ठेका खेती पर कंपनियों का रवैया रुखा | बजटीय सहायता के बावजूद पिछले 5 साल में नहीं दिखाई कॉर्पोरेट घरानों ने खेती में रुचि | | दिलीप कुमार झा / मुंबई December 06, 2009 | | | | |
पांच साल की बजटीय सहायता पाने के बावजूद ठेका खेती को अब तक पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाया है।
कृषि जिंस खरीदने में कॉर्पोरेट घरानों की उदासीनता इसकी मुख्य वजह रही है। कंपनियों ने संगठित खुदरा कारोबार के लिए भी ऐसे उत्पाद खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। इस साल महाराष्ट्र सरकार ने कॉर्पोरेट खेती और खाद्य प्रसंस्करण में किए जाने वाले निवेश से होने वाले मुनाफे पर 100 फीसदी छूट दी है।
अब तक किसी बड़े कॉर्पोरेट घराने ने कृषि जिंसों के वृहद स्तर पर उत्पादन के लिए किसानों से गठजोड़ करने में मुश्किल से ही कोई रुचि दिखाई है। हालांकि, महाराष्ट्र में दो बड़ी कंपनियां किसानों को कई तरह से मदद कर रही हैं। ये किसानों को अच्छे बीज, सिंचाई सुविधा, बाजार और मुफ्त सलाह जैसी सहायता मुहैया करा रही हैं।
महाराष्ट्र सरकार के प्रमुख सचिव (कोऑपरेशन और मार्केटिंग) सुधीर गोयल ने कंपनियों का नाम लिए बगैर बताया, 'लघु और मध्य आकार की कुछ कंपनियां ठेका खेती से जुड़ी हैं। इनका जुड़ाव उन चीजों की खेती के लिए हुआ है, जिसके लिए हमसे लाइसेंस लेना जरूरी नहीं होता। कंपनियां सीधा किसानों से संपर्क कर सकती हैं। इसके लिए कानूनी प्रावधान भी मौजूद हैं।'
गोयल ने हैरान हो कहा, 'कॉर्पोरेट जैसा चाहते हैं, हम वैसा करते हैं। इसके बावजूद वे दूर हैं।' ज्यादातर किसानों के पास 50 एकड़ से कम जमीन होने के चलते भारत में संगठित खेती के लिए भूमि के बड़े पैमाने पर अधिग्रहण की मनाही है। एक विशेषज्ञ के मुताबिक, कानून हालांकि इस मसले पर मौन है।
दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार चाहती है कि राज्य में सब्जियों, फलों और अन्य कृषि जिंसों के वितरण के लिए कंपनियां किसानों के सहयोग से 'दूध आपूर्ति वाला मॉडल' अपनाएं। गोयल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि दूध के जल्दी खराब होने के बावजूद यदि उसका वितरण मॉडल सफल हो सकता है, तो फिर कई दिनों तक टिकने वाले फलों और सब्जियों के वितरण के लिए कंपनियां यह मॉडल क्यों नहीं अपना सकतीं।
दूध, पनीर, मक्खन आदि के कई ब्रांड हैं और ये उत्पाद हर कंपनी के पास उपलब्ध होते हैं। मजेदार बात है कि इनकी वितरण लागत काफी कम होती है। दूसरी ओर, फलों और सब्जियों का कोई ब्रांड उपलब्ध नहीं है। दरअसल, फलों और सब्जियों से कम राजस्व हासिल होता है और ये ज्यादा स्थान घेरते हैं।
ठेका खेती में कंपनियों का आगमन अब तक सीमित ही रहा है, क्योंकि वे उपभोक्ताओं के फायदे के लिए काम करने वाले समूह का हिस्सा नहीं बनना चाहतीं। गोयल ने बताया कि वे बतौर बिचौलिये ही काम करना चाहती हैं और खरीद मूल्य से ज्यादा पर उत्पाद बेच लाभ कमाने की फिराक में रहती हैं।
गौरतलब है कि 2004-05 के बजट में केंद्र सरकार ने ठेका खेती में निवेश से होने वाले आय को कर मुक्त रखने का प्रावधान किया था। गोयल ने बताया कि जमीन अधिग्रहण का मसला राजनीतिक तौर पर संवेदनशील होने के चलते बड़ी कंपनियों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इससे खुद को दूर रखा है।
वे नहीं चाहतीं कि इस पचड़े में पड़कर अपने हाथ जलाएं जाएं। हालांकि बीज, सिंचाई सुविधाओं आदि के लिए सस्ते ब्याज पर धन मुहैया करा बैंक इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
नहीं थाम रहे किसानों का हाथ
इस साल महाराष्ट्र सरकार ने कॉर्पोरेट खेती और खाद्य प्रसंस्करण में किए जाने वाले निवेश से होने वाले मुनाफे पर 100 प्रतिशत छूट दी है
हालांकि दो कंपनियां कर रही हैं किसानों की मदद
कृषि जिंसों के वितरण के लिए दुग्ध आपूर्ति वाला मॉडल चाहती है सरकार
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