ल्युपिन स्थापित करेगी आर ऐंड डी केंद्र | नए बाजारों में विपणन संबंधी मंजूरी के लिए दस्तावेज सौंपने में मिलेगी मदद | | जो सी मैथ्यू / मुंबई May 27, 2010 | | | | |
घरेलू दवा कंपनी ल्युपिन लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया के तेजी से उभरते बाजारों के लिए खास तौर पर जेनरिक दवाएं विकसित करने के वास्ते अलग से एक शोध एवं विकास (आर ऐंड डी) केंद्र स्थापित करेगी।
कंपनी के समूह अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक नीलेश गुप्ता के अनुसार यह केंद्र अगले तीन महीनों में औरंगाबाद में बन कर तैयार हो जाएगा जिसमें करीब 50-60 लोग काम करेंगे। इस आर ऐंड डी केंद्र के जरिये ल्युपिन को तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में विपणन संबंधी मंजूरी के लिए उत्पादों के दस्तावेज सौंपने में मदद मिलेगी।
केंद्र जापान में भी कंपनी के कारोबार के लिए मददगार साबित होगा, जहां यह अपनी अनुषंगी इकाई क्योवा फार्मास्युटिकल्स के जरिये कारोबार करती है। इस समय क्योवा की जापान में अपनी विकास और विनिर्माण इकाइयां हैं। नई आर ऐंड डी केंद्र की स्थापना के साथ ही कंपनी के लिए नए बाजारों में प्रवेश का रास्ता आसान हो जाएगा, साथ ही अमेरिका और यूरोप में ल्युपिन के आर ऐंड डी टीम की नियमन संबंधी आवेदन की राह में भी कोई बाधा नहीं आएगी।
उल्लेखनीय है कि कंपनी ने वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान अमेरिकी फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को उत्पादों के पंजीकरण संबंधी 37 आवेदन सौंपे हैं। इसी अवधि के दौरान यूरोपीय अधिकारियों को भी इसी तरह के आवेदन सौंपे हैं। इन क्षेत्रों में ल्युपिन के कारोबार विस्तार का सारा दारोमदार उत्पादों के पंजीकरण पर निर्भर है।
कंपनी अपनी ब्रांडेड दवाओं के प्रवर्धन के लिए ब्राजील और मैक्सिको के बाजारों में अधिग्रहण के अवसर तलाश रही है। इस बाबत गुप्ता ने क हा 'एक बार जैसे ही नए उत्पादों के उतारे जाने की जमीन तैयार होती है, हम इन देशों में विपणन नेटवर्क तैयार करने की बारीकियों पर विचार करेंगे।'
ल्युपिन की शोध और विकास परिचालनों में करीब 700 वैज्ञानिकों की आर ऐंड डी टीम है। निकट भविष्य में विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिए कंपनी अपनी विनिर्माण क्षमताओं में बढ़ोतरी के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। कंपनी की मौजूदा सभी विनिर्माण इकाइयां में काम कुल क्षमता का 90 फीसदी तक हो रहा है। कंपनी की नई इकाइयों को भी विकास के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर ही विकसित किया जा रहा है।
इस बारे में गुप्ता ने कहा 'हम कमजोर इकाइयों का निर्माण नहीं करेंगे। हमारी अतिरिक्त विनिर्माण इकाइयों में आवश्यकतानुसार उत्पादों का निर्माण जारी रहेगा। हमने हरेक साल एक थेरेपेटिक एरिया विकसित करने का भी फैसला किया है। क्षमता में बढ़ोतरी के लिए हम पिछले तीन सालों से सालाना 400-500 करोड रुपये का निवेश कर रहे हैं। आने वाले कुछ सालों में भी निवेश की यह प्रक्रिया जारी रहेगी।'
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