इस गुरुवार यानी 13 मई को उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के तीन साल पूरा करने वाली मायावती सरकार के हौसले अब और बुलंदी पर हैं। इस कारण उसने प्रदेश में निजी निवेश की रकम को 1,25,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। निजी निवेश की यह गंगा प्रदेश में बहाने के लिए प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) का रास्ता चुना है, जो कि वित्तीय संसाधनों के मामले में खस्ताहाल हो चुके उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए मुफीद भी नजर आ रहा है। हालांकि सरकार पीपीपी के रास्ते से कमोबेश सभी बड़े क्षेत्रों में या तो परियोजनाओं की शुरुआत कर चुकी है या फिर इस दिशा में कदम बढ़ा चुकी है, चाहे वह ऊर्जा, हो या फिर चीनी, परिवहन, शिक्षा, पर्यटन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, शहरी विकास या फिर स्वास्थ्य। महत्वपूर्ण समझे जानी वाली पीपीपी परियोजनाओं में ग्रेटर नोएडा-बलिया एक्सप्रेसवे, नोएडा-आगरा यमुना एक्सप्रेसवे, इलाहाबाद, फतेहपुर, अनपरा और ललितपुर में पावरप्लांट, कुशीनगर में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा और सूबे के सात शहरों में स्थापित होने वाले सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल शामिल हैं। पीपीपी की इस डगर पर प्रदेश सरकार के साथ कदमताल करने के लिए जिन बड़ी कंपनियों ने रुचि दिखाई है, उनमें लैंको, जेपी, बजाज हिंदुस्तान और टॉरेंट प्रमुख हैं। हालांकि सरकार के लिए सबसे प्रतिष्ठित समझे जाने वाले गंगा एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट को कोर्ट के आदेश के चलते अभी पर्यावरणीय मंजूरी का इंतजार है। तकरीबन 30 हजार करोड़ रुपये की लागत वाले इस प्रोजेक्ट को जेपी को पूरा करने का जिम्मा दिया गया है। इसी तरह 9935 करोड़ रुपये की लागत वाले यमुना एक्सप्रेसवे को पूरा करने में भी तय लक्ष्य से ज्यादा का समय लग रहा है। पहले इसे नई दिल्ली में आयोजित होने वाले कॉमनवेल्थ खेल-2010 तक पूरा कर लिया जाना था लेकिन अब यह लक्ष्य बढ़ाकर 2011 कर दिया गया है। वैसे इस एक्सप्रेसवे का एक हिस्सा अक्टूबर 2010 तक खोल दिया जाएगा। ब्रांड यूपी का प्रचार-प्रसार करने और निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार अक्टूबर 2009 में मुंबई में एक निवेशक सम्मेलन का भी आयोजन कर चुकी है। इस सम्मेलन में शिरकत करने के लिए वीडियोकॉन, महिंद्रा, मोदी, एस्सार, इंडिया बुल्स, टाटा और जेपी जैसी महारथी कंपनियां भी आईं थीं। जहां तक ऊर्जा क्षेत्र की बात है, राज्य सरकार ने निजी निवेश की मदद से बिजली उत्पादन की क्षमता को 2017 तक 25 हजार मेगावॉट तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। फिलहाल प्रदेश में बिजली उत्पादन की कुल क्षमता महज 2700 मेगावॉट तक ही है, जो कि उसकी सभी 26 हाइड्रो, थर्मल और को-जेनरेशन (300 मेगावॉट) इकाइयों से होने वाले उत्पादन को मिलाकर है। दूसरी ओर, राज्य में बिजली की मांग का स्तर 10 हजार मेगावॉट तक पहुंच चुका है। इसके चलते प्रदेश को केंद्रीय क्षेत्र से 4000 मेगावॉट का आयात भी करना पड़ता है। इसके बावजूद 3000 मेगावॉट की गहरी खाई की मार प्रदेशवासियों को बिजली कटौती की गंभीर समस्या के रूप में झेलनी पड़ रही है। चीनी क्षेत्र में भी निजी निवेश की राह पकड़ते हुए सरकार कोशिश कर रही है कि सरकारी चीनी मिलों को बेच दिया जाए। इनके अलावा, सरकारी टूरिस्ट रेस्ट हाउस, आईटीआई और पॉलिटेक्निक के लिए भी सरकार इसी राह पर चलना बेहतर समझ रही है। बहरहाल, मायावती सरकार के तीन साल के कार्यकाल को औद्योगिक मोर्चे पर नंबर देने के मामले में राज्य के उद्योग जगत ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। पीएचडी चैंबर के रेजीडेंट डायरेक्टर ब्रिगे. अमिताभ ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा- वैसे तो उद्योग की जगत की आकांक्षाएं कहीं ज्यादा थीं लेकिन हमें भी मंदी को मद्देनजर रखते हुए किसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। मंदी के दौर के बावजूद उत्तर प्रदेश में कर संग्रह में इजाफा हुआ है, जिससे साबित होता है कि निर्माण और मांग, दोनों में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि एसोचैम के महासचिव एस.बी. अग्रवाल जरूर उद्योग जगत के लिए नतीजे देने के मामले में प्रदेश सरकार की खुली आलोचना करते हैं। उनका कहना है कि सरकार का ध्यान महज एक्सप्रेसवे के निर्माण पर ही केंद्रित रहा है जबकि बाकी के क्षेत्रों को नजरअंदाज किया गया है। अग्रवाल कहते हैं- पिछले तीन बरसों में बिजली की हालत बदतर ही हुई है। निजी निवेश के दम पर तय होगा विकास का रास्ता अब पीपीपी के रास्ते मायावती सरकार करने चलीं खस्ताहाल राज्य का बेड़ा पार निजी निवेश 1,25,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का है लक्ष्य राज्य की परियोजनाओं को पूरा करने में बड़ी कंपनियां ले रही हैं रुचि महत्वाकांक्षी एक्सप्रेसवे परियोजना को पर्यावरण की मंजूरी का इंतजार
