स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने बैंक के ग्लोबल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में जसपाल बिंद्रा की नियुक्ति की घोषणा की है। बिंद्रा एशिया के सीईओ बनाए गए हैं और ग्रुप एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर एशिया में वृद्धि के साथ प्रशासन पर भी उनका जोर होगा। लगभग 49 साल के बैंकर जसपाल ने 1998 में यूबीएस इनवेस्टमेंट बैंकिंग की नौकरी छोड़ दी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड में शामिल हुए। जसपाल बिंद्रा ने सिद्धार्थ से बैंक की रणनीति के बारे में बात की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश: पहले तो दुबई संकट आया और अब ग्रीस की मुश्किलें, क्या ये सब रिकवरी में बाधाएं बन रही हैं? यह उम्मीद की गई थी कि रिकवरी धीमी होगी लेकिन तेजी से होगी। फंडामेंटल्स ने जो चुनौतियां खड़ी की हैं वह अब भी बनी हुई हैं और उनको खत्म करना है। अब भी बेहद असंतुलन के हालात बने हुए हैं। मसलन पूर्व में जहां बचत बहुत ज्यादा है वहीं पश्चिम में बहुत लाभ की स्थिति बनी हुई है, तो इनका हल निकालने की जरूरी है। जो अच्छी खबरें भी हम सुन पा रहे हैं वह वित्तीय राहत पैकेज का ही नतीजा है। बैंक ने दुबई में भी भारी निवेश किया था, अब क्या एशिया और भारत के लिए आप अपनी रणनीति बदलेंगे? इस बैंक की एक सबसे अच्छी बात यह है कि इसने अपने कारोबार का विस्तार बेहद अच्छे तरीके से किया है। बैंक ने अपने कारोबार और इसकी योजनाएं दोनों का ही विशाखन किया है। हमने यह जरूर कहा है कि दुबई संकट का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। हम अपनी रणनीति की लगातार समीक्षा करते रहते हैं और हमने ऐसा वित्तीय संकट के दौरान भी किया था। इसके बाद हमने सभी चीजें नियंत्रित ही पाई थीं। बोर्ड में शामिल होना ही यह दर्शाता है कि एशिया हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। आप किसी भी पैमाने मसलन मुनाफा, आय और शाखाओं की तादाद की बात करें तो भारत, बैंक की फे्रंजाइजी का प्रमुख हिस्सा है। हमारा एक लंबा इतिहास है और महत्वाकांक्षा भी बड़ी है। पिछले 5-6 सालों में 70-80 फीसदी की वृद्धि इसने अपने बूते पर हासिल की है और आगे भी हमारी यही रणनीति होगी। यह बाजार दुनिया के दूसरे बाजारों के मुकाबले अपेक्षाकृत ज्यादा वृद्धि की गुंजाइश बना रही है और यहां मौके भी बहुत ज्यादा हैं। हमें कब इंडिया डिपोजिटरी रिसीट इश्यू की उम्मीद करनी चाहिए और आप इस प्रक्रिया का इस्तेमाल कै से करने जा रहे हैं? आईडीआर पूंजी उगाही से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम पूंजी के मोर्चे पर अच्छी स्थिति में हैं। हमने ऐसा सोचा कि अब हमें भारत को अपने वादे के मुताबिक काम दिखाने की जरूरत है और इसका अच्छा तरीका यह है कि हम भारत में सूचीबद्ध हो जाएं। पांच साल पहले हांगकांग में हमारी लिस्टिंग हुई और अब भारत में भी समान स्तर पर ऐसा हो रहा है। इश्यू बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है और यह अगले साल कभी भी आ सकता है। अगर हम बहुत जल्दी भी करें तो मार्च के बाद ही ऐसा हो पाएगा क्योंकि इसके लिए हमें ऑडिट की गई बैंलेंसशीट की जरूरत होगी। भारत में विदेशी बैंकों को कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। इससे क्या भविष्य में आपकी तरक्की की क्षमता सीमित हो जाएगी? थोक के मोर्चे पर हमें कोई प्रतिबंध नहीं दिख रहा है। हम वह सबकुछ कर सकते हैं जो एक बैंक करता है। ऐसे में हमें किसी भी तरह से नुकसान नहीं हो रहा है। अगर हम कंज्यूमर बैंकिंग की बात करें तो हकीकत यह है कि अगर हमें पूरी तरह से नई शाखाएं खोलने की आजादी भी मिले तो शायद हम एसबीआई और दूसरे सरकारी बैंकों की तरह हम अपना नेटवर्क नहीं तैयार कर पाएंगे। लगभग 10 साल पहले स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में भारत की हिस्सेदारी बेहद कम थी लेकिन अब इसकी अहम भूमिका है। इस वक्त बैंक की शाखाओं में विस्तार हुआ है और यह 60 से बढ़कर 90 हो गई है। ऐसे में हम किसी भी तरह से निराश नहीं हैं क्योंकि बाजार बहुत बड़ा है। भारत में आपके कारोबार के किस हिस्से में ज्यादा वृद्धि होगी? पिछले पांच सालों में होलसेल बैंक में 40 फीसदी से ज्यादा सीएजीआर देखा गया है। उपभोक्ताओं के बैंक में पिछले साल कुछ मसले जरूर खड़े हो गए थे लेकिन यहां बहुत ज्यादा संभावना है। एक अरब लोगों के साथ कारोबार करना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। इसी वजह से हमारा लक्ष्य एक मुनाफादायक मॉडल तैयार करना है ताकि नई संभावनाओं की तलाश की जा सकें ।
