यूरोपीय परियोजना से बुझेगी उत्तराखंड की प्यास! | शिशिर प्रशांत / देहरादून May 06, 2010 | | | | |
पिछले काफी समय से पेयजल की किल्लत झेल रहे उत्तराखंड के लिए एक अच्छी खबर है।
राज्य के पहाड़ी इलाकों में चार साल से भी अधिक समय से चल रही यूरोपीय संघ की रिवर बैंक फिल्टरेशन (आरबीएफ) परियोजना के लंबे शोध और प्रयोगों के कारण उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है।
वैज्ञानिक और इंजीनियरों को पौड़ी जिले के सतपुली और श्रीनगर जैसे पहाड़ी कस्बों में रिवरबैंक फिल्टरेशन नेटवर्क को जोड़ने में सफलता मिल गई है। आरबीएफ एक ऐसी पुरानी यूरोपीय तकनीक है जो नदियों के पानी को दूषित करने वाले हानिकारक और कार्बनिक पदार्थो को पानी से दूर करके उसे शुद्ध करने का काम करती है।
शुद्ध पानी को कुओं और पंप आदि साधनों से निकाल कर उपयोग मे लाया जा सकता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने इस परियोजना के लिए 8 करोड़ रुपये की राशि दी है और राज्य की पेयजल आपूर्ति करने वाली संस्था उत्तराखंड जल संस्थान ने इस योजना के तहत सुरक्षित पेयजल मुहैया कराए जाने के लिए पांच पहाड़ी क्षेत्रों का चयन किया है ।
योजना के लिए श्रीनगर (अलकनंदा), सतपुली (नयर), अगस्तमुनि (मंदाकिनी), कर्णप्रयाग (पिंडर)और रुद्रप्रयाग (अलकनंदा) शामिल हैं। जल संस्थान के सचिव पीसी किमोठी ने बताया कि 'इनमें से अधिकांश स्थानों पर हमारे प्रयोग सफल रहे हैं।'
उत्तराखंड की पहाड़ियां देश की गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम स्थान है । लेकिन यहां से निकलने वाली अधिकांश नदियां सूख गई है,जिससे पूरे राज्य में पेयजल की भारी किल्लत है। सरकार इस समस्या से निपटने के लिए हर साल लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं ढूंढ पाई है ।
इस प्रोजेक्ट से जुड़ हुए किमोठी ने कहा, 'हमें इस बात की घोषणा करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि हमे रिवरबैंक फिल्टरेशन प्रोजेक्ट के दौरान सतपुली और श्रीनगर में सफलता मिली है जिसे हम दूसरे पहाड़ी इलाकों में भी अपना सकते हैं।
हरिद्वार में नदी के पानी से रसायन और कचरा हटाने के लिए आईआईटी रुड़की ने 2006 में जर्मनी की ड्रेजन यूनिवर्सिटी और डजेलडर्फ वाटर कंपनी के साथ हाथ मिलाया था और इस काम को सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इस तकनीक को 2009 का नैशनल अर्बन वॉटर अवार्ड केंद्र सरकार से मिल चुका है। पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने कहा, 'राज्य में पानी की कमी को दूर करने के लिए इस तकनीक से हमें बहुत उम्मीदें हैं।'
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