गोरखालैंड जनमुक्ति की असल परीक्षा विधानसभा चुनाव में होगी | सियासी हलचल | | आदिति फडणीस / May 29, 2010 | | | | |
अगर उनकी जगह कोई और होता तो आप कहते कि वह अस्वाभाविक अभिनय कर रहे थे।
लेकिन गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के प्रमुख बिमल गुरुंग के मामले में यह पूरी तरह स्वाभाविक था कि भाषण देने के लिए चबूतरे पर आने से पहले उन्होंने अपना जूता उतारा, धरती मां का चुंबन लिया और गोरखाली में भाषण देने के लिए मंच पर पहुंच गए।
गोरखाली ऐसी बोली है जो भारत के विभिन्न इलाकों में रहने वाले हजारों गोरखाओं की आंखों में आंसू ला देती है। उनके मित्रगण स्वीकार करते हैं कि वे उनसे थोड़ा बहुत भयभीत रहते थे। उनका कहना है कि गुरुंग का भाषण हिटलर की तरह होता है और थोड़ा बहुत जॉर्ज बुश का जैसा भी। वह पूर्ण रूप से शांतचित्त हैं और समान रूप से पूरी तरह निष्ठुर भी नजर आते हैं।
पश्चिम बंगाल की पुलिस का कहना है कि इस महीने की शुरुआत में दार्जिलिंग में प्रतिद्वंद्वी गोरखा अखिल भारतीय गोरखा लीग के नेता मदन तमांग की दिनदहाड़े हुई हत्या के मामले में उन्हें जीजेएम के जुड़ाव का पता चला है। माना जाता है कि कायला नाम का कॉन्ट्रैक्ट किलर इसमें शामिल था। यह शायद ही आश्चर्य की बात है। तमांग, गुरुंग के बड़े आलोचक थे। और दार्जिलिंग में काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है।
इससे हर कोई वाकिफ है कि गोरखा नैशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के प्रमुख सुभाष घीसिंग को साल 2007 में सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। इस काम को बिमल गुरुंग ने अंजाम दिया था। जब उन्होंने प्रशांत तमांग के पीछे गोरखा की बड़ी एकता देखी तो उन्हें ध्रुवीकरण शब्द का मतलब समझ में आ गया।
जो लोग संगीत के कार्यक्रम इंडियन आइडल के बारे में नहीं जानते उन्हें यह पूछने पर माफ किया जा सकता है कि कौन है प्रशांत? गोरखा पुलिस तमांग ने इंडियन आइडल के तीसरे सीजन में हिस्सा लिया था। वोटिंग पर आधारित इस कार्यक्रम में लोग अपने मोबाइल फोन से किसी गायक के लिए वोटिंग करते हैं। निश्चित तौर पर इसमें समुदाय बड़ी भूमिका अदा करता है।
भारत में रहने वाले गोरखाओं की एकता की खातिर प्रशांत तमांग प्रतीक बन गए और उन्हें अपनी सामान्य पहचान की खोज में मदद की। भारत के गोरखा नेपाली गोरखा से अलग हैं और देश के विभिन्न इलाकों में बिखरे हुए हैं जिनमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरी बंगाल, सिक्किम तथा उत्तर पूर्व के इलाके शामिल हैं। इजरायल के लोगों की तरह वे भी होमलैंड की तलाश में हैं।
नजरिया, मतभेद और सरकारी नीति ने एक साथ पहचान के संकट को धुंधला और ज्यादा स्पष्ट कर दिया। गुरुंग ने गोरखा राय को एकीकृत करने और गोरखालैंड की मांग को फिर से जीवित करने की खातिर इस ध्रुवीकरण का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार के खिलाफ किया।
अन्य संगठन जैसे सिक्किम की पूर्व सांसद दिल कुमारी भंडारी की अगुआई वाला भारतीय गोरखा परिसंघ और देहरादून को आधार बनाए हुए गोरखा डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बावजूद इसके कि ये संगठन अलग-अलग हैं।
भारतीय गोरखा प्रशांत तमांग को इंडियन आइडल बनाने के लिए एक हो गए और गोरखा की जीत सुनिश्चित कर दी। भारतीय गोरखाओं का सबसे बड़ा संकेंद्रण उत्तरी बंगाल के पहाड़ी जिले दार्जिलिंग में है और इसमें कुर्सिओंग, कलिमपोंग व दार्जिलिंग के साथ-साथ दोआर्स के अनुमंडल शामिल हैं।
यहां गोरखाओं की आबादी करीब 22 लाख है जबकि सिक्किम में 6 लाख, जो साल 1975 में भारतीय प्रदेश बना। रणनीतिक दृष्टि से इस क्षेत्र का बड़ा महत्त्व है। यह चार देशों की सीमाओं नेपाल, चीन, भूटान और बांग्लादेश से जुड़ा हुआ है। सिलिगुड़ी कॉरिडोर और सिक्किम जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 31ए उत्तर पूर्व को जोड़ने वाला एकमात्र सड़क व रेल संपर्क है और इस इलाके में टाइगर व सीवोक ब्रिज भी हैं।
गोरखास्थान की मांग आजादी से काफी पहले रखी गई थी और यहां तक कि अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे स्वीकार कर लिया था। हालांकि घीसिंग ने गोरखालैंड आंदोलन की शुरुआत 1980 के दशक के आखिर में की, उन्होंने अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ी जो भ्रष्टाचार से घिरी हुई है और उसके ऊपर अपने दुश्मन पश्चिम बंगाल के साथ रहने का कलंक भी है।
घीसिंग ने दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (डीजीएचसी) को साल 1988 व 2006 में संरक्षित किया, इसे छठी अनुसूची में शामिल करवाया और जनजातीय इलाके का दर्जा हासिल किया। राज्य की मांग के लिए चलने वाला संघर्ष अस्तित्व की राजनीति में तब तक खोई रही जब तक कि घीसिंग के आश्रित नए नेता बिमल गुरुंग का जन्म नहीं हो गया।
गुरुंग अधिकता में कामयाब रहे। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा - 'छठी अनुसूची को स्वीकार करके घीसिंग ने गोरखालैंड के साथ धोखा किया, ऐसे विकल्प को हमने पहले ही अस्वीकार कर दिया था। राज्य की मांग का कोई विकल्प नहीं हो सकता।' संगठन ने जसवंत सिंह को अंगीकार किया और उन्हीं के हाथों तब फंस गई जब उनकी पार्टी ने उन्हें त्याग दिया। लोकसभा में सिंह द्वारा दिए गए ज्यादातर भाषण गोरखा लोगों के साथ हुए अन्याय के बारे में है।
मदन तमांग की हत्या बताती है कि यहां वैसे गोरखा भी हैं जो गुरुंग की राजनीति से सहमत नहीं हैं और उनके पास उनके लिए समय नहीं है। उनकी पत्नी आशा जीजेएम की महिला विंग की प्रमुख हैं। दूसरी जगहों पर चल रही पारिवारिक राजनीति की तरह यहां भी इसके आलोचक हैं।
हालांकि फिलहाल जीजेएम की प्राथमिकता आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरी बंगाल में प्रदर्शन की है। जीजेएम के समर्थन से एक निर्दलीय उम्मीदवार विल्सन चंपामारी ने पिछले साल उत्तरी बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की थी।
वाम मोर्चे के लिए यह एक झटका था, लेकिन इससे रुझान का पता चल गया। बिमल गुरुंग और जीजेएम यहां जमे रहेंगे। वाम मोर्चे द्वारा उत्तरी बंगाल को तिरस्कार करने का मुद्दा एक अन्य निबंध का विषय है। लेकिन खुखरी पर नजर रखिए।
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