ग्रामीण बाजार फिर होने लगे गुलजार | |
मॉनसून की मार से उबरने के बाद ग्रामीण बाजार एक बार फिर अपनी लय में आ गए हैं | भूपेश भन्डारी / 11 20, 2009 | | | | |
इस साल मॉनसून के दगा देने से किसान से लेकर सरकार तक की नींद उड ग़ई।
आखिर ऐसा हो भी क्यों न, भारत की कृषि साफ तौर पर मॉनसून की मेहरबानी पर निर्भर है और इस साल बारिश सामान्य से 23 फीसदी कम हुई है। जून में लगातार हरेक सप्ताह मौसम विभाग से बारिश को लेकर नकारात्मक समाचार मिलते रहे जो बाजार और पूरे देश की धड़कन और ज्यादा बढा रहे थे।
एक साल पहले तक शहरी बाजार काफी भरा-भरा सा लगा रहा था, पर वैश्विक आर्थिक संकट ने इसकी कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोडी। लेकिन दिलचस्प बात यह रही कि ग्रामीण बाजार की स्थिति कमोबेश मजबूत बनी रही।
सरकार द्वारा किसानों की कर्जमाफी, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और प्रमुख फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी किए जाने से ग्रामीण क्षेत्र में ग्राहकों की जेब पर कम भार पड़ा और उनके पास नकदी की स्थिति पर्याप्त बनी रही। चूंकि, इस साल देश में बारिश सामान्य से कम रही है, ऐसे में यह सवाल उठना तो लाजिमी है कि क्या मॉनसून की कमजोरी ने सारे किए कराये पर पानी फेर दिया है?
क्या किसान अब उतनी मात्रा में खरीदारी नहीं कर रहे हैं जितनी पहले किया करते थे? क्या अब उन्होंने इन कवायदों से दूर रहने का मन बना लिया है। सितंबर के शुरुआती दिनों तक संभावनाएं काफी दबी-कुचली नजर आ रही थीं। उस समय इस तरह की मीडिया रिपोर्ट थी कि त्रिवेणी इंजीनियरिंग ऐंड इंडस्ट्रीज ने अपनी ग्रामीण रिटेल चेन त्रिवेणी खुशहाली बाजार को बंद करने का फैसला किया है और अपने करीब 300 कर्मचारियों को नोटिस थमा दिया है।
हालांकि, उस समय इस रिटेल श्रृंखला के प्रवर्तक साहनी ने इस बात को स्वीकार किया कि उनका यह कारोबार मुश्किल दौर से गुजर रहा है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने की कोई योजना नहीं है। ठीक इसी समय बाजार में कारोबारियों ने अपनी वैकल्पिक रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी थी।
उनके सामने यह सवाल सुरसा की तरह मुंह बाए खडा था कि क्या उन्हें छोटे पैक और स्टॉक कीपिंग यूनिट पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए? क्या ग्रामीण बाजारों में उन्हें अपनी कीमतें फिर से निर्धारित करनी चाहिए? अगस्त और सितंबर में लगभग सभी त्वरित उपभोक्ता वस्तु (एफएमसीजी) कंपनियों को इस तरह की परिस्थिति से गुजरना पड़ा।
लेकिन मध्य नवंबर तक बाजार से जो संकेत मिले हैं, उनसे कारोबारियों को बडी राहत मिली है। शुरुआत में हताशा जैसी बात जरूर थी, लेकिन हालात एक बार फिर से पटरी पर लौट आए हैं। मुश्किलें आईं जरूर, और इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता कि इसका प्रभाव कंपनियों के कारोबार पर पडा, लेकि न साथ ही यहां यह भी कहना उचित होगा कि यह प्रभाव उतना बडा भी नहीं था।
आइए आंकड़ों पर नजर डालते हैं। करीब एक साल पहले तक सैमसंग की ग्रामीण बाजारों में बिक्री 20 फीसदी रही। अभी यह आंकडा 24 फीसदी के स्तर तक पहुंच चुका है। उल्लेखनीय है कि इस अवधि के दौरान सैमसंग के कारोबार में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। ग्रामीण बाजारों में बिक्री अगस्त के दो से तीन सप्ताहों तक ही प्रभावित रही। सितंबर और अक्टूबर में इसमें फिर से तेजी आ गई और हालात में सुधार के पर्याप्त संकेत मिलने लगे।
सैमंसग का कहना है कि ग्रामीण बाजारों में कारोबार कम होने के अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में हरियाली रिटेल चेन चलाने वाले डीसीएम श्रीराम कंसोलिडेटेड का कहना है कि कारोबार में थोडी बहुत कमी रही और वर्ष 2009 में कारोबारी आंकडा 2008 से कमजोर रह सकता है, लेकिन पिछले कुछ सप्ताहों में कारोबार में काफी तेजी आई है।
कंपनी का कहना है कि इसके खाद्य उत्पादों की बिक्री कमजोर रही, जिसके लिए खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई तेजी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। बाकी सभी उत्पाद श्रेणी में कारोबार में गिरावट के कोई संकेत नहीं हैं। इस तरह के कई उदाहरण मौजूद हैं। चेन्नई स्थित अनुग्रह मार्केटिंग ऐंड एडवर्टिजमेंट सर्विसेस ने अपने कारोबार में कहीं से भी गिरावट की कोई बात नहीं सुनी है।
तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध प्रदेश में ग्रामीण बाजार काफी बडा है, वहां स्थिति काफी अच्छी है। हालांकि, यह बात जानना आवश्यक है कि ग्रामीण और शहरी ग्राहकों के व्यवहार में काफी अंतर होता है। शहरों में कमोबेश लोगों को महीने में एक निश्चित रकम हाथ में मिलती है, लिहाजा वे इसे खर्च करने की योजना काफी बेहतर ढंग से बना सकते हैं।
इसकी तुलना में किसानों को साल में दो बार ही निश्चित रकम हाथ लगती है जब वे अपने फसलों की कटाई करते हैं, लेकिन उनका खर्च तो सालोंभर बना रहता है। यानी अगर फसलों के उत्पादन के कमजोर रहने की किसी भी आशंका के समय वे अपने खर्च में तुरंत कटौती कर देते हैं।
बाजार के जानकारों का कहना है कि त्योहारी सत्र में हुई जबरदस्त बिक्री इस बात के संकेत हैं कि किसान अगले साल बेहतर फसल होने को लेकर आश्वस्त हैं। इस साल मौसम के अंत में अच्छी बारिश हुई है जिससे इस बात की उम्मीद काफी बंधी है कि रबी की फसलें काफी अच्छी होंगी।
यहां तक कि फसलों की कमी भी उनके लिए चिंता की उतनी बड़ी वजह नहीं है क्योंकि इससे इनकी कीमतों में तेजी आ सकती है जो उनके लिए अच्छा ही हो सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे कुछ ऐसे भी राज्य हैं जहां पर सिंचाई की बेहतर व्यवस्था है और कमजोर बारिश का बहुत ज्यादा असर नहीं पडा है।
लगभग सभी कंपनियों ने ग्रामीण बाजार में कारोबार को लेकर अपनी रणनीति फिर से तैयार कर रही हैं। कौन सा बाजार कमजोर है और कौन सा मजबूत और फिर उसी हिसाब से अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं। तो क्या कंपनियां अब ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी कारोबार नीति में फिर से बदलाव ला रही हैं।
इस बाबत समीक्षा मार्केटिंग कंसल्टेंट्स के प्रबंध निदेशक जगदीश कपूर कहते हैं 'मैंने अपने ग्राहकों को इस बात की सलाह दी है कि वे ग्रामीण बाजार को एक बडी ऌकाई के तौर पर नहीं देखकर टुकड़ों में देखें। जैसे कि शहरी बाजारों में काफी विविधताएं होती हैं उसी तरह ग्रामीण बाजार भी एक नहीं हैं।'
इस बात के भी संकेत मिल रहे हैं कि कुछ कारोबारी जिन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में कारोबार करने का दाव खेला था वे अब शहरी बाजार की तरफ भी रुख करना चाह रहे हैं। मिसाल के तौर पर डेविन नारंग को विरासत में शराब का कारोबार मिला था लेकिन बाद में उन्होंने अपने इस कारोबार को बेच दिया। उसके बाद वे गामीण बाजारों के लिए विशेष उत्पाद लेकर आए जैसे टॉर्च और लालटेन आदि।
लेकिन नारंग अपने इन उत्पादों की बिक्री शहरी बाजारों में भी करना चाहते हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि ग्रामीण बाजार का जलवा अभी कायम रहेगा। फिलिप्स इंडिया के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी मुरली श्रीनिवासन की ग्रामीण बाजार को लेकर काफी महत्त्वाकांक्षी योजना है।
उनकी कंपनी ने इन बाजारों के लिए स्टोव और लालटेन डिजाइन किए हैं। इस समय फिलिप्स की ग्रामीण बाजार में पहुंच काफी कम है। लेकिन श्रीनिवासन का मानना है कि स्टोव और लालटेन जैसे उत्पादों के ग्रामीण बाजार में आ जाने से उनके कारोबार में निश्चित तौर पर बढ़ोतरी होगी।
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