मुश्किल डगर पर सधी चाल | संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी सरकार का एक साल पूरा होने पर कारोबारियों ने सरकार को सराहा है तो अर्थशास्त्री कुछ मोर्चे पर सरकार को बता रहे हैं नाकाम | | बीएस संवाददाता / मुंबई May 22, 2010 | | | | |
अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा करने के ठीक पहले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के लिए 3जी स्पेक्ट्रम नीलामी के जरिए 67,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा पैसा जुटाना बड़ी राहत लेकर आया है। कई महीनों के बाद सरकार इसके बूते खुद को आर्थिक मोर्चे पर बेहतर स्थिति में पा रही है।
पर जानकारों की मानें तो ईंधन की कीमतों के मोर्चे पर सरकार के लिए मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। हालांकि, कुछ लोगों का यह मानना है कि यूरोप में पैदा हुए कर्ज संकट की वजह से तेल की वैश्विक कीमतें कम हुई हैं और इससे सरकार को राहत मिलेगी। इसके बावजूद सरकार को ईंधन की कीमतों के मसले पर जल्द ही कुछ तय करना होगा।
भारत में जेपी मॉर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री जहांगीर अजीज कहते हैं, 'रुपये की दृष्टि से देखें तो तेल की कीमतों में बदलाव नहीं आया है। क्योंकि भारतीय मुद्रा में भी गिरावट आई है। कमजोर वैश्विक बाजार का मतलब यह है कि पूंजी का प्रवाह कम होगा और रुपया कमजोर होगा। इससे तेल की कीमतों में हुई गिरावट का फायदा नहीं मिलेगा। तेल पर दी जा रही रियायतों को कम रखने के लिए तेल का 75 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से नीचे बना रहना बेहद जरूरी है।'
एक तरफ सरकारी अधिकारी बता रहे हैं कि यूरोपीय समस्याओं से भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा होगा वहीं दूसरी तरफ भारतीय रिजर्व बैंक इस मामले पर सावधानी बरत रहा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर लंबे समय तक वैश्विक बाजार कमजोर रहता है तो विनिवेश के जरिए 40,000 करोड़ रुपये जुटाने की सरकारी योजना खटाई में पड़ सकती है।
अजीज कहते हैं, '3जी से बढ़ते राजस्व घाटे पर लगाम तो लग सकती है लेकिन यह 5.5 फीसदी से नीचे नहीं आ पाएगा।' सिटी इंडिया की अर्थशास्त्री रोहिणी मल्कानी और अनुष्का शाह इस बात की आस लगा रही थीं कि यूरोपीय संकट को देखते हुए रिजर्व बैंक मुख्य पॉलिसी दरों में बढ़ोतरी करेगी लेकिन अब इन्हें ऐसा नहीं लगता कि यह हो पाएगा।
संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में महंगाई सबसे बड़ी मुश्किल बनकर उभरी। वहीं दूसरी तरफ इस एक साल के दौरान विनिवेश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सरकार को सफलता मिली। संप्रग की दूसरी सरकार में वाम दलों की गैरमौजूदगी की वजह से इस सरकार को विनिवेश के जरिए 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा पैसा जुटाने में सहूलियत हुई।
इस सरकार ने अपने शुरुआती साल में उर्वरक पर दी जाने वाली रियायत को भले ही पोषण आधारित कर दिया हो लेकिन तेल और खाद्य पदार्थों पर दी जा रही रियायत के मोर्चे पर काफी कुछ किया जाना बाकी है। तेल और गैस के दामों पर से नियंत्रण हटाने की सिफारिश कीरिट पारिख समिति ने की थी। इस समिति की सिफारिशों को लागू किया जाना अभी बाकी है।
सरकार को इस बात का भय सता रहा है कि इन सिफारिशों को लागू करने से मध्य वर्ग नाराज हो सकता है। जहां तक खाद्य रियायतों का मसला है तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून की समीक्षा की बात कही है।
वित्त मंत्री की तरफ से यह कहा गया है कि 2010-11 में वित्तीय घाटे को जीडीपी के 5.5 फीसदी के स्तर पर लाया जाएगा। यह पिछले साल की तुलना में 120 आधार अंक कम है। इसलिए इस लक्ष्य को पाना बेहद मुश्किल लग रहा है।
संप्रग के पहले कार्यकाल में वाम दलों की सरकार के साथ मौजूदगी को जिम्मेदार ठहराया जाता था। पर लोक सभा में कांग्रेसियों की संख्या बढ़ने के बावजूद कई मोर्चों पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कुछ करते हुए इस एक साल के दौरान नहीं दिखे।
पेंशन नियामक को कानूनी अधिकार देने के मोर्चे पर भी सरकार ने कुछ नहीं किया और न ही बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश बढ़ाने के मामले में कोई प्रगति हुई। जीएसटी और प्रत्यक्ष कर संहिता लागू करने के मोर्चे पर भी अभी सरकारी तौर पर कोई स्पष्टता नहीं दिख रही है।
संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में जब कामयाबियों की बात होगी तो शिक्षा के क्षेत्र में किए सुधार याद किए जाएंगे। सरकार ने इस दौरान शिक्षा का अधिकार कानून को लागू किया। साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में आने की अनुमति दी।
मनमोहन सरकार की दूसरी पारी का एक साल पूरा
काम जो हुए पूरे
3जी स्पेक्ट्रम नीलामी से जुटाए 67,000 करोड़ रुपये
पीएसयू में विनिवेश प्रक्रिया को गति
शिक्षा का अधिकार कानून अमल में आया
उर्वरक रियायत को पोषण आधारित किया गया
राजमार्गों के निर्माण में आई तेजी
काम जो रहे अधूरे
जीएसटी और प्रत्यक्ष कर संहिता लागू करने पर स्पष्टता नहीं
तेल सब्सिडी पर बढ़ता खर्च नहीं हुआ कम
तेजी से बढ़ती महंगाई पर लगाम नहीं
श्रम सुधारों की दिशा में प्रगति नहीं
पेंशन सुधार की दिशा में बदलाव नहीं
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