्क साधने की कोशिश की तो किसी ने भी प्राडक्टों के डिटेल्स बताने से इंकार किया जिन पर निगरानी रखी जानी हैं।
इसके अलावा ये बैंक अपने एक्सपोजर के स्तर को भी बताने में अपनी असहमति प्रकट कर रहे हैं। हालांकि,ऐसे आदेश पारित करने से पहले आरबीआई ने दिसंबर 2007 और मार्च 2008 में उन बैंकों के डेरिवेटिव्स संबंधी प्राडक्टों का ऑडिट करवाया था,जिसका विवरण आरबीआई अपने सालाना जांच रिपोर्ट में प्रस्तुत करेगी।
इसके अलावा आरबीआई ने इन बैंकों से ज्यादा लुभावने प्राडक्टों को मिस-सेल यानी भ्रामक जानकारी के आधार पर प्रोडक्ट न बेचने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही,गैर बैंकिंग फाइनेंस कार्पोरेशनों के पास कितनी मात्रा में नॉन-डिपॉजिट रकम है,के बारे में भी आरबीआई ने आंकड़े मांगे हैं। हालांकि इन कार्पोरेशनों के डेरिवेटिव सेगमेंट से संबंधित एक्सपोजर क्या हैं,पर,आरबीआई ने किसी चीज की मांग नहीं की है।
गौरतलब है कि निवेशकों को अन्य प्राडक्टों के मुकाबले लुभावने प्राडक्टों से बेहतर रिटर्न मिलता है। हालांकि इसमें निवेशकों के लिए जोखिम भी उतना ही होता है,क्योंकि निवेश भले ही किसी काम का न हो पर,उस स्थिति में भी ली गई पूंजी और ऋण पर बने ब्याज की पुर्नअदायगी करनी पड़ती है,और ये सारे जोखिम एक बार फिर से स्ट्रक्चर्ड प्रॉडक्ट को घेर लेते हैं,बावजूद इसके कि इनका कोई अंडरलाइंग न हो।
बाजार सूत्रों के मुताबिक ज्यादातर प्राइवेट बैंकों ने इन स्ट्रक्चर्ड प्राडक्टों की खरीद कर रखी है,और कंपनियों को बेचते हुए ये बैंक एक बाजार निर्माता की तरह काम करते हैं। अब जबकि,इन प्राडक्टों का एक बड़ा हिस्सा हेजिंग के लिए बेचा जा चुका है,अभी भी डॉलर के हिचकोले खाने के कारण मुद्रा संबंधी जोखिम बना हुआ है।
लेकिन बावजूद इसके यह कहा जा रहा है कि बचे हुए प्रोडक्ट अभी भी मुनाफा कमाने की स्थिति में हैं। प्राइवेट बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक,कोटक महिंद्रा, एचडीएफसी बैंक समेत अन्य बैंक भी ऐसे प्रॉडक्टों की खरीद बिक्री में शामिल हैं। इस वक्त हालांकि ये बैंक घाटे झेलने की स्थिति में नहीं हैं,फिर भी एक खतरा इनके सामने जरूर है।अगर कंपनियां इन स्ट्रक्चर्स के बकाए रकम की अदायगी करने से मना करती हैं, तो फिर बैंकों के लिए मुश्किल हो सकती है।
इस बाबत एक ओर जहां सेंचुरियन बैंक ऑफ पंजाब कुछ भी बताने से मना करती है,वहीं दूसरी ओर एक्सिस बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक ने संभावित घाटे के मद्देनजर साल 2008 के चौथी तिमाही में कुछ प्रावधान किए हैं।