बाजार हिस्सेदारी की चिंता मारुति का मुनाफा हो रहा दुबला | मोटा निवेश : हालांकि कारोबार विकास के साथ मारुति की रफ्तार तेज बनी हुई है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चिंता ए 2 सेगमेंट में बाजार हिस्सेदारी खोने को लेकर है। विस्तार से बता रहे हैं | | राम प्रसाद साहू / May 02, 2010 | | | | |
कारोबार में शानदार विकास के बावजूद नई प्रतिस्पर्धा, अधिक उत्पादन लागत और क्षमता में कमी से भारत की सबसे बड़ी यात्री वाहन निर्माता मारुति सुजूकी की राह में समस्या खड़ी हो सकती है।
कंपनी वर्ष 2009-10 में यात्री वाहनों (पीवी) की बिक्री में 10 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है जो इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 29 फीसदी की बढ़त है। 2008-09 की मंदी के बाद घरेलू मांग में तेजी, बढ़ते निर्यात और ग्रामीण बाजारों में बढ़ती बिक्री से कंपनी को मदद मिली है।
2009-10 में कंपनी का निर्यात पूर्ववर्ती वित्त वर्ष की तुलना में दोगुना बढ़ कर 1.47 लाख यूनिट का रहा। इसकी कुल बिक्री में ग्रामीण बिक्री की भागीदारी अब बढ़ कर लगभग 16.5 फीसदी हो गई है जो 2008-09 में 9.5 फीसदी की तुलना में 7 फीसदी अधिक है।
यूरोप में सुधरते हालात से मारुति को भविष्य में निर्यात की अपनी रफ्तार बरकरार रखने में मदद मिलेगी। हालांकि ये सब सकारात्मक कारक हैं, लेकिन बाजार इस तथ्य को लेकर अधिक चिंतित है कि मार्च की तिमाही में नए लॉन्च के बाद इसकी बाजार हिस्सेदारी कम होती जा रही है। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि इस अवधि के दौरान मारुति का शेयर 18 फीसदी गिरा है और अब यह 1,272 रुपये पर कारोबार कर रहा है।
बाजार हिस्सेदारी में कमी
मार्च की तिमाही के लिए मारुति की बाजार हिस्सेदारी में साल दर साल 4 फीसदी से अधिक की कमी दर्ज की गई। कड़ी प्रतिस्पर्धा और क्षमता में कमी की वजह से यह बाजार हिस्सेदारी अनुक्रमिक रूप से 1.3 फीसदी घट कर 41.5 फीसदी रही।
फॉक्सवेगन पोलो, शेव्रले बीट और फोर्ड फिगो जैसे नए मॉडलों के ताजा लॉन्च की वजह से मारुति को ए 2 सेगमेंट (इसकी बिक्री का 70 फीसदी से अधिक) में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। ये तीनों मॉडल मार्च की तिमाही में लॉन्च किए गए और इनकी कीमत की रेंज 3.5 लाख रुपये से 4.5 लाख रुपये है।
मारुति को उम्मीद है कि नई वैगन आर, जिसकी कीमत 3.28 लाख रुपये और 3.81 लाख रुपये के बीच है, इस सेगमेंट में बाजार हिस्सेदारी में आई कमी को दूर करने में सक्षम होगी। इस सेगमेंट में अभी 20 से अधिक मॉडल हैं जो एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
क्षमता की समस्या
मारूति की दूसरी समस्या इसके दो संयंत्रों गुड़गांव और मानेसर में क्षमता की कमी को लेकर है। ये संयंत्र कुछ समय से 10 लाख यूनिट की अपनी पूरी क्षमता के साथ परिचालन कर रहे हैं।
प्रबंधन का मानना है कि कंपनी उत्पादकता में सुधार लाकर अपनी कुल क्षमता में 70,000 यूनिट तक की वृद्धि करने में सक्षम हो जाएगी। कंपनी ने 2011-12 तक अपने मानेसर संयंत्र में 2.5 लाख यूनिट की बढ़त हासिल करने की योजना बनाई है।
परिणाम : अपेक्षित नहीं
मार्च की तिमाही में मारुति का वित्तीय परिणाम 31 फीसदी की बिक्री के साथ आकर्षक रहा है। इसके शुद्ध मुनाफे में साल दर साल 17 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है। अनुक्रमिक आधार पर अधिक कारोबार की वजह से इसकी शुद्ध बिक्री बढ़ी है पर शुद्ध लाभ में गिरावट देखी गई है।
कच्चे माल की अधिक लागत का असर इसके मार्जिन पर देखने को मिला है। इसका मार्जिन मार्च की तिमाही के लिए 1.9 फीसदी गिर कर 13.2 फीसदी रहा है। कंपनी को उत्पादन लागत में वृद्धि, बीएस-4 मानकों के अप-ग्रेडेशन के खर्च, नए मॉडलों की शुरुआती लागत (मार्च की तिमाही में ईको और 1.2 लीटर वाले स्विफ्ट मॉडल को लॉन्च किया गया ) और विदेशी मुद्रा घाटे की वजह से अधिक खर्च से जूझना पड़ रहा है।
656 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा विश्लेषकों के अनुमान की तुलना में कम है। हालांकि कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि की कुछ हद तक भरपाई करने और नए उत्सर्जन मानकों के अनुकूल वाहनों की अपग्रेडिंग के बढ़ते खर्च को देखते हुए मारुति ने कीमतें (विभिन्न मॉडलों पर 1000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच) पहले ही बढ़ा दी हैं।
अगर मांग मजबूत बनी रहती है या कच्चे माल की कीमतें और ऊपर जाती हैं तो कंपनी अपने वाहनों की कीमतों में और इजाफा करने की संभावनाएं तलाश करने को मजबूर हो सकती है।
निष्कर्ष
इस छोटी कार निर्माता के लिए आगामी राह और चुनौतीपूर्ण हो सकती है, क्योंकि निसान और टोयोटा ने माइक्रा और इटियोस के साथ बाजार में धूम मचाने की तैयारी कर ली है। इस वित्त वर्ष में लॉन्च होने वाली ये कारें मारुति की अत्याधुनिक हैचबैक (स्विफ्ट और रिट्ज) को चुनौती दे सकती हैं।
हालांकि मारुति को अपने शानदार वितरण नेटवर्क, लागत प्रतिस्पर्धा और उत्पाद शक्ति की बदौलत बढ़त मिलेगी। कंपनी इस बढ़त की वजह से बाजार हिस्सेदारी में कमी को दूर करने में सफल रहेगी और ऑटोमोबाइल क्षेत्र के एक बड़े हिस्से पर दबदबा हासिल कर लेगी।
2010-11 में ऑटोमोबाइल क्षेत्र के 10-15 फीसदी की दर से बढ़ने की संभावना है। मौजूदा कीमत पर इसका शेयर 2010-11 के अनुमानित ईपीएस 104 रुपये के 12.2 गुना पर कारोबार कर रहा है और अगले एक साल के दौरान इसका रिटर्न लगभग 20 फीसदी रहना चाहिए।
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