शहरों में बुनियादी ढांचों के विकास के लिए शुरू किए गए जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी पुनर्निर्माण अभियान (जेएनएनयूआरएम) को फंड के लाले पड ग़ए हैं। केंद्र सरकार ने जेएनएनयूआरएम के तहत शहरों में बुनियादी ढांचों के विकास (शहरी विकास मंत्रालय के तहत) और शहरों में रहने वाले गरीब लोगों के कल्याणार्थ परियोजनाओं के लिए (आवासीय और गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के तहत) 50,000 करोड रुपये उपलब्ध कराने का वादा किया है। इस मिशन के तहत फंड अनुदान के रूप में दिया जाता है, जिसे पहले से तय विकास के एजेंडे के साथ जोड़ दिया जाता है। इस अनुदान की राशि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर देती हैं और उम्मीद की जा रही थी कि इसकी मदद से मिशन की सात सालों की अवधि में देश के शहरी क्षेत्रों में निवेश बढ़कर 100,000 करोड रुपये के स्तर पर पहुंच जाएगा। लेकिन हालत कुछ अलग कहानी बयां कर रहे हैं। इस बारे में शहरी विकास मंत्रालय के सचिव डा. रामचंद्रन कहते हैं 'ज्यादातर राज्यों के पास फंड नहीं हैं, लिहाजा मांग के बावजूद भी हम नई परियोजनाएं शुरू करने की स्थिति में नहीं हैं।' आंध्र प्रदेश का ही उदाहरण लें तो इस मिशन (2007-2012) के लिए राज्य सरकार ने 1,718 करोड रुपये का फंड उपलब्ध कराया था, जबकि पिछले साल अक्टूबर के अंत में 1,780 करोड़ रुपये उपलब्ध कराने का वादा किया गया था, जो आवंटित राशि से अधिक था। अब अतिरिक्त परियोजनाएं शुरू करने के लिए राशि नहीं बची है। कम आवंटन हालांकि, यह हो सकता है कि जितनी राशि उपलब्ध कराने की बात की गई थी, उतनी उपलब्ध कराई जा चुकी है, लेकिन परियोजनाओं पर इनका आवंटन पूरी तरह से नहीं हो पाया है। जेएनएनयूआरएम के तहत 65 शहरों में शुरू की जाने वाले बुनियादी परियोजनाओं के लिए करीब 25,000 करोड़ रुपये के फंड उपलब्ध हैं, लेकिन अब तक राज्यों को सिर्फ 10,000 करोड रुपये ही आवंटित हो पाए हैं। शहरों में रहने वाले गरीब लोगों के उध्दार के लिए शुरू की जाने वाली परियोजनाओं का हाल तो और भी बुरा है और अब तक मात्र 7,532 करोड़ रुपये ही आवंटित हो पाए हैं। कम आवंटन होने के पीछे कई वजहें हैं। हाल ही में सरकार ने वित्त मंत्रालय के निर्देश पर सुधार के एजेंडे में किसी भी तरह की छूट नहीं देने का फैसला किया है। इस बाबत रामचंद्रन कहते हैं ' दूसरी और तीसरी किस्तों के अनुदान के लिए ढिलाई की सहमति कैबिनेट देती थी। लेकिन चौथी किस्त के आवंटन में हमें इसमें लचीलापन दिखाने के संबध में कोई निर्देश नहीं दिया गया है।' इस बात को लेकर भी चिंता जताई जा रही है कि कुछ राज्य मिशन जेएनएनयूआरएम के लिए रकम तो ले रहे हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। रामचंद्रन कहते हैं 'गेंद अब राज्य सरकार के पाले में है। अधिक से अधिक रकम हासिल करने के लिए उन्हें पहले परियोजनाओं पर काम करना होगा।' बढे मिशन का दायरा? कुछ लोग इस मिशन के लिए फंड में बढ़ोतरी किए जाने के साथ ही इसका दायरा मौजूदा 65 शहरों से बढाए जाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि दिसंबर 2005 में शुरू हुए इस मिशन ने बहुत बड़ा कमाल नहीं किया है और परियोजनाएं भी आधी-अधूरी हैं। आलोचक दावा करते हैं कि अब वैकल्पिक सुधारों और आवश्यक सुधारों में से भी आधे को ही पूरा किया जा चुका है। इस बारे में रामचंद्रन कहते हैं 'मुझे लगता है कि विकास की गति जारी रखने के लिए हमें इस मिशन के दायरे को बढ़ाने की जरूरत है। हमें लगातार नई परियोजनाओं पर ध्यान देना चाहिए।' पिछले साल बजट में वित्त मंत्री ने ध्यान दिलाया था कि कैसे जेएनएनयूआरएम राज्य सरकारों का ध्यान शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास की तरफ खींचने में सफल रही है।
