ऊर्जा क्रांति की दहलीज पर खड़ा है भारत | ऊर्जा क्रांति का फायदा उठाने के लिए आज भारत को अक्षय ऊर्जा के लिए अलग से नीति बनानी होगी। | | श्याम सरन / June 08, 2010 | | | | |
दुनिया भर में ऊर्जा क्षेत्र आज क्रांति की दहलीज पर खड़ा है। बिजली पैदा करने के तरीकों और उनके इस्तेमाल के मामले में आज दुनिया भर में बदलाव हो रहे हैं। दुनिया भर में बिजली के उत्पादन और इसके इस्तेमाल में हो रहे इन बदलावों की वजह से लोगों की जीवनशैली पर भी असर पड़ेगा।
अमेरिकी कांग्रेस में बीते साल राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था, 'इस बात से हम सभी वाकिफ हैं कि जो देश साफ और अक्षय ऊर्जा के मामले में सबसे ज्यादा प्रगति करेगा, 21वीं सदी में उसी का सिक्का चलेगा। ऊर्जा का इतिहास, कार्बन को जलाने का इतिहास रहा है। ऊर्जा का सबसे अच्छा स्रोत रहा है सूरज। वहीं, कार्बन का इतिहास लकड़ी, कोयले, तेल और गैस से जुड़ा हुआ है। अठारहवीं सदी में जब यूरोप में औद्योगिक क्रांति का जन्म हुआ, तब ऊर्जा का प्रमुख स्रोत थी लकड़ी। इसी ने यूरोप के ज्यादातर जंगलों और उनमें पाए जाने वाले जीवों को लील लिया। इसके बाद कोयले का इस्तेमाल शुरू हुआ जिसे तकनीक के मामले में एक बड़ा कदम माना गया। इसी के साथ शुरू हुआ वाष्प ऊर्जा या स्टीम एनर्जी का युग। यह अपने जमाने की बेहतरीन और सबसे किफायती तकनीक हुआ करती थी। इसके कारण दुनिया में परिवहन क्रांति आई। साथ ही, इसने लौह और स्टील उद्योगों के साथ-साथ कपड़ा या टेक्सटाइल उद्योग के विकास में भी अहम भूमिका निभाई।
20वीं सदी की शुरुआत के साथ ही दुनिया में तेल और प्राकृतिक गैस का युग भी आया। इससे दुनिया को ऊर्जा का और भी अच्छा और साफ स्रोत मिल गया।
आज दुनिया को बिना कार्बन वाले साफ और फिर से इस्तेमाल हो सकने वाले ऊर्जा स्रोतों की तलाश है। दरअसल, आज जीवाश्म ईंधन तेजी से खत्म होते जा रहे हैं। साथ ही, इनके तेजी से बढ़ते इस्तेमाल की वजह से जलवायु परिवर्तन का खतरा भी पैदा हो गया है। साथ ही, आज अक्षय ऊर्जा की तकनीक के मामले में भी काफी तरक्की हुई है। इनकी वजह से आज दुनिया को भरोसा हो गया है कि ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के आगे भी उम्मीद की किरणें हैं।
मौजूद आर्थिक संकट के बावजूद दुनिया भर में आज तकनीकी और आर्थिक रूप से अपना वर्चस्व कायम करने की एक दौड़ शुरू हो चुकी है। और इस दौड़ का ताल्लुक है ऊर्जा से। बिल्कुल सूचना क्रांति की तरह ही इस क्रांति के असर भी दूरगामी होंगे। सूचना तकनीक की तरह ही ऊर्जा भी एक अहम इलाका है क्योंकि इसका सीधा असर आर्थिक गतिविधियों पर होता है।
अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा के कई स्रोत हो सकते हैं। सरकार और निजी कंपनियों को कौन से स्रोत को चुनना है, इसका फैसला उन्हीं को करना होगा। इनमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायो-फ्यूल, लहरों से पैदा होने वाली बिजली, हाइड्रोजन फ्यूल सेल और परमाणु ऊर्जा शामिल हैं। इनके बारे में सभी को पता है और इनका थोड़ा-बहुत इस्तेमाल दशकों से होता आया है। इसमें से सबसे अहम है सौर ऊर्जा। यह सभी तरह की ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है। साथ ही, यह पूरी तरह से अक्षय और कभी न खत्म हो सकने वाला ऊर्जा स्रोत है। हालांकि, अलग-अलग मौसमों में इसकी अनुपलब्धता, इसके लिए जरूरी जगह और इसकी ऊंची कीमत की वजह से कई तरह की दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं। इन दिक्कतों को दूर करने में आज दुनिया की सारी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शोध में काफी पैसा और वक्त लगा रही हैं। एक दिन हमारे पास सौर ऊर्जा के कैप्सूल होंगे, जिसे अपनी कारों या घरों या दफ्तरों में लगाकर हम उन्हें रोशन कर पाएंगे।
पवन ऊर्जा के मामले में हमने काफी तरक्की की है, लेकिन तकनीकी दिक्कतों की वजह से हम इसका पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। इसीलिए आज की तारीख में यह हाथी के दांत बनकर रह गए हैं। बायो-फ्यूल से दुनिया को काफी उम्मीदें हैं। साथ ही, बायो-टेक्नोलॉजी में माद्दा रखने वाले देशों में इस मामले में काफी शोध भी हुआ है। भारत में भी इस मामले में काफी शोध हुआ है।
परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल आज दुनिया में काफी जगहों पर हो रहा है, लेकिन इसमें यूरेनियम की उपलब्धता एक बड़ी समस्या है। हालांकि, आज फास्ट-ब्रीडर तकनीक इसका जबाव बनकर उभरा है। इसके तहत उत्पादन के बाद परमाणु कचरे को पुनर्चक्रित करके इसका इस्तेमाल फिर से ऊर्जा उत्पादन में किया जा सकता है। इसीलिए इसे भी हम अक्षय ऊर्जा में कर सकते हैं। भारत उन कुछेक देशों में से एक है, जिसके पास अपना फास्ट-ब्रीडर रिएक्टर कार्यक्रम है। हमने इस मामले में काफी तरक्की भी कर ली है। इसीलिए हम इस मामले में और आगे जा सकते हैं। इसके अलावा, रिएक्टरों को छोटा बनाने में वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी ने हौसला बढ़ाने का काम किया है। इस मामले में अमेरिका और रूस को महारत हासिल है, लेकिन भारत में इनके साथ खड़े होने का माद्दा है। इससे खास तौर पर हमें छोटे और ग्रामीण इलाकों में बिजली घर बनाने में काफी मदद मिलेगी।
वैसे नई तकनीकों का भविष्य तो सुहाना लग रहा है। लेकिन इसके फायदे तभी मिलेंगे, जब हमऊर्जा के मामले में अपनी कार्यकुशलता में इजाफा करें। इससे ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों को एक बड़ा कारोबार मिल गया है। वे ऊर्जा की बचत करने के लिए तकनीक और प्रबंधन से जुड़े मामलों में सलाह देती हैं। साथ ही, वे सूचना प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर स्मार्ट ग्रिड का भी निर्माण कर रही हैं। इससे वे आज कम से कम 30-50 फीसदी ऊर्जा की बचत कर पा रही हैं।
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चिंताएं भी कंपनियों को ऊर्जा की बचत करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसकी वजह से वे अक्षय और साफ ऊर्जा की तरफ भी मुड़ रही हैं। जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी वजह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन है, जो जीवाश्म ईंधन को जलाने से पैदा होती है। लेकिन आज ये ईंधन भारत और चीन जैसे तेजी से प्रगति कर रहे देशों की जरूरत को पूरा नहीं कर सकती हैं। अगर हम ज्यादा कोयले या गैस की तलाश में जमीन या समुद्र में ज्यादा गहराई तक खुदाई करेंगे, तो उससे न सिर्फ हम अपनी लागत में इजाफा करेंगे, बल्कि धरती को भी खत्म करने का दोष हमारे ऊपर लगेगा। उम्मीद है कि आप अभी तक कैलिफोर्निया तट पर कच्चे तेल के बहाव के असर को भूले नहीं होंगे।
इसीलिए आज भारत को अक्षय ऊर्जा के लिए नीति बनाने की जरूरत है। हमें इस क्रांति में पीछे नहीं रहना चाहिए। आज अमेरिका, चीन और जर्मनी अक्षय ऊर्जा पर काफी पैसा लगा रही हैं, ताकि इसके लिए वे मानव संसाधन और नई तकनीकों को तैयार कर सकें। चीन की सरकार ने 74 करोड़ डॉलर की लागत से उत्तरी चीन में एक सोलर वैली प्रोजेक्ट की शुरुआत करने का ऐलान किया है। चीन अपने कुल ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा के हिस्से को 9 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी तक ले जाना चाहता है। वहीं, यूरोपीय संघ ने इस मामले में अपने 20 फीसदी का लक्ष्य रखा है। हालांकि, आज भी इस मामले में सारे देश शुरुआती स्तर पर ही हैं।
शायद फॉर्मूला-1 एनालॉजी की वजह से चीन अच्छी स्थिति में दिखाई दे रहा हो, लेकिन अब भी कोई देर नहीं हुई है। भारत ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय एक्शन प्लान को लागू करके एक अच्छी शुरुआत की है। इसके तहत देश ने जीवाश्म ऊर्जा पर अपनी निर्भरता को कम करने का इरादा किया है, ताकि साफ और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा मिल सके। सरकार ने 2022 तक सौर ऊर्जा से 20 हजार मेगावॉट का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है। ऊर्जा में कार्यकुशलता बढ़ाने के राष्ट्रीय मिशन के तहत सरकार ने बिजली की बचत करने का भी इरादा किया है। भारत-अमेरिका परमाणु समझौते और एनएसजी से भारत को मिली छूट से देश के लिए नए आयाम खुल गए हैं। अब बस इस मामले में एक सुनियोजित और समेकित रणनीति करने की कसर है, जिससे अलग-अलग कदमों को एक राह पर लाया जा सके। इससे भारत ऊर्जा क्रांति की अगली पंक्ति में खड़ा हो सकता है।
ऊर्जा क्रांति से देश को ठीक उसी तरह आगे बढऩे का मौका मिला है, जैसे मोबाइल क्रांति से मिला था। हालांकि, इस क्रांति का असर एक बड़े स्तर पर होगा। इस मामले में कामयाबी की चाभी एक कुशल निजी-सार्वजनिक साझेदारी (पीपीपी) पर निर्भर करेगी। इसके लिए हमें कई स्तरों पर काम करना होगा। आज भी हमारे देश में सरकार और निजी कंपनियां अलग-अलग स्तरों और सोच पर काम करती हैं। अगर हम इसे एकजुट कर सकें, तो हम इस ऊर्जा क्रांति से फायदा लेने वालों में सबसे पहले होंगे।
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