अधिग्रहण के जरिये जीतेंगे रण | मोटा निवेश | | शरत चेल्लुरी / January 04, 2010 | | | | |
कंपनियों के अधिग्रहण की चल रही बयार में तमाम बड़े उद्योगपति अपनी-अपनी पतंगों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की कोशिशों में लग गए हैं।
कंपनियों की खरीद बिक्री के मामले में 2010 एक महत्वपूर्ण साल हो सकता है। कई भारतीय कंपनियां अगले साल नए अधिग्रहण सौदे हासिल करने की कोशिश कर रही हैं। इसके लिए पूंजी जुटाने के लिए भी कंपनियों ने हाथ-पांव मारना शुरू कर दिया है।
अधिग्रहण के रण में उतरने के लिए गोदरेज ने भी कमर कस ली है। अगले साल कंपनी की अधिग्रहण योजनाओं को पूरा करने के लिए गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (जीसीपीएल) 3,000 करोड़ रुपये जुटाना चाहती है। कंपनी गोदरेज सारा ली की बागडोर पूरी तरह से अपने हाथों में लेना चाहती है।
देश के बाहर अधिग्रहण और विस्तार की संभावनाओं को अमली जामा पहनाने की कोशिशों के साथ ही कंपनी देश के अंदर भी विस्तार के लिए योजनाएं बना रही है। बाजार में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए कंपनी घरेलू और व्यक्तिगत इस्तेमाल की चीजों को केंद्र में रख कर चल रही है।
पहले से अच्छा कारोबार कर रहे साबुन और हेयर कलर सेगमेंट में कंपनी कुछ और प्रयोग करना चाह रही है। भावी योजनाओं और इसके लिए किए जा रहे प्रयासों से लग रहा है कि कंपनी एक अच्छी और स्थिर विकास दर हासिल कर सकती है।
साबुन : सिंथॉल की खुशबू से नंबर 1 तक
जीसीपीएल की आय का दो तिहाई हिस्सा इसके साबुन के व्यवसाय से आता है। यह न सिर्फ तेज रफ्तार से बढ़ रहा है बल्कि इसकी बाजार हिस्सेदारी में भी बढ़ोतरी हो रही है।
कंपनी के साबुन व्यवसाय की बाजार हिस्सेदारी अभी तक की सर्वाधिक 10.9 फीसदी है। कंपनी गोदरेज नंबर 1 जैसे ब्रांड के अंतर्गत उम्दा गुणवत्ता के साथ ठीक-ठाक वजन वाले साबुन सस्ते दामों में दे रही है। इसके साथ ही लागत बढ़ने के बाद भी कंपनी की तरफ से कीमतों में बहुत ज्यादा इजाफा नहीं किया गया है।
इससे हाल-फिलहाल की तिमाहियों में जीसीपीएल की बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है। गोदरेज नंबर 1 और सिंथॉल के जबरदस्त कारोबार की मदद से कंपनी के साबुन सेगमेंट ने 2009-10 की पहली छमाही में औसतन 27 फीसदी की बढ़त दर्ज की। कुल बिक्री में 16 फीसदी की बढ़ोतरी रही।
अगस्त 2009 में 500 करोड़ रुपये ऐसेट वाला ब्रांड बनने के बाद सितंबर तिमाही में गोदरेज नंबर 1 की उत्तर और पश्चिम भारत में अच्छी मांग देखने को मिली। इसी तिमाही में कंपनी ने सिंथॉल ब्रांड के तहत 6 रुपये का सस्ता पैक भी उतारा। इस तरह की कोशिशों से सिंथॉल की बिक्री में अच्छी बढ़त की उम्मीद है।
कंपनी के प्रबंधकों को भरोसा है कि वे 11 फीसदी की बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने में सफल होंगे। हालांकि हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी बड़ी कंपनियां अपनी खोई बाजार हिस्सेदारी फिर से हासिल करने के लिए जी-जान से जुटी हैं।
हेयर कलर : ज्यादा आपूर्ति से बाजार में जमने की तैयारी की जा रही है। पिछले चार वित्त वर्षों में से तीन में गोदरेज के हेयर केयर सेगमेंट की बाजार हिस्सेदारी घटी है। काले हेयर डाई की तुलना में हेयर कलर की बढ़ती लोकप्रियता से गोदरेज को इस सेगमेंट में नुकसान हुआ है। पर पिछली चार तिमाहियों में कंपनी कुछ हद तक नुकसान की भरपाई करने में सफल हुई है।
गोदरेज नुपुर मेंहदी और गोदरेज एक्सपर्ट की बिक्री में बढ़ोतरी से बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है। सितंबर तिमाही में पूरे हेयर केयर उद्योग की 19 फीसदी की बढ़त की तुलना में कंपनी के हेयर कलर सेगमेंट ने 47 फीसदी की बढ़त दर्ज की। लॉरियल जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच बाजार में पैठ बनाना जीसीपीएल के लिए आसान नहीं है।
ऐसे में कंपनी बाजारों में ज्यादा से ज्यादा माल उतार कर बिक्री बढ़ाने की कोशिश कर रही है। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में कब्जा जमाने के लिए कंपनी पार्लरों के साथ गठजोड़ कर रही है। अगले छह महीनों में कंपनी पूरे देश में 50,000 से ज्यादा पार्लरों को जोड़ने का लक्ष्य कर रही है।
बड़ी अधिग्रहण योजनाएं
अपने उत्पादों की श्रृंखला बढ़ाने और ऊंची विकास दर हासिल करने के लिए कंपनी अधिग्रहण का रास्ता अपनाने का मन बना रही है। जीसीपीएल देशी-विदेशी दोनों तरह की कंपनियों के अधिग्रहण पर विचार कर रही है। बढ़िया विकास संभावनाओं को देखते हुए कंपनी खासतौर से घरेलू रख-रखाव और हेयर कलर सेगमेंट में अधिग्रहण को लेकर गंभीर है।
घर की साफ-सफाई संबंधी उत्पाद बनाने वाली कंपनी गोदरेज सारा ली में फिलहाल जीसीपीएल की हिस्सेदारी 49 फीसदी है। कंपनी इसमें बाकी की 51 फीसदी हिस्सेदारी भी हासिल करना चाहती है। मई 2009 में करीब 850 करोड़ रुपये की लागत से जीसीपीएल ने कंपनी में 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। बची हुई हिस्सेदारी खरीदने में जीसीपीएल को 850-900 करोड़ रुपये तक का खर्च आ सकता है।
सारा ली के बिक्री के लिए उपलब्ध वैश्विक कीटाणुनाशक व्यवसाय पर भी कंपनी की नजर है। अगर कंपनी इसे भी हासिल करने में सफल होती है, तो इस पूरे अधिग्रहण में 40-45 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा। कंपनी इन शुरुआती लक्ष्यों को पूरा करने के बाद यूरोप और अफ्रीका के देशों में भी संभावनाएं तलाशेगी।
अपने भावी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कंपनी को करीब 3,000 करोड़ रुपये पूंजी जुटाने की जरूरत है जिसके लिए शेयरधारकों से अनुमति ली जा रही है। फिलहाल कंपनी का डेट-इक्विटी अनुपात 0.5 पर है और इसके पास 300 करोड़ रुपये नकदी भी है। कंपनी प्रबंधन के संकेतों से लगता है कि पहले 1,000 करोड़ रुपये ऋण के रूप में हासिल किए जाएंगे।
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