जल्द से जल्द बुलंदियां छूने को बेताब है रेलिगेयर | भूपेश भन्डारी / December 25, 2009 | | | | |
तकरीबन 9 साल पहले मालविंदर सिंह और शिविंदर मोहन सिंह ने महसूस किया कि उन्हें अपनी वित्तीय सेवा कंपनी के तेजी से विकास की आवश्यकता है।
कंपनी ने इसके लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी इंपायर कैपिटल का अधिग्रहण किया और फिर इसका नाम बदलकर फोर्टिस सिक्योरिटीज रख दिया। उस समय यह एक छोटी कंपनी थी। दोनों भाइयों की प्राथमिकता इस कंपनी को चलाने के लिए एक कुशल व्यक्ति की तलाश थी। इसके लिए उन्होंने सुनील गोधवानी से संपर्क किया जो चमडा उद्योग से जुड़े एक बड़े परिवार से आते थे।
उस समय गोधवानी वित्तीय सेवा के बारे में थोड़ा बहुत ही जानते थे और शेयर बाजार की बारीकियों से भी उतने वाकिफ नहीं थे, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने फोर्टिस सिक्योरिटी की कमान संभालने की हामी भर दी। कनॉट प्लेस में गोधवानी के लिए एक ऑफिस तैयार किया गया जहां उन्हें 19 लोगों की एक टीम का नेतृत्व करने का जिम्मा सौंपा गया।
करीब 8 साल बाद कंपनी का नाम बदलकर रेलिगेयर एंटरप्राइजेज रख दिया गया (लैटिन भाषा में रेलिगेयर का मतलब उस धर्म या मूल्य से होता है जो लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखता है) और मुख्य कार्यालय कनाट प्लेट से नोएडा स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद से रेलिगेयर एंटरप्राइजेज ने भारत और इससे बाहर 5 अधिग्रहण किए हैं।
इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गोधवानी रेलिगेयर को विश्व की पांच प्रमुख वित्तीय सेवा कंपनियों में शामिल करना चाहते हैं और ऐसा करने के लिए वे इंतजार करने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं। इससे पहले भी मालविंदर सिंह रेलिगेयर को मेरिल लिंच की तरह ही जल्द से जल्द ऊंचाइयों पर पहुंचाने की इच्छा जता चुके थे।
हालांकि, वर्ष 2008 की महामंदी में विश्व की कई अग्रणी वित्तीय कंपनियां धराशायी हो गईं पर रेलिगेयर को यथाशीघ्र ऊंचाई पर पहुंचाने की उनकी इच्छा धूमिल नहीं हुई है। इस बाबत रेलिगेयर के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी गोधवानी कहते हैं 'विश्व में वित्तीय सेवा के क्षेत्र में किसी भी भारतीय कंपनी का बडा नाम नहीं है।'
हाल के दिनों में रेलिगेयर का कारोबार कई दिशाओं में घूमा है। इसने भारत के 537 शहरों में रिटेल नेटवर्क स्थापित किया है। करीब 2,000 शहरों में कंपनी कमोडिटी ब्रोकरेज सेवा, जीवन बीमा और म्युचुअल फंड उत्पाद बेचती है। शेयर और परिसंपत्ति के बदले यह व्यक्तिगत ऋण की भी सेवा मुहैया कराती है।
कंपनी माइलस्टोन के साथ मिलकर एक एजुकेशन और हेल्थकेयर फंड और एगॉन के साथ जीवन बीमा उद्यम के अलावा कंपनियों को कर्ज मुहैया कराती है और साथ ही एक आर्ट फंड का भी परिचालन करती है। कंपनी के कुल राजस्व में खुदरा कारोबार की हिस्सेदारी आधी है।
लेकिन इतना होने के बाद भी सिंह ब्रदर्स और गोधवानी संतुष्ट नहीं हैं और रेलिगेयर को जल्द से जल्द सफ लता की ऊंचाइयों को छूते हुए देखना चाहते हैं। वे पूरे विश्व में कारोबार विस्तार करना चाहते हैं।
निवेश बैंकिंग
तेजी से उभरते बाजार में निवेश बैंक के रूप में तेजी से आगे आने के लिए रेलिगेयर ने मैकिंजी से समझौता किया है। इसमें कंपनी का मकसद बिल्कुल साफ है।
निवेश बैंकों द्वारा लिया जाने वाला शुल्क सौदे के आकार का 2 से 3 फीसदी के बीच आता है। ग्रांट थॉर्नटन के अनुसार विलय और अधिग्रहण के लिहाज से बुरे वर्ष 2009 में भी देश में करीब 7.6 अरब डॉलर के समझौते हुए हैं। इसका सीधा सा मतलब यह निकल रहा है कि निवेश बैंक ने सिर्फ भारत से करीब 1500 लाख डॉलर का कारोबार किया है।
वैश्विक हिस्सेदारी इससे कहीं अधिक हो सकती है। रेलिगेयर इस क्षेत्र में जल्द से जल्द अपने आप को मजबूत करना चाहती है। इस बाबत रेलिगेयर के मुख्य परिचालन अधिकारी सचींद्र नाथ कहते हैं 'इसके पीछे मकसद विकसित देशों और तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच की खाई को पाटना है।'
अमेरिका और यूरोप की कंपनियां तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाओं में अपना कारोबार बढ़ाना चाहती हैं, वहीं शेयर बाजार में आई हाल की तेजी में काफी मुनाफा कमा चुके भारत और चीन के कारोबारी विदेश में अपनी पहुंच बढाने के लिए आतुर दिख रहे हैं। रेलिगेयर मई 2008 में लंदन की सबसे पुरानी ब्रोकरेज कंपनी हिचेंस हैरिसन को 450 करोड़ रुपये में खरीद चुकी है।
कंपनी न सिर्फ लंदन में निवेश बैंकिंग संबंधी लाइसेंस प्राप्त करने में सफल रही बल्कि कारोबार के लिहाज से महत्त्वपूर्ण बाजार जोहान्सबर्ग और पश्चिम एशिया में ऐसा करने में सफल रही। लंदन ने अपने निवेश बैंकिंग कारोबार के लिए लंदन में अपना मुख्य कार्यालय स्थापित किया है।
परिसंपत्ति प्रबंधन
रेलिगेयर की परिसंपत्ति प्रबंधन का सिध्दांत बहुत अलग नहीं है, मसलन कंपनी विकसित बाजारों से रकम का प्रवाह तेजी से उभरते बाजारों में करना चाहती है। इस बाबत नाथ कहते हैं कि विश्व में पूंजी के तीन प्रमुख केंद्र हैं- अमेरिका जिसकी पूरे विश्व की पूंजी में 60 फीसदी की हिस्सेदारी है, पश्चिम एशिया और जापान।
यहां पर जो सबसे बड़ी बात है वह है फंड ऑफ फंड की। ये कंपनियों में निवेश करने के बजाय सीधे अन्य फंडों में निवेश करते हैं। रेलिगेयर का स्पष्ट तौर पर मानना है कि फंड ऑफ फंड के मामले में एशिया औरों से पीछे चल रहा है। फंड ऑफ फंड के संबंध में नीति तय करने में कंपनी ने एक सलाहकार समिति का गठन किया है।
इसी बीच रेलिगेयर ने 2500 लाख डॉलर कोष वाले इवॉल्वेंस की प्रबंधन टीम का अधिग्रहण कर लिया है जो एक भारत केंद्रित फंड है। जापान में भी कंपनी ने कुछ ऐसा ही किया है। इसके अलावा कंपनी ने यहां यूरोपीय परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी के परिसंपत्ति प्रबंधन ठेका खरीद लिया है। हालांकि, इस सौदे के बारे में अभी ज्यादा खुलासा नहीं हुआ है।
बकौल नाथ, रेलिगेयर चीन के लिए एक अलग से टीम गठित करने की योजना बना रही है। अधिग्रहण के रास्ते से रेलिगेयर स्पष्ट तौर पर अपने परिसंपत्ति प्रबंधन कारोबार में खासी बढ़ोतरी करना चाहती है। रेलिगेयर का मानना है कि प्राइवेट इक्विटी सौदों से कंपनी के निवेश बैंकिंग कारोबार में काफी ज्यादा इजाफा होगा।
घरेलू कारोबार
विश्लेषकों का मानना है कि विदेश में अपना कारोबार बढाने से पहले रेलिगेयर को घरेलू स्तर पर कारोबार को और ज्यादा मजबूत बनाना होगा। इस बाबत एक वैश्विक फंड कंपनी के भारत में प्रतिनिधि का कहना है'जब आप अपने देश में कारोबार में मजबूत पकड बनाए हुए हैं तभी आप विदेश में अपना कारोबारी झंडा बुलंद कर सकते हैं।'
रेलिगेयर भारत में अभी प्रतिभूति कारोबार में ही अपना सिक्का जमाने में सफ ल रही है। जहां तक इक्विटी टे्रडिंग की बात है तो सितंबर 2009 में कंपनी की बाजार में हिस्सेदारी 4.13 फीसदी थी जबकि ऑनलाइन ट्रेडिंग में हिस्सेदारी अगस्त 2009 में 8.28 फीसदी थी।
कंपनी के म्युचुअल फंड कारोबार की बात करें तो देश में म्युचुअल फंड उद्योग में इसकी हिस्सेदारी मात्र 12 फीसदी है। कंपनी के खुदरा ऋण बुक का आकार बजाज फाइनैंस से भी कम है। इसके अलावा एगॉन के साथ कंपनी का जीवन बीमा उद्यम भी छोटे स्तर का है।
पर्याप्त संसाधन
आलोचकों का मानना है कि रेलिगेयर के लिए सबसे अधिक जरूरी इस एक सक्षम टीम तैयार कर इसे पूंजी से पूरी तरह लैस करना है। इस समय कंपनी का जमा और अतिरिक्त राशि का भंडार 2,603 करोड रुपये है। सिंह जिन्होंने रैनबैक्सी में अपनी हिस्सेदारी बचेकर करीब 10,000 करोड रुपये अर्जित किए हैं, उनकी रेलिगेयर में 55 फीसदी हिस्सेदारी है।
जहां तक मानव संसाधन की बात है तो गोधवानी का कहना है कि इस दिशा में उनकी प्राथमिकता सक्षम लोगों को चुनना है। बकौल गोधवानी वित्तीय सेवा कारोबार में दो ही चीजें कारोबार को खडा करने में मददगार साबित होती हैं, एक पैसा और दूसरा संबंध। गोधवानी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि दीर्घ अवधि के लिए उन्हें कुशल आदमियों की जरूरत है।
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