सेबी के द्वारा औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निमाण बोर्ड(बीआईएफआर),डनलप इंडिया लि.(डीआईएल) और 57 अन्य रेसपोन्डेंटों के खिलाफ अपील दायर करने के चलते एक्सचेंजों में डीआईएल की लिस्टिंग रुक गई है।
सेबी की यह अपील औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निमाण(एएआईएफआर)के अपेलियट अधिकारी के समक्ष की गई है। लिहाजा डीआईएल के उन राइट इश्यूओं पर अंतरिम रोक लगा दी गई है,जो 6 अप्रैल 2007 को बंद हो गए थे,और जिनको लेकर सेबी और डीआईएल के बीच मुकदमेबाजी चल रही थी। जिस पर कोर्ट ने स्टे दे दिया है और इसकी सुनवाई फिलहाल अगले एक महीने तक होने की कोई गुंजाइश नहीं है।
सेबी की अपील के कारण मुंबई,कोलकाता,अहमदाबाद,दिल्ली समेत चेन्नई के स्टॉक एक्सचेंजों में इसकी लिस्टिंग रोक दी गई है। इस बाबत डीआईएल के प्रमोटर पी.के.रूईया ने कोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि यह मामला चूंकि कोर्ट में विचाराधीन है,लिहाजा,मैं कोई टिप्पणी नही करना चाहता। मगर कंपनी की टीम सेबी की अपील को पढ़ रही है,और जल्द ही इसका जवाब देगी।
आगे रूईया ने बताया कि सेबी के इस कदम से कुछ शेयरधारकों को ही परेशानी होगी,क्योंकि वो पहले से ही एक्सचेंजों में कंपनी के शेयरों की खरीद बिक्री के लायक नही थे। सेबी की अपील जिसकी एक कॉपी बिजनेस स्टैंडर्ड के पास भी है,में एएआईएफआर से तलब किया गया है कि 16 मार्च 2007 को बीआईएफआर ने जो दिशा निर्देश जारी किए थे,उसकी साफ अवहेलना हुई है।
एएआईएफआर ने डीआईएल को इस बात की मंजूरी देकर निर्देशों की साफ तौर पर अवहेलना की है कि कंपनी अपना राइट इश्यू जारी रख सकता है। इसके अलावा कंपनी में हुई भर्तियां भी उस हद तक हुईं जो सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों के द्वारा बनाई गए एक्ट,नियमों के खिलाफ हैं। इस प्रकार, कंपनी के ये सारे कदम सेबी के एससीआरए और डिपाजिटरी एक्ट,1996 केतहत आते हैं।
बतौर बाजार के नियामक होने के चलते सेबी बाजार में होने वाले हर क्रिया-कलापों पर नजर रखती है,लिहाजा,मार्च 2007 के बाद से सेबी,बीआईएफआर और डीआईएल के बीच झगड़ा शुरू हुआ,क्योंकि सेबी को इस बात से एतराज था कि डीआईएल जैसी कमजोर कंपनी को किस आधार पर राइट इश्यू जारी रखने का आदेश बीआईएफआर ने पारित किया।
जबकि ऐसे आदेश देने और पारित करने का हक सेबी के पास है। इस तरह इस मुकदमे पर फैसला आ जाने से इस सेबी और बीआईएफआर के अधिकार स्पष्ट हो जाएंगे।कि कौन क्या क्या कर सकता है?जबकि ऐसा अक्सर होता है कि दोनो के फैसलागत अधिकार इस बात पर आकर एक दूसरे को व्यापत कर लेते हैं कि कमजोर कंपनियों को राइट इश्यू जारी रखने दिया जाए या नही।