आतंक के साये में दबा है टीवी-फ्रिज का कारोबार | आर कृष्णा दास / रायपुर May 05, 2010 | | | | |
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के पोमडम गांव में एक सरकारी आवास के बाहर नेम प्लेट पर बड़े बड़े अक्षरों में विकास शर्मा लिखा हुआ है।
मगर मकान के अंदर की हालत देखने पर पता चलता है मानो यह मकान काफी समय से खाली पड़ा हुआ है। दरअसल जिन महाशय का नाम इस नेम प्लेट पर लिखा हुआ है वह एक स्थानीय सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं।
शर्मा की उम्र करीब 25 साल के आसपास होगी और उन्हें इस इलाके में ही एक सरकारी मकान आवंटित किया गया है। मगर वह इस मकान में नहीं रहते और स्कूल बंद होने के बाद करीब अपनी मोटरसाइकिल से 25 किमी की दूरी तय कर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय जाते हैं जहां उन्होंने अपने दो-तीन दोस्तों के साथ किराए पर मकान ले रखा है।
शर्मा ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैं बल्कि ऐसे कई और लोग हैं जिनमें नक्सल प्रभावित सुदूर इलाकों का डर इस कदर समाया हुआ है कि वे अपना काम खत्म होने के बाद पास के जिला या ब्लॉक मुख्यालयों में लौटते हैं। उन्होंने अपने परिवारों को भी नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके से दूर ही रखा है।
ऐसे में इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में टिकाऊ उपभोक्ता (कंज्यूमर डयूरेबल) सामान की बिक्री पर खासा असर पड़ा है। नक्सल प्रभावित सुकमा में टिकाऊ उपभोक्ता सामान के डीलर शिव डांगवीर बताते हैं कि यहां काम करने वाले जो कर्मचारी बाहर रहने का खर्चा उठा सकते हैं वे यहां रहते ही नहीं हैं।
ऐसे में उनके कारोबार पर असर पड़ना तो स्वभाविक है। बस्तर के अधिकांश इलाके में सुदूर क्षेत्रों में जो जनजातीय परिवार रहते भी हैं वे बिना बिजली के जिंदगी बिता रहे हैं। ऐसे में उनके बीच टिकाऊ उपभोक्ता सामान का लोकप्रिय होना तो मुमकिन ही नहीं है।
डांगवीर बताते हैं कि इन इलाकों में सरकारी कर्मचारी ही उनके संभावित खरीदार हो सकते थे मगर जब वे खुद ही यहां अपना मकान नहीं रखते और यहां रहते ही नहीं हैं तो यहां बिक्री कैसे होगी। अधिकांश टिकाऊ उपभोक्ता कंपनियां भी बस्तर के अशांत ग्रामीण बाजारों को नजरअंदाज ही करती रही हैं।
एक प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक कंपनी के प्रमुख अनिल शर्मा कहते हैं कि बस्तर के ग्रामीण इलाकों में कारोबार पर हमारा कोई बहुत अधिक ध्यान नहीं है। एक तो कंपनी यहां सर्विस सेंटर नहीं खोल सकती है और दूसरी समस्या यह है कि इन सुदूर इलाकों में डर के मारे कर्मचारी काम भी नहीं करना चाहते हैं।
एक दूसरी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी के प्रमुख अविरल भंसाली कहते हैं कि इन इलाकों में सर्विस मुहैया कराना एक बड़ी समस्या है। हम किसी गड़बड़ी को ठीक करने के लिए बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर के तकनीशियनों को भेजना पड़ता है।
तकनीशियनों को इन नक्सल प्रभावित इलाकों में आने के लिए 200 से 300 किमी यात्रा करनी पड़ती है। हालांकि कंपनियों का मानना है कि इन इलाकों में जो कुछ भी मांग है उसमें सबसे अधिक टीवी और फ्रिज की बिक्री होती है। मगर उनका साथ ही यह भी कहना है कि जिस रफ्तार से बिक्री बढ़नी चाहिए वैसा नहीं है।
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