खुदरा ऋण पाना अब नहीं रह गया आसान | नम्रता आचार्य / कोलकाता January 05, 2010 | | | | |
खुदरा लोन की मंजूरी पाना पहले इतना मुश्किल नहीं था जितना अब हो गया है। अब खुदरा लोन पाने में आपको नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं।
दरअसल अब बैंक खासतौर पर निजी क्षेत्र के बैंकों ने ऋण पात्रता के नियमों को थोड़ा सख्त बना दिया है। निजी क्षेत्र के बैंक के एक अधिकारी का कहना है, 'बड़े पदों वाले सरकारी कर्मचारी जो लक्जरी कार खरीदना चाहते हैं, उन्हें भी बैंक में कर्ज के बदले सुरक्षा के तौर पर अतिरिक्त जमा रखना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि वेतन में अपेक्षाकृत कमी आ रही है।'
बैंक अधिकार का कहना है कि ऐसा पहले नहीं होता था क्योंकि निजी क्षेत्र के बैंक बड़ी आसानी से खुदरा ऋण दे देते थे। यहां तक कि बैंक के कर्मचारी जिन्होंने क्रेडिट कार्ड का भुगतान समय पर नहीं किया उन्हें अब कर्ज की मंजूरी नहीं मिलती, हालांकि ऐसा पहले होता था।
परंपरागत रूप से बैंक वकील, पुलिस अधिकारी और पत्रकारों को कर्ज देते समय ज्यादा से ज्यादा दस्तावेज की मांग करते हैं क्योंकि बैंक इन्हें नकारात्मक सूची में रखते हैं। हालांकि पिछले एक साल में नकारात्मक सूची में शामिल लोगों को कर्ज देने में बैंक और भी ज्यादा हिचक रही है।
नाम न बताने की शर्त पर एक निजी क्षेत्र के बैंक अधिकारी का कहना था, 'ऐसे संगठन जहां बाहरी लोगों की पहुंच कम होती है, वहां के लोगों को कर्ज मिलने में मुश्किल आती है। हमने ऐसा देखा है कि कुछ प्रोफेशन के लोग ज्यादा डिफॉल्टर होते हैं।
मिसाल के तौर पर एयरपोर्ट जैसे जगह पर जहां लोगों की कम पहुंच होती है वहां डिफॉल्ट होने की संभावना ज्यादा होती है और ऐसे लोगों नकारात्मक सूची में शामिल होते हैं। इसकी वजह यह है कर्ज लेने वाला जगह का फायदा उठाकर रिकवरी एजेंट से मिलने में कतरा सकता है।
कुछ वैसी नौकरियां जिसमें स्थानांतरण होता है, वे भी नकारात्मक सूची में है। हम वैसे लोगों को भी कर्ज देते हैं लेकिन उनकी पहचान की अच्छी तरह से पुष्टि होनी चाहिए या फिर ऐसा गारंटर होना चाहिए जिससे डिफॉल्ट होने की संभावना कम हो जाए।'
यहां तक की कुछ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों जहां के सर्वे डिफॉल्ट के संकेत देते हैं, वहां पुराने लोन के भुगतान का रिकॉर्ड देना पड़ता है ताकि लोन को मंजूरी मिल सके। न केवल निजी क्षेत्र के बैंक बल्कि सरकारी क्षेत्र के बैंक भी खुदरा लोन को लेकर सतर्क हो गए हैं।
इलाहाबाद बैंक के एक अधिकारी का कहना है, 'कर्ज लेने वालों के सामान्य सत्यापन के बाद भी हम तब तक कर्ज नहीं देते जब तक की सभी दस्तावेज मौजूद न हो, मसलन फॉर्म 16 के साथ आई-टी रिटर्न फॉर्म। इसके अलावा कर्ज पाने के लिए न्यूनतम आय के स्तर में भी बढ़ोतरी की गई है।'
यूको बैंक के रिटेल बैंकिंग और आईटी प्रोडक्ट मार्केटिंग के प्रबंध निदेशक एस के डे पुरकायस्थ का कहना है, 'लगभग 3-4 साल पहले आवासीय कर्ज में कई घपले हुए हैं। हमने अपने नियमों को और कड़ा बना रहे हैं।' करीब 25 निजी क्षेत्र के बैंकों के शुद्ध अग्रिम के मुकाबले शुद्ध गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) मार्च 2008 के 0.90 फीसदी से बढ़कर मार्च 2009 में 1.21 फीसदी हो गया।
दूसरी ओर सरकारी बैंकों के शुद्ध अग्रिम के मुकाबले एनपीए मार्च 2009 में कम होकर 0.94 हो गया जो मार्च 2008 में 1.08 फीसदी था। वहीं 25 निजी क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध एनपीए मार्च 2008 के 5647 करोड़ रुपये के मुकाबले मार्च 2009 तक 7395 करोड़ रुपये हो गया। सकल एनपीए मार्च 2008 और मार्च 2009 के बीच बढ़कर 12997 करोड़ रुपये से 16863 करोड़ रुपये हो गया।
खुदरा ऋण देने में बैंक बरत रहे हैं सतर्कता
खासतौर पर निजी क्षेत्र के बैंकों ने ऋण पात्रता के नियमों को थोड़ा सख्त बना दिया है
बैंक वकील, पुलिस अधिकारी और पत्रकारों को कर्ज देते समय उनसे अधिक दस्तावेजों की मांग करते हैं
कर्ज पाने के लिए न्यूनतम आय के स्तर में भी बढ़ोतरी की गई है
|