ताकतवरों से लड़ने की ताकत का अभाव | पैनी नजर | | सुनील जैन / April 25, 2010 | | | | |
विगत में विभिन्न मामलों की जांचों के अंतिम परिणामों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि आईपीएल प्रमुख ललित मोदी के खिलाफ चल रही जांच से कुछ निकलकर सामने आएगा। (मसलन तहलका के मामले को देखिए जिसमें सभी आरोप सरकारी एजेंसियों ने लगाए थे)।
विभिन्न आरोपों में से एक यह है कि मोदी के संबंधियों ने विभिन्न फ्रैंचाइजी में हिस्सेदारी ली है और संभावना यह है कि ये हिस्सेदारियां उनकी बेनामी संपत्ति हों। इस तर्क के साथ समस्या यह है बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष ए. सी. मुथैया द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर विशेष अनुमति याचिका के मुताबिक, बीसीसीआई ने साल 2008 में नियम में बदलाव किया था कि बोर्ड के पदाधिकारी फ्रैंचाइजी में हिस्सेदारी ले सकते हैं।
मुथैया के मुताबिक, बीसीसीआई सचिव एन. श्रीनिवासन (चेन्नई सुपर किंग केमालिक) के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के तुरंत बाद नियम में बदलाव कर दिया गया था।
इसके मुताबिक किसी भी प्रशासक का प्रत्यक्ष का अप्रत्यक्ष रूप से बीसीसीआई केकिसी वाणिज्यिक उपक्रम में कोई हित नहीं होगा, इसमें आईपीएल, चैंपियन लीग और ट्वेंटी-20 को अपवाद करार दिया गया था। यानी इनमें वे हिस्सेदारी ले सकते हैं। ऐसे में अगर मोदी की हिस्सेदारी है तो नियम उन्हें इसकी अनुमति देता है और बीसीसीआई ने ऐसा करने की अनुमति दी है।
इस सच्चाई के अलावा कि श्रीनिवासन के पास चेन्नई सुपर किंग का मालिकाना हक है, कृषि मंत्री और बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शरद पवार के दामाद के पास मल्टी स्क्रीन मीडिया (पूर्व में सोनी) की 10 फीसदी हिस्सेदारी है और इस कंपनी को आईपीएल मैचों के प्रसारण का अधिकार मिला हुआ है।
यह सच है कि यह हिस्सेदारी उन्हें अपने पिता से मिली है और उनके पास आईपीएल से काफी पहले से यह हिस्सेदारी थी। लेकिन वरिष्ठ मंत्री के साथ जुड़ाव वाले तर्क से हितों का संघर्ष नजर आता है।
अगर सरकार तर्क देती है कि सोनी ने मोदी को रिश्वत दी है (एमएसएम ने बतौर सुविधा शुल्क वर्ल्ड स्पोर्ट्स ग्रुप को किया गया 8 करोड़ डॉलर का भुगतान अनुबंध का हिस्सा था), इस तरह से अप्रत्यक्ष तौर पर पवार का शामिल होना वास्तविकता है और इससे भी निपटना होगा।
नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल द्वारा शशि थरूर को भेजे गए ईमेल में वित्तीय अनुमानों के बारे में बताया गया था कि कोच्चि टीम पहले 10 साल तक रकम गंवाएगी, इससे इस आरोप की पुष्टि होती है कि कोच्चि फ्रैंचाइजी में उनकी दिलचस्पी थी - रिकॉर्ड में पटेल ने कहा कि उन्होंने यह अनुमान थरूर को मित्र के नाते भेजा था और यह सभी लोगों के लिए उपलब्ध था।
लेकिन यह कॉलम मोदी और उनके खिलाफ चल रही जांच से संबंधित नहीं है, बल्कि यह उससे भी बड़ा मुद्दा है कि थरूर व मोदी से क्यों पल्ला झाड़ा जाना चाहिए? दोनों ने ही अपने व्यवहार से काफी दुश्मन पैदा कर दिए और ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि दोनों में कोई राजनीतिक रूप से वजनदार नहीं हैं।
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के खिलाफ सभी मामलों पर नजर डालिए, अब सरकार इस बात से डरी हुई है कि विपक्ष के बजट कटौती प्रस्ताव पर इसकी गाज गिर सकती है। अटॉर्नी जनरल ने अदालत को बताया कि सीबीआई मायावती की याचिका पर विचार करेगी कि उनके खिलाफ चल रहा आय से ज्यादा संपत्ति का मामला बंद कर दिया जाना चाहिए।
कुछ इसी तरह के सबूत लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार के मामले में है, लेकिन प्रसाद सरकार के लिए महत्वपूर्ण हैं और विभिन्न कर अधिकारियों ने उनके पक्ष में फैसला दिया है। दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने कुछ चुनिंदा फर्मों की मदद की और इसके परिणामस्वरूप सरकार को लाइसेंस फीस के तौर पर 8-10 अरब डॉलर का चूना लगा। यह उनकी पार्टी की भारी राजनीतिक ताकत ही है कि उनके खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है और सीएजी ने मंत्री को उन सवालों में घेरा है जो स्पष्ट करता है कि जिन फर्मों को लाइसेंस मिला वे जानती थीं कि एप्लिकेशन विंडो कब खुलेगी (शुरुआती दौर में आवेदन करना महत्त्वपूर्ण था क्योंकि उन्हीं फर्मों को लाइसेंस मिला), लेकिन मंत्री को अब भी नहीं छुआ गया है।
इसी तरह दिल्ली एयरपोर्ट तब से आरोपों से घिरी रही है जब उसका निजीकरण भी नहीं हुआ था। शुरुआती दौर में आरोप था और ई. श्रीधरन कमेटी ने इसे सही पाया कि बोली लगाने वालों का चयन करने वाली मूल्यांकन प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई थी। मूल्यांकन रिपोर्ट रद्द करने के बाद जीएमआर ग्रुप ने बोली जीत ली थी और इससे पहले उसने अपने राजस्व का 46 फीसदी सरकार के साथ साझेदारी करने का वादा किया था।
हालांकि बाद में जीएमआर ग्रुप ने इस राजस्व को पुनर्परिभाषित करने की कोशिश की और नाटकीय रूप से राजस्व में सरकारी हिस्सेदारी कम कर दी। विमानन मंत्रालय को इसके साथ आगे बढ़ने की अनुमति दे दी गई। सरकार में एनसीपी की राजनीतिक ताकत को देखते हुए कहना न होगा कि किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इसी तरह भाजपाराजग में प्रमोद महाजन के महत्त्व को देखते हुए उनके खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई जब उन्होंने रिलायंस (तब अविभाजित था) को विवादास्पद यूनिवर्सल एक्सेस सर्विसेज लाइसेंस दे दिया और इस तरह से उसे फिक्स्ड लाइन टेलीकॉम लाइसेंस के जरिए मोबाइल सेवा उपलब्ध कराने की कानूनन अनुमति मिल गई।
ऐसे उदाहरणों की संख्या काफी है। सबक स्पष्ट है : कमजोर लोगों के मुकाबले राजनीतिक ताकतवरों के साथ होने वाला व्यवहार अलग होता है। मोदी की तरह आप राजनीतिक ताकत वाले मसलन पवार की गुड बुक की शुरुआत कर सकते हैं, लेकिन जब आगे बढ़ेंगे तो अस्तित्व बचाना मुमकिन नहीं होगा।
बीजद के सांसद जय पांडा ने एक कॉलम लिखा था, उसमें उन्होंने लिखा था कि थरूर अचानक सत्ता पाने वालों में से एक थे और वह राजनीति के नियम बदलना भूल गए और आपको निश्चित तौर पर पहले इसे जानना चाहिए। आधारभूत नियम यह है कि (जय पांडा को पता है, लेकिन अपने आलेख में नहीं लिखा) आपको अपने राजनीतिक कवर(और एक्स्ट्रा कवर) को हर समय अक्षुण्ण रखना होगा।
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