चीनी-दाल पर उलटा पड़ा दांव | बीएस संवाददाता / लखनऊ March 10, 2010 | | | | |
सस्ती चीनी और अरहर की दाल बेचने का उत्तर प्रदेश कर्मचारी कल्याण निगम का दांव उलटा पड़ गया है।
खुले बाजार में चीनी और अरहर के दामों में आ रही गिरावट के चलते निगम को अब अपनी इस योजना में घाटा उठाना पड़ रहा है। माया सरकार के निर्देश पर जब निगम ने सस्ती दरों पर अरहर की दाल और चीनी बेचना शुरू किया था तो उस समय इसे जनता ने हाथों-हाथ लिया था।
अब जबकि खुले बाजार में चीनी और अरहर की दाल की कीमतों में गिरावट आनी शुरू हो गई है तो निगम को अपनी मंहगी दरों पर खरीदी गई चीनी और दाल को खपाना मुश्किल हो रहा है। जब खुले बाजार में अरहर की दाल 80 रुपये और चीनी 45 रुपये किलो बिक रही थी तब कर्मचारी कल्याण निगम ने इसे 70 रुपये और 40 रुपये के हिसाब से बेचना शुरू किया था।
दाम गिर जाने के चलते अब निगम को चीनी और अरहर की दाल के सौदे में खासा घाटा हो रहा है। इस समय खुले बाजार में चीनी के दाम गिर कर 35 रुपये किलो और अरहर की दाल 62 रुपये किलो बिक रही है। निगम ने जनवरी के महीने में थोक बाजार से महंगे दामों पर दाल और चीनी खरीदी थी।
अधिकारियों का कहना है कि हाल के दामों को देखते हुये निगम की दाल को 70 रुपये में और चीनी को 40 रुपये में खरीदने वाले तो मिलने से रहे जबकि कीमत घटा कर बेचने में खासा घाटा होगा। ऐसी हालात में निगम अपने माल को थोक भाव में बाहर की मंडियों में खपाने की योजना बना रहा है। निगम के अधिकारियों ने कोलकाता की मंडियों में बात कर अपना माल वहां खपाने की जुगत भिड़ाई है।
इस समय कर्मचारी कल्याण निगम सूबे के 55 जिलों में 170 कैंटीनों का संचालन करता है। इन कैंटीनों से सरकारी कर्मचारियों को रियायती दरों पर सामानों की बिक्री की जाती है। कर्मचारी कल्याण निगम अपनी कैंटीनों से जो उत्पाद बेचता है, उन पर वैट से छूट रहती है।
फिलहाल उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी कल्याण निगम अपनी कैंटीनों के परिचालन के जरिए लाभ नहीं कमा पा रहा है। सूबे के ज्यादातर जिलों में चलने वाली कैंटीनें घाटे में चल रही हैं। अकेले राजधानी में चलने वाली निगम की मुख्य कैंटीन, जो जवाहर भवन में स्थित है, फायदे में चल रही है।
दो साल पहले निगम ने सरकार से अपनी कैंटीनों के जरिए गैस के सिलेंडर, सीमेंट और दवा बेचने की सरकार से अनुमति मांगी थी। सरकारी सहमति मिलने के बाद इनकी बिक्री राजधानी की कैंटीनों से शुरू की गई थी।
साल भर तक इन उत्पादों की बिक्री करने के बाद भी निगम की गाड़ी पटरी पर न आ सकी और अंतत इनकी बिक्री में निगम को घाटा ही नजर आया, जिसके बाद सीमेंट, गैस और दवा की बिक्री बंद कर दी गई।
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