न नफा न नुकसान की स्थिति में हम उम्मीद से पहले आ जाएंगे | सवाल-जवाब : वी वैद्यनाथन, प्रबंध निदेशक, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस | | सिध्दार्थ / December 28, 2009 | | | | |
निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियों में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल कभी शीर्ष स्थान पर हुआ करती थी।
कंपनी के प्रबंध निदेशक वी वैद्यनाथन ने सिध्दार्थ को बताया कि यह जीवन बीमा कंपनी साल के अंत तक एक बार फिर शीर्ष स्थान पर होगी। इसके अतिरिक्त, उनका अनुमान है कि साल 2012 के लक्ष्य से पहले ही न नफा न नुकसान की स्थिति में आ जाएगी क्योंकि लागतों में कटौती कर कमाई बढ़ाने की दिशा में प्रयास किए गए हैं। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
पहली छमाही के दौरान कारोबार में कमी देखने को मिली थी। अभी क्या लग रहा है?
हां, लेकिन हमारी मजबूत वापसी भी हुई है। तीसरी तिमाही में हम सालाना आधार पर 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं और चौथी तिमाही में 30 प्रतिशत की। रुझान अच्छे लग रहे हैं। इससे भविष्य की बढ़ोतरी के लिए हमलोगों में भरोसा जगा है। हमने जो कदम उठाए हैं उससे यह विश्वास साफ झलकता है।
हमने कई नई योजनाएं दाखिल की हैं जो बाजार की विशेष श्रेणी के हिसाब से तैयार की गई है और हमें पूरा भरोसा है कि हम इसमें सफल होंगे। दाखिल की गई नई योजनाओं में हमने ग्राहकों के हित का ज्यादा ख्याल रखा है। इसके लिए आवंटन बढ़ाया गया है और शुल्कों में कटौती की गई है।
सभी बीमा कंपनियां, जिस में आप भी शामिल हैं, पिछले आठ-नौ सालों से भारी घाटा उठा रही हैं जबकि आपने कहा था कि सात सालों में आप न नफा न नुकसान की स्थिति में आ जाएंगे। इसमें गलती कहां हुई है?
लाभोत्पादकता एक मसला है जिसे जल्द ही निपटा लिया जाएगा। हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। साल 2000 के बाद से यह उद्योग बढ़ोतरी के चरण में रहा। जब भारतीय कंपनियां साल 2004 और 2007 के बीच फल-फूल रही थीं तो विभिन्न क्षेत्रों ने भारी मात्रा में निवेश किया। कह सकते हैं आवश्यकता से कहीं अधिक निवेश किया गया। इससे लाभोत्पादकता प्रभावित हुई।
लोगों का कहना है कि इस मसले को हल करने में कंपनियों को अच्छा-खासा वक्त लगेगा। आपने भी कभी ऐसा ही कहा था...
हां, हमारा सबसे पहला लक्ष्य लाभोत्पादकता है। लेकिन, इसे ग्राहकों से अधिक शुल्क लेकर हल नहीं किया जा सकता। लाभ तभी होगा जब हम अपने खर्चे कम करें और अभी हम इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। लेकिन लागत में कटौती ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह सकती। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारी मध्यावधि और दीर्घावधि का लक्ष्य बढ़ोतरी है।
तो इस वर्ष बैलेंस शीट की जगह लाभ एवं हानि खाते पर ज्यादा ध्यान रहेगा?
हम लागतों में कटौती कर आय में बढ़ोतरी कर रहे हैं। इससे न नफा न नुकसान की स्थिति में हम ज्यादा जल्दी आएंगे। जल्द ही इसे हमारे परिणामों में देखा जा सकेगा। अगले साल बढ़ोतरी के साथ ही हम बैलेंस शीट पर अधिक ध्यान देंगे।
आप लागत में कटौती की बात करते आ रहे हैं, क्या आपने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया है?
हमने एक विस्तृत योजना बनाई है। अपने परिसरों का उचित इस्तेमाल, स्टेशनरी और बिजली के खर्च घटाना, विभिन्न प्रभागों का विलय और संसाधनों के दुरुपयोग रोकने की दिशा में कदम उठाए हैं। दिलचस्प बात यह है कि इससे सेवा के स्तर पर बिना अधिक समझौता किए हमारी सक्षमता काफी बढ़ी है। हमारे सेवा का स्तर हमेशा ही बेहतर रहा है।
आईपीओ कब लाने जा रहे हैं?
अभी हम परिस्थितियों पर निगाह रख रहे हैं। यह हमारे शेयरधारकों की जरूरत पर निर्भर करता है।
क्या यह कंपनी के लिए पूंजी जुटाने की एक प्रक्रिया है?
पूंजी कोई मसला नहीं है। हमने 300 करोड रुपये की पूंजी डालने की योजना बनाई लेिकिन पिछली तीन तिमाहियों में हमने कोई नई पूंजी नहीं लगाई है। हमने खर्च में बचत की है जो सीधे तौर पर पूंजी में जोडा गया है। इसके अतिरिक्त, हमने कम झंझट वाली और पहले की तुलना में कम कमीशन वाली योजनाएं लॉन्च की हैं।
विदेशी निवेश के नियमों में बदलाव के बाद क्या प्रूडेंशियल अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएगी?
जबकि विदेशी निवेश के नियमों में बदलाव किया जाता है तो ऐसा सुनने में आ सकता है कि प्रूडेंशियल अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहेगा।
क्या उदारीकरण के दूसरे दशक में जीवन बीमा कंपनियों के परिचालन में कई तरह के बदलाव देखे जाएंगे?
जल्द ही बीमा कंपनियां लाभ के क्षेत्र में प्रवेश करेंगी। कई कंपनियां सूचीबध्द होंगी। असूचीबध्दता से सूचीबध्दता तक का सफर काफी दिलचस्प होगा। पिछले दशक में बढ़ोतरी काफी तेज हुई। अगले दशक में भी बड़े पैमाने पर हम बढ़ोतरी देखेंगे, हो सकता है यह सालाना 12 से 15 फीसदी का हो।
लाभोत्पादकता की अवधि में देश की कर-कमाई में बीमा उद्योग का योगदान महत्वपूर्ण होगा। अभी बुनियादी ढांचा में बीमा क्षेत्र का निवेश 1,30,000 करोड़ रुपये का है। अगले 10 साल में इसमें 4 गुना बढ़ोतरी हो सकती है।
इसके अतिरिक्त उद्योग की कुल कमाई 2,00,000 करोड़ रुपये से बढ़ कर 8,00,000 करोड़ रुपये हो जाएगी। लाभोत्पादक और सूचीबध्द होने के बाद यह उद्योग वयस्कावस्था में प्रवेश करेगा।
क्या इस उद्योग का नियमन 10 साल बाद भी काफी सख्ती से किया जा रहा है? नियामक अभी भी विज्ञापनों और योजनाओं पर निगाह रखता है?
मैं नियामक के इस कदम को उस नजरिये से नहीं देखता। आपको मालूम है कि कई कंपनियां बीमा उद्योग में अभी भी नई हैं। इसके अतिरिक्त बीमा काफी संवेदनशील उत्पाद है और वैश्विक स्तर पर भी इस उद्योग का नियमन अच्छी तरह जारी है।
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