सीएसआईआर की अगुआई में टीबी की दवा की खोज! | अनसुनी आवाज | | श्रीलता मेनन / April 12, 2010 | | | | |
ये हैं चिकित्सा विज्ञान के टिम बर्नर ली। यह व्यक्ति भारत में है और विज्ञान के छात्रों और दवाओं पर शोध करने वाले देसी-विदेशी शोधकर्ताओं के नवीनतम हीरो हैं।
इनका नाम है समीर ब्रह्मचारी तथा वे विज्ञान और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के निदेशक हैं। साथ ही वे भारत द्वारा शुरू किए गए ओपन सोर्स ड्रग डिस्कवरी (ओएसडीडी) कार्यक्रम के संस्थापक व मेंटर भी हैं।
समीर ब्रह्मचारी ने गरीब लोगों को चपेट में लेने वाली बीमारियों की दवाएं बनाने का सपना देखा है और यह कुछ उसी तरह का है जैसे कि टिम बर्नर ली ने देखा था। टिम बर्नर ली ने वर्ल्ड वाइड वेब का निर्माण किया था और उसे दुनिया भर के लोगों को बिना किसी लागत के यानी मुफ्त में उपलब्ध कराया।
ब्रह्मचारी ने एक ऐसा प्लैटफॉर्म तैयार करने का सपना देखा है जो दुनिया भर की दवा कंपनियों, शोधकर्ताओं, छात्रों और ऐसे लोगों जो कि टीबी की दवा की खोज के हर चरण में भागीदारी करना चाहते हैं, को मदद देगा। टीबी एक ऐसी बीमारी है जो गरीब लोगों को अपना शिकार बनाती है और कोई भी इस बीमारी से लड़ने के लिए बेहतर दवा का निर्माण नहीं कर रहा है।
ओएसडीडी इस बाबत पहला हमला बोल चुका है। इसने दुनिया में पहली बार ओपन सोर्स के जरिए एक अणु (मॉलिक्यूल) की पहचान की है। इस अणु की प्रकृति ऐसी है जो लक्षित जीव यानी रोगाणु के खिलाफ है (इस मामले में टयूबरक्लॉसिस माइक्रो बैक्टीरियम)।
अब ओएसडीडी ने इसे दवा बनाने वाली एक कंपनी को सौंप दिया है, जो इसे अग्रणी चरण तक ले जाने की खातिर इसके साथ साझेदारी कर रही है, यानी वह कंपनी दवा का निर्माण करेगी। ओएसडीडी पर बनी सहमति के तहत दवा कंपनी को लागत पर 10 फीसदी अतिरिक्त मिलेगा और इस दवा का पेटेंट कराया जाए या फिर नहीं कराया जाए, लेकिन यह उन सभी लोगों के लिए उपलब्ध होगी जो इसका निर्माण करना चाहेंगे।
ब्रह्मचारी कहते हैं - ओएसडीडी का यह आधारभूत नियम है और सभी साझेदार इसे स्वीकार करते हैं। इस मामले में सहयोग करने वाली कंपनी का नाम है जुबिलेंट ऑर्गेन्सिस। शुरुआत से ही अणु (मॉलिक्यूल) को सामान्य (जेनरिक) रखा गया है और खोज की पूरी प्रक्रिया यानी अणु का पता लगाने से लेकर आखिर तक ऑनलाइन है और इसे पूरी तरह से सार्वजनिक किया गया है।
कोई भी व्यक्ति बीच में आ सकता है और सुधार व सुझाव की उसी तरह पेशकश कर सकता है जैसे कि विकिपीडिया में की जाती है। ओएसडीडी के साथ साझेदारी करने वाली कंपनियां हैं टीसीजी लाइफ साइंसेज, प्रेमाज बायोटेक, सुगेन लाइफ साइंसेज, विमता लैब। ये सभी कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र के शोध संस्थानों मसलन केंद्रीय दवा शोध संस्थान के अलावा हैं।
निश्चित तौर पर साझेदार और प्रशंसकों में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शामिल है जिसने कहा है कि सीएसआईआर ने ओपन सोर्स के लिए एक मॉडल बनाया है और अभी तक के लिहाज से यह सबसे अद्वितीय है। साझेदारों में दुनिया भर के सैकड़ों छात्र भी शामिल हैं जिन्होंने पिछले तीन महीने में टीबी बैक्टीरियम जीन के 4000 जीनों की फिर से व्याख्या की है।
इस काम में शामिल होने वाले 850 छात्र छोटे शहरों व अनजाने कॉलेज केहैं और ये कनेक्ट टू डीकोड प्रोग्राम के हिस्से हैं। गूगल ग्रुप के जरिए इन जीनों पर उपलब्ध सामग्री पर उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है वे उसका गहनता के साथ अध्ययन कर रहे हैं।
ये अध्ययन पूरी दुनिया में बिखरे पड़े हैं। कह सकते हैं कि ये ऐसे अध्ययन हैं जो किए गए पर बाद में जिन्हें भुला दिया गया। इस हफ्ते दिल्ली में होने वाले एक सम्मेलन में इन्हें इकट्ठा करके सबके सामने रखा जाएगा और टीबी जीनोम की बाबत यह अब तक की सबसे विस्तृत दृश्य सामग्री होगी।
सामान्यत: किसी अध्ययन को संभावित दवा के निर्माण तक यानी इसके अंतिम मुकाम तक नहीं ले जाया जाता। परियोजना निदेशक जाकिर थॉमस कहते हैं कि ओएसडीडी शोधकर्ताओं की पूरी मदद करता है। चूंकि देश के युवा छात्र इसमें हिस्सा ले रहे हैं, लिहाजा ब्रह्मचारी इसे वास्तविक शिक्षा बताते हैं।
उन्होंने कहा कि एक ओर जहां सरकार सबसे अच्छे विज्ञान छात्र को वजीफे की पेशकश करती है, वहीं मैं सामान्य छात्र को सबसे अच्छे छात्र में तब्दील कर रहा हूं। मुझे कभी भी प्रथम श्रेणी हासिल नहीं हो पाया। जम्मू के एक छात्र अंशु बेउल्लाह राम अपने थीसिस के लिए टीबी के दो जीन पर शोध कर रही थी। इस प्रोजेक्ट पर एक महीने के दौरान उन्होंने टीबी के 4000 जीनों का पता लगा लिया।
भारत सरकार आज विशेष रूप से ओएसडीडी को बेहद चाहत के साथ देख रही है क्योंकि प्रधानमंत्री ने इस दशक को आविष्कार का दशक घोषित किया है। तो क्या इससे भी ज्यादा कोई अनूठी और अभिनव चीज हो सकती है?
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