पीरामल से और दुरुस्त होगी एबट | अधिग्रहण से एबट इंडिया को बिक्री और पहुंच बढ़ाने में मिलेगी मदद | | राम प्रसाद साहू / मुंबई May 22, 2010 | | | | |
अमेरिका की दवा कंपनी एबट को उम्मीद है कि पीरामल हेल्थकेयर के अधिग्रहण से उसकी भारतीय सहायक इकाई की बिक्री 2020 तक तिगुना बढ़कर 11,200 करोड़ रुपये हो जाएगी।
कंपनी का कहना है कि ब्रांडेड फॉम्युलेशन कारोबार का तेजी से विकास हो रहा है। ऐसे में पीरामल के अधिग्रहण से कंपनी को काफी फायदा होगा। एबट ने भारत की चौथी सबसे बड़ी फॉम्युलेशन कंपनी पीरामल हेल्थकेयर को करीब 17,000 करोड़ रुपये में अधिग्रहण करने की घोषणा की है।
इससे एबट इंडिया घरेलू बाजार में फॉम्युलेशन क्षेत्र की नंबर एक कंपनी बन सकती है। इस अधिग्रहण से एबट इंडिया के खाते में 350 ब्रांड जुड़ जाएंगे।
क्या हैं सौदे के मायने?
पेटेंट ड्रग कारोबार से अलग कारोबार के विस्तार के तहत एबट ने हाल ही में वैश्विक स्तर पर इस्टैब्लिश प्रोडक्ट बिानेस का गठन किया है। इसका मकसद उभरते बाजारों में एबट की पहुंच बनाना है।
पिछले एक साल में यह कंपनी की ओर से दूसरा अधिग्रहण है। इससे पहले कंपनी ने सोलवे फार्मास्यूटिकल्स के साथ 6.2 अरब डॉलर का सौदा किया था। इससे कंपनी की यूरोपीय बाजार में पहुंच और बढ़ी है। इस सौदे से सोल्वे के भारतीय कारोबार पर भी कंपनी का नियंत्रण हो गया।
केपीएमजी इंडिया के एसोसिएट निदेशक, कॉरपोरेट फाइनैंस संजय सिंह का कहना है कि नियामकीय बाजार में कारोबार 2 से 4 फीसदी की दर से विकास कर रहा है। वहीं पेटेंट उत्पादों में भी कमी आ रही है। यही वजह है कि कंपनी अब कारोबार का विस्तार उभरते बाजारों में कर रही है, जहां दवा कारोबार 13 से 15 फीसदी की दर से विकास कर रहा है।
भारतीय बाजार पर मजबूत पकड़
विश्लेषकों का कहना है कि इस सौदे से एबट की पहुंच भारत में टियर 3 शहरों में भी हो सकेगी, जहां अब तक कंपनी की पहुंच नहीं है। इस सौदे से एबट इंडिया की बिक्री में भी 18 से 20 फीसदी का इजाफा संभव है। विश्लेषकों के मुताबिक, 7 फीसदी बाजार हिस्सेदारी से एबट इंडिया की बिक्री में भी खासा इजाफा होगा।
उनके मुताबिक, 40,000 करोड़ रुपये के भारतीय दवा बाजार में एक फीसदी का अर्थ 400 करोड़ रुपये की बिक्री है। फॉर्म्युलेशन कारोबार के अतिरिक्त अमेरिकी कंपनी भारत में पेटेंट दवाइयों को भी बेचने में सफल होगी। विश्लेषकों का कहना है कि पेटेंट कारोबार में कंपनी की हिस्सेदारी 2015 तक 7 फीसदी से बढ़कर 9 फीसदी हो सकती है।
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