गूंगी गुड़िया से लौह महिला तक... | ए के भट्टाचार्य / December 08, 2009 | | | | |
जैसा कि आम तौर पर होता है, किसी भी करिश्माई नेता के व्यक्तित्व के कई पहलू होते हैं। इंदिरा गांधी भी इसका अपवाद नहीं थीं।
लाल बहादुर शास्त्री के अचानक निधन के बाद जब प्रधानमंत्री चुनने की बात आई तो उस समय कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने इंदिरा गांधी को आगे लाने का फैसला किया, पर उनके लिए इंदिरा उस समय किसी गूंगी गुडिया की तरह ही थीं।
हालांकि, बाद में गांधी ने अपने करिश्माई तेवर से हालात को न सिर्फ अपने पक्ष में कर लिया बल्कि वे कांग्रेस पार्टी की कर्ता-धर्ता भी बन गईं। अपनी किताब 'मदर इंडिया' में प्रणय गुप्ते ने इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को उजागर करने की कोशिश की है।
गुप्ते की लेखन और विश्लेषण क्षमता पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता, लेकिन अपनी किताब में उन्होंने जो बाते कहीं हैं, वे सिर्फ तात्कालिक घटनाओं के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं, इनसे जुड़े बाद के घटनमाक्रमों की सही तस्वीर पेश नहीं कर पाती। मिसाल के तौर पर जब इंदिरा गांधी एक बार अमेरिका के दौरे पर गईं थीं, उनसे जुड़ी एक रोचक घटना का जिक्र गुप्ते ने अपनी किताब में किया है।
उस समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बी जॉन्सन इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि वे सारी परंपराओं को दरकिनार करते उनसे मिलने ब्लेयर हाउस पहुंच गए। इतना ही नहीं, जॉन्सन भारतीय दूतावास में रात्रिभोज में बिना आमंत्रण के शरीक हुए। दोनों नेताओं के बीच एक अच्छा तालमेल बना और उन्होंने विश्व के दो बडे लोकतांत्रिक देशों के आपसी रिश्तों को मजबूत करने की इच्छा जताई।
हालांकि, यह निश्चय क्षणिक था और गांधी के अमेरिका से लौटने के तुरंत बाद ही दोनों नेताओं के रिश्ते में खटास आ गई और इसके पीछे के कारणों का खुलासा अभी भी नहीं हो पाया है। गुप्ते ने भी अपनी किताब में इसका जबाब देने की जहमत नहीं उठाई है। इस बात पर गुप्ते की चुप्पी काफी निराशाजनक है, क्योंकि इस घटना से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के आर्थिक इतिहास में महत्वपूर्ण बदलाव आए।
अपने दूसरे कार्यकाल में इंदिरा गांधी ने आर्थिक नीतियों में काफी बदलाव किए और इसी वजह से भारत को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से आर्थिक मदद मिली, जिससे भारत संकट से उबर पाने में कामयाब रहा। आखिर, ऐसी क्या मजबूरी थी, जिस कारण इंदिरा गांधी को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना पडा, इस बारे में भी गुप्ते कुछ साफ नहीं बताते हैं।
हालांकि, गुप्ते ने इंदिरा गांधी की राष्ट्रवादी छवि को सही तरीके से पेश किया है। इंदिरा गांधी ने उस समय देश की बागडोर संभाली थी जब लोग भारत की एक राष्ट्र के रूप में हैसियत पर अंगुली उठाने लगे थे। लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने न सिर्फ भारत देश को एकजुट रखा, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर पाकिस्तान को एक बडा झटका भी दिया।
यह जख्म अभी भी पाकिस्तान को सहला रहा है। हालांकि, गांधी पाकिस्तान पर इस बडी ज़ीत का इस्तेमाल कश्मीर समस्या के समाधान की दिशा में नहीं कर पाईं। गुप्ते इस बारे में भी कोई खाका नहीं खींच पाए हैं। घरेलू मोर्चे पर भी गांधी ने राष्ट्रवाद के इसी उत्साह का परिचय दिया, पर कुछ लोग उनके कदमों को सही नहीं मानते हैं।
गुप्ते अपनी किताब में पंजाब में आतंकवाद के कारणों को इंदिरा गांधी के 1966 में प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद लिए गए निर्णय से जोड़ते हैं। सिखों की काफी लंबे समय से एक अलग राज्य की मांग को पूरा करने के लिए उन्होंने तब के पंजाब प्रांत को तीन भागों में विभाजित करने के कार्य को अंजाम दिया। इस प्रक्रिया में सिखों को पंजाब मिला जहां वे बडी संख्या में मौजूद थे।
साथ ही, दो नए राज्यों- हिमाचल प्रदेश और हरियाणा का भी उदय हुआ। गुप्ते ने अपनी किताब में उन बातों को बखूबी पेश किया है, जो जवाहर लाल नेहरू की बेटी के तौर पर इंदिरा गांधी से जुड़ी थीं। संजय गांधी की मौत के बाद राजीव और सोनिया कैसे भारतीय राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार की विरासत को आगे बढाने के लिए आते हैं, इसका भी जिक्र उन्होंने भली-भांति किया है।
पुस्तक समीक्षा
मदर इंडिया ए पॉलिटिकल बॉयोग्राफी ऑफ इंदिरा गांधी
लेखक : प्रणय गुप्ते
प्रकाशक : पेंगविन वीकिंग
कीमत : 599
पृष्ठ : 598
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