... आखिर कब बदलेगी तकदीर सिंगल स्क्रीन की | बॉलीवुड बिजनेस | | शिखा शालिनी / April 14, 2010 | | | | |
जिंदगी की तमाम जद्दोज़हद के बीच यकीनन हर आदमी फुरसत के कुछ पल चाहता है।
जिंदगी की भागदौड़ में फुरसत के पल निकालना बेहद मुश्किल भी लगता है लेकिन सिनेमा एक ऐसा शगल है जो थोड़े पल के लिए हमें एक रूमानी तो कभी हकीकत से रूबरू कराने वाला एक जरिया बन जाता है।
यह अलग बात है कि आजकल लोग मल्टीप्लेक्स के डिजिटल डॉल्बी साउंड के साथ बड़े पर्दे पर उस रूमानी दुनिया को महसूस करते हैं और सस्ता सिंगल स्क्रीन थियेटर सिनेमा पुरानी फिल्मों की तरह अब आउटडेटेड सा लगता है। लेकिन सिंगल स्क्रीन थियेटर में भी बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं। इसकी जरूरत फिल्म जगत को भी है और आम आदमी के लिए भी।
फिल्मकार महेश भट्ट कहते हैं, 'फिल्मों के बजट और प्रमोशन के खर्च में इजाफा हो रहा है ऐसे में रिकवरी बेहद जरूरी है। मल्टीप्लेक्स में टिकट की कीमत इतनी ज्यादा है कि फिल्म के कारोबार में मुश्किल आ रही है। रिकवरी के लिए जरूरी है कि निर्माता मल्टीप्लेक्स के साथ सिंगल स्क्रीन में भी फिल्में रिलीज करें।'
फिल्म कारोबार से जुड़े विशेषज्ञ तरण आदर्श का कहना है कि मल्टीप्लेक्स के टिकट इतने महंगे हैं कि अगर सिंगल स्क्रीन में बेहतर सुविधा मिले तो लोग इस सस्ते विकल्प को जरूर पसंद करेंगे। पिछले साल फिल्म वितरकों और मल्टीप्लेक्स के बीच विवाद के दौरान और आर्थिक मंदी से जुझते लोगों ने बजट का ख्याल रखते हुए सिंगल स्क्रीन की ओर रूख किया।
कैसी है चुनौतियां
मल्टीप्लेक्स चेन बढ़ने से मेट्रो शहरों में सिंगल स्क्रीन थियेटर कमाई नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में उनके पास विकल्प है कि वे उसे दो स्क्रीन में तब्दील करें, सिनेमा हॉल को बंद करें या फिर मल्टीप्लेक्स बनाने की इजाजत दें।
दिल्ली में सरकार ने सिंगल स्क्रीन थियेटर को यह इजाजत दी है कि वे बड़े स्क्रीन को दो स्क्रीन में तब्दील करें लेकिन उन्हें न्यूनतम 300 सीट रखनी होंगी और बाकी जगहों का इस्तेमाल वे व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं। मल्टीप्लेक्स चेन का विस्तार छोटे शहरों में भी होने लगा है। ऐसे में छोटे शहरों के सिंगल स्क्रीन थियेटर पर भी संकट के बादल महसूस किए जा सकते हैं।
दिल्ली के डिलाइट थियेटर के मालिक और नैशनल एसोसिएशन ऑफ मोशन पिक्चर्स ऐंड एक्जीबिटर्स के महासचिव शशांक रायजादा का कहना है, 'देश में सिंगल स्क्रीन का भविष्य बेहतर हो सकता है लेकिन इसे दर्शकों का ध्यान रखते हुए थोड़ा अपग्रेड करने की जरूरत है। फिलहाल टिकट पर 20-35 फीसदी तक टैक्स है और पाइरेसी का संकट इतना ज्यादा है कि सिंगल स्क्रीन थियेटर को मुनाफा पाने में काफी जद्दोजहद करनी होती है।'
गौरतलब है कि दिल्ली में जहां 20-22 सिंगल स्क्रीन बंद हुए वहीं मुंबई में यह आंकड़ा 49 से भी ज्यादा पार कर रहा है। सरकार ने भी कुछ साल पहले मल्टीप्लेक्स को 3 साल तक के लिए कर में छूट दी थी लेकिन सिंगल स्क्रीन में कोई भी तब्दीली करने के लिए शर्त रखी गई कि पुराने ढांचे का 33 फीसदी हिस्सा पहले की तरह ही समान होना चाहिए।
लेकिन अब सिंगल स्क्रीन खुद को मल्टीप्लेक्स से मुकाबला करने के लिए तैयार कर रहे हैं। मेट्रो शहरों के कई सिंगल स्क्रीन अब हाइटेक होने लगे हैं और मल्टीप्लेक्स की सुविधाओं के मुकाबले सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल भी दर्शकों को सुविधाएं दे रहे हैं। अब सिंगल स्क्रीन थियेटर में भी आप मल्टीप्लेक्स की तरह बेहतरीन सीट, फू ड कोर्ट, गेमिंग जोन, बेहतर माहौल, नया साउंड सिस्टम और प्रोजेक्टर देख सकते हैं।
पीवीआर के सीईओ अमिताभ वर्धन का कहना है, 'मुझे लगता है कि कम सुविधा वाले मल्टीप्लेक्स के सामने सिंगल स्क्रीन का प्रदर्शन हमेशा ही बेहतर होगा। दक्षिण भारत में सिंगल स्क्रीन खूब चलते हैं। उत्तर प्रदेश में लोग मल्टीप्लेक्स के बजाय सिंगल स्क्रीन थियेटर में जाना पसंद करते हैं।' मिसाल ऐसी भी हैं कि जो फिल्में मल्टीप्लेक्स में नहीं चल पाई, उनने सिंगल स्क्रीन थियेटर में धूम मचाई। इनमें वॉन्टेड, गजनी, प्रिंस, वीर जैसी फिल्में शामिल हैं।
हालांकि दिल्ली के सबसे पुराने सिंगल स्क्रीन थियेटर रीगल के मालिक विशाल चौधरी के बेटे विनय महाजन का कहना है, 'सिंगल स्क्रीन में दर्शकों की तादाद बेहद कम है और हम किसी भी तरह से अपना खर्च निकाल रहे हैं। बेहतर लोकेशन के बावजूद दर्शक नहीं आते। सरकार जब तक सिंगल स्क्रीन थियेटर के व्यावसायिक विकास की मंजूरी नहीं देगी तब तक इनका भविष्य अंधकारमय ही है।'
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