भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा अल्पावधि के ऋण प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार उपकरणों, जो लिक्विड और लिक्विड प्लस फंड के अंतर्निहित उपकरण होते हैं, को मार्क टु मार्केट किया जाना अनिवार्य किए जाने के बाद परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों को इस बात की चिंता सताने लगी है कि इन योजनाओं से भारी स्तर पर निकासी की जा सकती है। उद्योग से जुड़े खिलाड़ियों ने उक्त जानकारी दी। ऑनलाइन म्युचुअल फंड वितरण कंपनी आईफास्ट फाइनैंशियल के शोध प्रबंधक ध्रुव चटर्जी के अनुसार, 'इस बात का अंदेश बढ़ गया है कि निवेशक अल्पावधि की योजनाओं से निकासी कर अपने पैसे ओवरनाइट कॉल मनी मार्केट या 5 दिन के रिवर्स रेपो उपकरणों में निवेशित करेंगे ताकि अस्थिरता से जुड़े जोखिमों से बचा जा सके।' म्युचुअल फंड उद्योग की कुल प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति 7.6 लाख करोड़ रुपये है जिसका 40 प्रतिशत लिक्विट प्लस योजनाओं में निवेशित है। लिक्विड प्लस योजना में कॉर्पोरेट और बैंक प्रमुख रूप से निवेश करते हैं क्योंकि इस पर सालाना 5.5 प्रतिशत का प्रतिफल मिल जाता है जबकि लिक्विड और अल्पावधि की सावधि जमाओं पर सालाना लगभग 4.25 प्रतिशत का प्रतिफल मिलता है।
