शुध्द लाभ में आई कमी, एनआईएम में हुआ सुधार | बैंकों की तीसरी तिमाही के परिणामों की समीक्षा | | बी जी शिरसाठ / मुंबई February 05, 2010 | | | | |
जमाओं की कीमत पुनर्निधारित करने और ऋण जमा अनुपात (सीडी) सुधरने से भारतीय बैंकों, जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों बैंक शामिल हैं, के शुध्द ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में दहाई अंकों की बढ़ोतरी देखी गई।
लेकिन निजी बैंकों के एनआईएम में जहां 16.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई वहीं सार्वजनिक बैंकों के लिए यह आंकड़ा 12.23 प्रतिशत का रहा। पिछली दो तिमाहियों में निजी बैंकों के एनआईएम में ईकाई अंक की बढ़ोतरी हुई थी क्योंकि उधारी की लागत जहां बढ़ी थी वहीं प्रधान उधारी दरों में कमी आई थी।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बात करें तो सितंबर 2009 में उनका एनआईएम 8.3 प्रतिशत से बढ़ कर 12.23 प्रतिशत हुआ है। उधार देने से अर्जित ब्याज और ऋणदाताओं को दिए गए ब्याज के अंतर को शुध्द ब्याज आय कहते हैं। बैंक ब्याज देते भी हैं और कमाते भी हैं यही वजह है कि ब्याज उनकी कमाई और खर्च दोनों का एक जरिया है।
ऋण जमा अनुपात बैंकिंग प्रणाली के स्वास्थ्य का सूचकांक है जो बैंकिंग क्षेत्र की कुल जमा वृध्दि और ऋण की मांग के अनुपात को व्यक्त करता है। ऋण जमा अनुपात घटने का मतलब है कि बैंकों के पास फंड तो है लेकिन ऋण की मांग उसके अनुसार नहीं है। दीर्घावधि में इससे बैंक की लाभोत्पादकता प्रभावित होती है।
हालांकि, शुध्द ब्याज आय में मजबूत बढ़ोतरी से कुल मिला कर बैंकों के शुध्द लाभ बढ़ने में मदद नहीं मिली। 43 सूचीबध्द बैंकों के लाभ में 3 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की शुल्क आधारित आय में कमी और खराब परिसंपत्तियों के लिए प्रावधान में बढ़ोतरी इसकी प्रमुख वजह रही।
17 निजी बैंकों के शुध्द लाभ में 2.82 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि 26 सरकारी बैंकों के शुध्द लाभ में 4.80 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई। 43 बैंकों की अन्य आय में 13 प्रतिशत की कमी आई जो पिछली तीन तिमाहियों में 40 से 60 प्रतिशत की थी। ऋण से संबध्द शुल्क घटने और इस तिमाही के दौरान ऋण का उठाव सुस्त होने की भूमिका इसमें अहम रही।
तिमाही दर तिमाही आधार पर सभी बैंकों को शुध्द ब्याज मार्जिन में सुधार देखा गया क्योंकि जमा की लागत में महत्वपूर्ण रूप से कमी आई और ऋण जमा अनुपात में सुधार हुआ। हालांकि, समीक्षाधीन तिमाही की तुलना में दिसंबर 2008 में बैंकों के एनआईएम अधिक थे। क्रमिक आधार पर सभी बैंकों के परिचालन लाभ में इजाफा हुआ क्योंकि शुध्द ब्याज आय का योगदान बढ़ा और कारोबारी लाभ में कमी दर्ज की गई।
कोटक सिक्योरिटीज के बैंकिंग विश्लेषकों के अनुसार तीसरी तिमाही में कुछ महत्वपूर्ण रुझान देखे गए- पिछली तिमाही की तुलना में ऋण वृध्दि ने रफ्तार पकड़ी, फंडिंग की लागत कम होने से अधिकांश बैंकों के शुध्द ब्याज मार्जिन में इजाफा हुआ, ब्याज दरों के बढ़ने से ट्रेजरी लाभ में कमी आई और कुछ बैंकों जैसे भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की परिसंपत्ति गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई।
आईसीआईसीआई बैंक को छोड़ कर अधिकांश बैंकों की ऋण-वृध्दि में सुधार हुआ। क्रमिक आधार पर अधिकांश बैंकों के मार्जिन में सुधार दर्ज किया गया। एक साल की सावधि जमाओं की दर में आई भारी गिरावट से इसमें मदद मिली। वर्तमान में एक साल की जमाओं पर 6.5 से 7 प्रतिशत तक का ब्याज दिया जा रहा है जो एक साल पहले 10 प्रतिशत से अधिक था।
अधिकांश बैंकों की ऋण से होने वाली कमाई में गिरावट भी समीक्षाधीन तिमाही में थमी है, जो मार्जिन बढ़ाने में मदद कर रहा है। हालांकि, ब्याज दरें घटने से ट्रेजरी से होने वाली आय प्रभावित हुई है। वास्तव में, समीक्षाधीन तिमाही के दौरान बैंकों ने जो ट्रेजरी लाभ अर्जित किए वह पिछली पांच तिमाहियों में सबसे कम था।
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