पानी की कीमत चुकाए | संपादकीय / March 25, 2010 | | | | |
केरल सरकार की एक कमेटी ने कहा है कि पलक्कड़ जिले में पलाचिमाड़ा के कोका-कोला संयत्र को 2004 में बंद किए जाने से पहले इसने पर्यावरण को 216 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया है लेकिन कंपनी ने स्पष्ट तौर पर इससे इनकार किया है।
कंपनी ने तर्क दिया है कि उसे कभी भी कमेटी के सामने सबूत पेश करने के लिए नहीं कहा गया था और इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। दूसरे शब्दों में जब राज्य सरकार ने कंपनी पर जुर्माना लगाने का फैसला किया तो यह निश्चित था कि मामला अदालत पहुंचेगा।
शायद यह उच्चतम न्यायालय में लंबित मूल मामले से जुड़ जाएगा जिसमें इसी तरह का कोका-कोला संयंत्र शामिल है। इस मामले में जब बात केरल उच्च न्यायालय पहुंची तो एकल न्यायाधीश वाले पीठ ने पंचायत के पक्ष में फैसला दिया जो चाहता था कि संयंत्र बंद हो जाए।
पंचायत का तर्क था कि इससे पानी की उपलब्धता कम हो रही है और संयंत्र से रिसने वाला पानी आसपास के इलाकों को नुकसान पहुंचा रहा है। कोका-कोला ने इस फैसले को खंडपीठ के सामने चुनौती दी। इसके द्वारा स्थापित कमेटी की जब रिपोर्ट आई तो अदालत ने फैसला दिया कि कोका-कोला रोजाना 5 लाख लीटर पानी ले सकता है, मगर तब नहीं जब मॉनसून सामान्य से कम हो।
द सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट, जिसने कहा था कि कोका-कोला व पेप्सी में कीटनाशक पदार्थों के अंश हैं, ने कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती दी। उसने तर्कदिया कि इसने इलाके की रिचार्जिंग क्षमता को ज्यादा आंका था और इस तरह से पांच लाख लीटर का आंकड़ा ज्यादा था। यह बताता है कि कोका-कोला को दोषी साबित करना आसान काम नहीं होने जा रहा है।
ज्यादा यकीन के साथ यह कहा जा सकता है और यह पेप्सी पर लागू होता है जिसे केरल सरकार ने पानी के उपभोग में कटौती करने को कहा है कि क्या भारत को भूजल उपयोग नीति की दरकार है। फिलहाल, सच्चाई यह है कि इस बाबत किसी तरह का कानून नहीं है।
जमीन का मालिक या इसे लीज पर लेने वाला जितना चाहे पानी का उपयोग कर सकता है - ऐसे में कोका-कोला व पेप्सी और वास्तव में दूसरे उपभोगकर्ता भी मामूली शुल्क देकर पानी का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। साल 2004 तक कोका-कोला ने बेचे गए प्रति लीटर पर चार लीटर पानी का उपभोग किया था (बोतल में मौजूद कोला समेत) और अब यह उपभोग घटकर 3.3 लीटर पर आ गया है।
लेकिन कंपनी प्रति एक हजार लीटर पर सिर्फ 30-40 पैसे का भुगतान करती है और यह भुगतान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिए गए सेस के जरिए करती है। प्रति लीटर कोला के लिए 3.3 लीटर पानी का इस्तेमाल, यानी वह बेचे गए हर दस लीटर कोला पर सिर्फ एक पैसे का भुगतान करती है।
ऐसा करके जहां कोका-कोला व पेप्सी सुर्खियां बटोर रही हैं, खास तौर से अगर हम पानी की लागत और कंपनी द्वारा बेचे गए कोला की तुलना करें, पर यह सभी औद्योगिक फर्र्मों पर लागू होता है।
कुछ साल पहले, सरकार ने एक ऐसा कानून बनाने की बात शुरू की थी, जिसमें उद्योग को भूजल के इस्तेमाल के लिए वास्तविक कीमत चुकाने की दरकार होती, लेकिन यह बात इससे आगे नहीं बढ़ पाई। सरकार जहां प्रदूषण पर दावे व प्रतिदावे पर नजर डालती है, वहीं अब समय आ गया है कि इस बाबत कानून बनाया जाए।
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