मुद्रा के विकल्प कारोबार को हरी झंडी | बीएस संवाददाता / मुंबई April 21, 2010 | | | | |
आयातकों, निर्यातकों और जिंस कारोबारियों को मुद्रा जोखिम की हेजिंग के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सराहनीय कदम उठाया है।
मुद्रा वायदा बाजार में आरबीआई ने विकल्प कारोबार की अनुमति दे दी है। सालाना नीति घोषणा में आरबीआई ने कहा है, 'मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों को देश के लोगों के लिए मुद्रा वायदा का विकल्प कारोबार अमेरिकी डॉलररुपये के विनिमय दरों में शुरू करने की अनुमति देने का निर्णय किया गया है।'
एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी डेरिवेटिव्स की शुरुआत अगस्त 2008 में की गई थी। औसत दैनिक कारोबार पहले ही बढ़ कर 37,523 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। दो एक्सचेंजों - नैशनल स्टॉक एक्सचेंज और मल्टी कमोडिटी एक्सचजेंज-एसएक्स- पर औसत दैनिक कारोबार क्रमश: 17,541 करोड़ रुपये और 19,983 करोड़ रुपये है।
जेपी मॉर्गन परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी नंद कुमार सुरती ने कहा, 'मुद्रा में विकल्प कारोबार की शुरुआत स्वागत योग्य कदम हे। इससे बाजार की गहराई और बढ़ेगी। मुद्रा के विकल्प कारोबार के साथ ही कंपनियों तथा आयातकों और निर्यातकों के लिए एक और उपकरण उपलब्ध होगा।'
वर्तमान में भारत के नागरिकों को दो मान्याता प्राप्त एक्सचेंजों पर चार मुद्रा जोड़े में वायदा कारोबार की अनुमति है- डॉलर, येन, पाउंड और यूरो। मुद्रा बाजार में विकल्प कारोबार की शुरुआत के कई फायदे हैं। विकल्प खरीदार को अधिकार देता है लेकिन इसे क्रियान्वित करने की बाध्यता नहीं रहती है। वायदा के मुकाबले विकल्प हेजिंग के लिहाज से सस्ता है।
वायदा बाजार में किसी निवेशक को मार्क-टु-मार्केट के फर्क का भुगतान करना होता है। विकल्प में यह जोखिम प्रीमियम तक सीमित होता है जिसका भुगतान पहले ही कर दिया जाता है। पहले, आरबीआई और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) विकल्प कारोबार की संभावनाओं पर बातचीत कर चुके हैं। आरबीआई की अनुमति के बाद अब अनुमान है कि सेबी मुद्रा के विकल्प कारोबार के लिए परिचालन दिशानिर्देश जारी करेगा।
विकल्प कारोबार में स्ट्राइक प्राइस हाजिर मूल्य पर आधारित होता है। ऐसी संभावना है कि 12 महीने के लिए मासिक अनुबंध वायदा बाजार की तरह जारी किए जाएंगे। निर्यातक, आयातक और जिंस कारोबारियों को मुद्रा बाजार में अपनी पोजीशन की हेजिंग में सहूलियत मिलेगी।
अपनी जरूरतों के अनुसार वे कॉल या पुट विकल्प की खरीदारी कर सकते हैं। कॉल विकल्प की खरीदारी तब की जाती है जब कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना होती है वहीं कीमतों के कम होने के आसार होने पर पुट विकल्प की खरीदारी की जाती है।
ब्याज दर वायदा में अल्पावधि प्रतिभूतियों को मंजूरी
आरबीआई ने लघु अवधि की परिपक्वता वाली प्रतिभूतियों के लिए ब्याज दर वायदा कारोबार (आईआरएफ) की मंजूरी दी है। लघु अवधि की परिपक्वता वाली प्रतिभूतियों में 2 साल और 5 साल की प्रतिभूतियां और 91 दिनों का ट्रेजरी बिल शामिल है।
आरबीआई-सेबी की एक स्थायी तकनीकी कमिटी, प्रोडक्ट की डिजाइन और एक्सचेंज पर इन प्रोडक्ट को पेश करने के लिए परिचालन से जुड़ी प्रक्रिया को अंतिम रूप देगी। फिलहाल एक्सचेंज पर कारोबार करने वाले आईआरएफ में केवल 10 साल की सरकारी प्रतिभूतियां उपलब्ध हैं।
क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोलकनाथ का कहना है, 'जब ब्याज दरों में बढ़ोतरी हो रही है तो लोगों का इरादा बाजार के अल्पावधि के उपकरणों में कारोबार करने का है। इन प्रतिभूतियों के पेश किए जाने से ब्याज दर वायदा बाजार का अंतर भरेगा।'
आरबीआई की सालाना नीति में कहा गया है, 'पिछले साल 10 साल की सरकारी प्रतिभूति पर 31 अगस्त को ब्याज दर वायदा अनुबंध शामिल किया गया। बाजार से बेहतर फीडबैक मिलने और तकनीकी सलाहकारी समिति (टीएसी) की सिफारिशों के आधार पर विदेशी एक्सचेंज और सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार में कम अवधि की परिपक्वता वाले उत्पाद पेश किया जा रहे हैं।'
एक्सचेंज पर होने वाले ब्याज दर वायदा का भौतिक निपटान होता है, यह एकमात्र ऐसा सेगमेंट है जहां भौतिक निपटान होता है। वहीं इक्विटी और मुद्रा बाजार में नकद निपटान होता है। हालांकि आरबीआई की नीति में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि नए प्रोडक्ट में नकद निपटान की मंजूरी मिलेगी या नहीं।
बाजार के कुछ खिलाड़ियों को ऐसा लगता है कि 91 दिनों के ट्रेजरी बिलों के लिए इसकी मंजूरी मिल सकती है। इस पर सेबी को अपने दिशानिर्देश के साथ अभी आना है। रेलिगेयर म्युचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम के प्रमुख आशीष निगम का कहना है, 'ज्यादा प्रोडक्ट से ब्याज दर डेरिवेटिव बाजार और बढ़ेगा साथ ही नकदी भी बढ़ेगी।'
फिलहाल आईआरएफ में रोजाना कारोबार नाम मात्र होता है। ज्यादातर गतिविधि ओवर-दी-काउंटर मार्केट में और ज्यादा कारोबार एक रात के अदला-बदली में होता है। यह ट्रेडिंग केवल एक एक्सचेंज, नैशनल स्टॉक एक्सचेज में होती है।
विश्लेषकों का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इस बाजार में इतने सक्रिय नहीं हैं। प्रोडक्ट की जटिलता की वजह से खुदरा निवेशक भागीदारी नहीं करते हैं। परिचालन फ्रेमवर्क के लिए आरबीआई आंतरिक कार्यसमूह से अंतिम रिपोर्ट की उम्मीद कर रहा है।
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