विज्ञापन एजेंसियां : नया साल, नई उम्मीद | |
स्थानीय उद्योग को है 2010 में विज्ञापनदाताओं के खर्र्च और अपने कारोबार में इजाफा होने का अनुमान | विवेट सुजन पिंटो / मुंबई 12 30, 2009 | | | | |
देसी विज्ञापन एजेंसियां 2010 को लेकर काफी उत्साह से भरी हुई हैं। इसका एक मुख्य कारण कई लोगों की ओर से देखे जा रहे आर्थिक सुधार के मिल रहे संकेत हैं।
इन संकेतों ने कई लोगों में यह उम्मीद जगा दी है कि चालू वर्ष के मुकाबले नए साल में खर्च का स्तर बेहतर देखने को मिलेगा। लियो बर्नेट इंडिया के चेयरमैन एवं मुख्य कार्याधिकारी अरविंद शर्मा का कहना है, '2009 सबसे मुश्किल वर्षों में से एक था।' उनका कहना है, '2010 बेहतर रहेगा।' उनका कहना है, 'मेरा मानना है कि उद्योग का विकास अगले साल में 15 फीसदी के करीब रहेगा।'
32,000 करोड़ रुपये के घरेलू विज्ञापन उद्योग के लिए 2009 कितना मुश्किल साल था, यह इन आंकड़ों से समझा जा सकता है: इस कैलेंडर वर्ष में विकास सिर्फ लगभग 2 से 3 फीसदी रहा, जबकि पिछले साल यह दर 15 फीसदी से अधिक थी। एक साल पहले उद्योग 20 फीसदी की दर से विकास कर रहा था। उद्योग के जानकारों का कहना है कि इसलिए इस कैलेंडर वर्ष में खर्च में आई कमी काफी अहम है।
जेडब्ल्यूटी के मुख्य कार्याधिकारी कॉल्विन हैरिस का कहना है, 'साल मुश्किल रहा, इसमें कोई शक-शुबह नहीं है।' 'ज्यादातर एजेंसियों पर अपने ग्राहकों के तनाव को कम करने के चलते काफी दवाब बन रहा है।' 2009 में विकास के लिए राह की तलाश में ज्यादातर एजेंसियों को लागत को बनाए रखने के लिए कड़े मानकों को अपनाना पड़ा।
मुद्रा कम्युनिकेशंस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी मधुकर कामत का कहना है, 'अगर आप मुझसे पूछें तो यह दिलचस्प साल था। एक तरफ विकास पर ध्यान देना जरूरी था। दूसरी तरफ सबके दिमाग में लागत को कम करना सबसे ऊपर था। इन दोनों में संतुलन बिठाने के लिए कई ने रस्सी पर चलने जैसा काम भी किया।'
कई श्रेणियों जैसे रियल एस्टेट, वित्त सेवाएं, पर्यटन आदि से काफी कम मात्रा में मिल रहे विज्ञापनों के चलते एजेंसियों के पास लागत को किसी भी तरह से कम करने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा। लियो बर्नेट के शर्मा का कहना है, 'मिसाल के तौर पर, कई एजेंसियों ने नियुक्तियों पर ब्रेक लगा दिया। कई एजेंसियों ने इस साल के लिए कर्मचारियों की तनख्वाह में इजाफा नहीं किया।'
एक उद्योग के लिए, जहां नौकरी छोड़ने वालों की दर 20 से 25 फीसदी तक अधिक है, 2009 इस मामले के मद्देनजर काफी हल्का-फुल्का रहा। उद्योग अधिकारियों के मुताबिक नौकरी छोड़ने वालों की दर काफी कम 5 फीसदी तक रही। क्योंकि ज्यादातर को अपने-अपने पदों पर बने रहते हुए अपनी एजेंसियों में नौकरी करनी पड़ी। शर्मा का कहना है, 'मेरी मानें तो यह अच्छा संकेत था।'
वे कहते हैं, 'एक से नई नौकरी आपको सिलसिलेवार काम नहीं करने देती। यह व्यक्ति और एजेंसी दोनों के लिए नुकसान है। इस साल, लोगों के पास एजेंसी में रुकने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था। कम से कम इससे उनके काम में निरंतरता तो आई। इससे सीधे-सीधे एजेंसियों को तो फायदा हुआ है। इसके अलावा उनके पास कुछ अच्छा विज्ञापन का काम भी है दिखाने के लिए।'
यह सही भी है। इस साल उद्योग ने कुछ रचनात्मक हैरतअंगेज काम भी दिया है। जैसे ओगिल्वि ऐंड मैथर्स का वोडाफोन के लिए ज़ूज़ूस, लोये लिंटास का टाटा टी के लिए जागो रे अभियान, आइडिया सेल्युलर के लिए वॉक व्हेन यू टॉक और जेडब्ल्यूटी का बिड़ला सन लाइफ इंश्योरेंस का विज्ञापन। ये सब इस साल विज्ञापन की तिजोरी में शामिल हुए कुछ बेशकीमती रत्न हैं।
दिग्गज एजेंसियों का मानना है कि अगले साल भी यही रचनात्मकता बनी रह सकती है, जो दूरसंचार और रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं में देखने को मिलेगी। 2009 में इन क्षेत्रों में सबसे अधिक खर्च देखने को मिला और जिसके 2010 में भी जारी रहने की उम्मीद है।
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