बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता पर बना हुआ है दबाव | अभिजीत लेले / मुंबई February 10, 2010 | | | | |
वित्तीय फंडामेंटल में सुधार और उद्योगों में तेजी की वापसी से लगता है कि आने वाले दिन बेहतर होंगे। लेकिन बैंकों को इस बात से शायद ही सुकून मिल रहा हो।
बैंक स्लिपेज को लेकर चिंतित हैं क्योंकि 39 सूचीबध्द बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) पिछले महीने में बढ़ कर 15,000 करोड रुपये से अधिक की हो गई हैं।
बैंकरों ने कहा, 'बुरे दिन समाप्त हो चुके हैं और डिफॉल्ट की रफ्तार में कमी आएगी। लेकिन अभी भी अगले एक-दो तिमाहियों तक हम पुनगर्ठित ऋण, छोटी और मझोली कंपनियों और वाणिज्यिक रियल एस्टेट श्रेणी पर अपनी निगाह बनाए रखेंगे।'
इसके अलावा, कृषि ऋण खास तौर से बड़े किसानों (जिनके पास 2 एकड़ से अधिक जमीन है) को दिया गया ऋण कर्ज माफी योजना के तहत आता है और बैंकों के लिए चिंता का यह दूसरा क्षेत्र है। इन किसानों को कुल ऋण के 75 प्रतिशत का भुगतान दिसंबर 2009 तक करन था। शेष 25 प्रतिशत राशि का भुगतान सरकार बैंकों को करने वाली थी।
दिसंबर 2009 में समाप्त हुई तीसरी तिमाही में परिसंपत्ति की गुणवत्ता पर दबाव रहा। डिफॉल्ट की रफ्तार में तेजी आई। 39 सूचीबध्द बैंकों की बकाया गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां तीन महीने में 5,244 करोड रुपये बढ़ कर दिसंबर 2009 के अंत में 70,741 करोड़ रुपये हो गई।
जुलाई से सितंबर 2009 की तिमाही में 3,911 करोड रुपये के नए एनपीए जुड़े जो अप्रैल से जून की अवधि के 2,258 करोड़ रुपये की तुलना में अधिक थे। आर्थिक वृध्दि के माहौल के सुधरने के साथ ही मंदी काप्रभाव घटा है। एनपीए में और बढ़ोतरी की रफ्तार क्रमिक तौर पर आने वाली तिमाहियों में घटेगी।
भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष ओ पी भट्ट ने कहा कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में सबसे अधिक बढ़ोतरी दूसरी तिमाही (2,057 करोड़ रुपये) में हुई। दिसंबर 2009 की तिमाही में इसकी रफ्तार में कमी आई। इस सबसे बड़े ऋणदाता के सकल एनपीए में 1,485 करोड रुपये की बढ़ोतरी हुई। आने वाली तिमाहियों में इसमें बढ़ोतरी कम होगी।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा कि पुनर्गठन की गतिविधियों में तेजी आने और आर्थिक वृध्दि की रफ्तार में अनुमान से कहीं अधिक तेजी आने से बैंकिंग प्रणाली द्वारा रिपोर्ट की गई एनपीए में उस हिसाब से बढ़ोतरी शायद ही हो जैसी उम्मीद पहले की जा रही थी। बैंकरों ने बताया कि कुछ पुनर्गठित ऋण अगली तिमाहियों में एनपीए में बदल सकते हैं क्योंकि कंपनियां और अधिक वित्तीय बोझ नहीं सह सकतीं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने दिसंबर 2008 में बैंकों को यह अनुमति दी थी कि वे एक बार किए जाने वाले उपाय के रूप में वैसी कंपनियों को दिए ऋण का पुनर्गठन कर सकते हैं जो बाह्य प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह से नकदी की कमी से जूण् रही हैं। बैंकों की बुक में ऐसे ऋणों को मानक परिसंपत्ति के तौर पर देखा जाना था।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक साल 2009 के मध्य तक बैंकों ने अपने ऋण के लगभग 4.2 प्रतिशत का पुनर्गइन किया। इन मामलों के स्लिपेज से मध्यावधि में बैंकिंग प्रणाली की परिसंपत्ति गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
एसबीआई की बात करें तो इसने 26,794 करोड़ रुपये के ऋण का पुनर्गठन जून 2009 तक किया। इसमें से 996 करोड रुपये दिसंबर 2009 तक एनपीए की श्रेणी में आ गिरे। इस प्रकार स्लिपेज अनुपात 5.93 प्रतिशत का रहा।
अगर ऋणों की वसूली नहीं हुई तो इन पुनर्गठन के मामलों को सहारों के दूसरे दौर की जरूरत पड सकती है। आरबीआई के नियमों के मुताबिक ऐसे मामलों को 'सब-स्टैंडर्ड' परिसंपत्तियों के तौर पर देखा जाएगा। स्लिपेज अल्पावधि के लिए होगा।
बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों कहा कि कंपनियों की परेशानियों को गहराई से दूर करने का प्रयास नहीं किया गया है। पुनर्गठन कंपनियों और उनके प्रबंधन द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर जल्दबाजी में की गई। ऐसे मामलों में जिन मुद्दों पर विचार नहीं किया गया है वे आने वाली तिमाहियों में सामने आएंगे और बैंकों से दूसरे दौर के सहारे की मांग की जाएगी।
ऐसे ऋणों को गैर-निष्पादित ऋण के तौर पर देखा जाएगा। रियल एस्टेट क्षेत्र के छोटे खिलाड़ियों की तरफ से परिसंपत्ति गुणवत्ता की जो चिंता सामने आ रही है इसके बारे में धनलक्ष्मी बैंक के थोक बैंकिंग के प्रमुख राजीव देवड़ास ने कहा कि बाजार में वाणिज्यिक रियल एस्टेट का प्रवाह भारी मात्रा में हो रहा है लेकिन इसकी मांग अभी भी कम है।
उन्होंने कहा कि रियल्टी क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी मांग में कमी और संसाधनों के अभाव के प्रबंधन के मामले में सक्षम रहे। लेकिन छोटे खिलाड़ी जिनकी निवेश सीमा सीमा सीमित है और जिन पर बैंकों के कर्ज चुकाने का दबाव है, उनमें जोखिम अधिक है।
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