क्या भाजपा में हो पाएगा सुषमा का स्वराज! | सियासी हलचल | | आदिति फडणीस / October 30, 2009 | | | | |
इस साल के आखिर तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कोई नया अध्यक्ष कार्यभार संभालेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पहले ही संकेत दे चुका है कि वह भाजपा पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है।
इस तरह आरएसएस भाजपा का नया अध्यक्ष अपनी पसंद का चाहेगा। इसके मुताबिक, भाजपा नेतृत्व में शामिल तीन मराठी भाषी नेताओं में से एक : महाराष्ट्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी, गोवा के भाजपा नेता मनोहर पर्रीकर और भाजपा के उपाध्यक्ष बाल आप्टे पार्टी के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष हो सकते हैं।
चूंकि भाजपा संविधान के तहत कोई भी राष्ट्रीय अध्यक्ष लगातार दो कार्यकाल तक इस पद पर नहीं बना रह सकता। लिहाजा यह स्पष्ट है कि राजनाथ सिंह इस पद पर बने नहीं रह सकते हैं। इसलिए अगले तीन साल पार्टी की बागडोर ऐसे व्यक्ति को सुपुर्द जाएगी जो पृष्ठभूमि में ही रहना पसंद करेगा।
ऐसे में सुषमा स्वराज पार्टी के समीकरण से बाहर हो जाएगी। इस बात में संदेह नहीं है कि लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा विपक्ष का नेता पद छोड़े जाने केबाद स्वराज उसे संभालेंगी और लोकसभा में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को नेतृत्व प्रदान करेंगी।
लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पांडिचेरी में न तो वह पार्टी का चुनावी प्रचार सभालेंगी और न ही अगले आम चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करने में उनकी कोई भूमिका होगी। और न ही इसके बहुत ज्यादा मायने हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में और हाल में संपन्न हरियाणा विधानसभा चुनाव में स्वराज से सलाह नहीं ली गई।
दोनों मौकों पर उनका सुझाव था कि अपनी अलग पहचान बनाए रखते हुए भाजपा को भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनाव लड़ना चाहिए, चाहे ओम प्रकाश चौटाला के बारे में उनका विचार जो कुछ भी हो - क्योंकि चुनाव के बाद सीटों की संख्या ही गिनी जाती है और हरियाणा में गैर-जाट के साथ नहीं जाने का कोई कारण मौजूद नहीं था। पर पार्टी के आला पदाधिकारियों ने इसे नकार दिया।
अब पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। जब साल 2005 में विधानसभा चुनाव हुए थे तब भाजपा के कुल 90 उम्मीदवारों में से 75 की जमानत जब्त हो गई थी - इसका मतलब यह हुआ कि इन उम्मीदवारों को डाले गए कुल वोट का छठा हिस्सा भी नहीं मिला। साल 2009 में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या मामूली रूप से गिरकर 72 पर आ गई है। कुल आठ विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा दूसरे स्थान पर रही है।
सुषमा स्वराज के बारे में कुछ गलतफहमियां हैं, जिन्हें स्पष्ट किए जाने की दरकार है। पहला, यह गलत है कि संघ में वह बाहरी व्यक्ति की तरह हैं। अपने पति स्वराज कौशल की मार्फत समाजवादी आंदोलन से सुषमा केजुड़ाव ने इस भरोसे को आधार प्रदान किया है। स्वराज कौशल सोशलिस्ट पार्टी से पूर्णकालिक तौर पर जुड़े रहे थे।
पंजाब विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान सुषमा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हिस्सा बनी थीं। वास्तव में अरुण जेटली जब 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव लड़ रहे थे तब वह दिल्ली चुनाव प्रचार के लिए आई थी। 80 के दशक में वह भाजपा से जुड़ीं और वहां टिकी रहीं। यह हिंदुत्व की बाबत उनकी उदारता की व्याख्या हो सकती है।
स्पष्ट रूप से आधुनिक शहरी महिलाओं को सुषमा स्वराज जैसी सक्षम व मुखर महिला को भड़कीले ढंग से करवा चौथ मनाते देखना व्याकुल कर देता है। लेकिन जब श्रीराम सेना ने पब जाने वाली युवा महिलाओं को पीटना शुरू किया तो सुषमा ने इसकी आलोचना की : मेरी बेटी अपने दोस्तों के साथ पब जाती है - वह शराब पीती नहीं है क्योंकि उसका पालन-पोषण इसी तरीके से हुआ है।
अगर वह शराब पीना चाहती है तो यह पूरी तरह उसकी मर्जी के ऊपर है। उनकी वकील बेटी को हरसंभव बेहतर शिक्षा मिली है - लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स, ऑक्सफोर्ड और अब इनर टेंपल। स्वराज को लगता है कि कर्मकांड का मकसद काफी अच्छा है - यह समाज को मूल्यों में बांधे रखता है।
कर्मकांड की जो छवि हमारे दिमाग में उसमें सामान्यत: इसे एक स्तर तक प्रतिगामी करार दिया जाता है। लेकिन यह राजनीति नहीं है जहां छवि का ही मोल है? सुषमा पेशेवर राजनेता हैं जिन्हें राजनेता बनकर सामाजिक सीढ़ियां चढ़ने वालों से अलग किया जा सकता है। वह पत्रकारों, पार्टी कार्यकर्ताओं, एमएलए आदि से बातचीत में समय बर्बाद नहीं करतीं।
जब साल 1999 में सुषमा को बेल्लारी सीट से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने को कहा गया था तब वहां उन्होंने पार्टी को जमा दिया था जिसका अस्तित्व वहां पहले नहीं था। गांधी को 51.7 फीसदी वोट मिले थे जबकि स्वराज को 44.7 फीसदी मिला था।
कर्नाटक में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में विधान सौध में भाजपा विधायक दल में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी बेल्लारी क्षेत्र की ही थी। लेकिन समान रूप से उन्होंने पार्टी में अपने सहयोगी जसवंत सिंह की काफी आलोचना की थी और यह भी कहा था कि लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद से उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।
गोधरा दंगों के मामले में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने को कहा था तब सुषमा इससे सहमत नजर आई थी, लेकिन जब चंद्रबाबू नायडू ने इस मुद्दे पर राजग से समर्थन वापस लेने की धमकी दी थी तब सुषमा ने पार्टी के दूसरे नेताओं की तरह कहा था कि दबाव में मोदी को नहीं बदला जा सकता।
स्वराज अच्छी शिक्षक हैं और ताजा प्रतिभाओं को खतरे की तरह नहीं देखतीं। वह पार्टी के उन नेताओं में से एक थीं जिन्होंने वसुंधरा राजे को राजस्थान में विपक्ष का नेता बनाए रखने की बात कही थी। उनका तर्क था किसी नेता को नष्ट करने में एक मिनट का समय लगता है जबकि बनाने में सालों लग जाते हैं।
उन्होंने कई बार यादगार भाषण दिए हैं, लेकिन सबसे अच्छे भाषण में से एक है उड़िया में दिया गया उनका भाषण। बीजू जनता दल ने जब भाजपा से नाता तोड़ लिया था तब चार दिन बाद सुषमा वहां पहुंची थीं और तब उड़िया में उन्होंने यादगार भाषण दिया।
नौ साल के मुख्यमंत्रित्व काल में नवीन पटनायक एक बार भी उड़िया में सार्वजनिक भाषण नहीं दे पाए हैं। स्वराज के हक में कई चीजें हैं। उनकी मौजूदगी की वजह से संसद सजीव बनने जा रही है।
भूल सुधार : 17 अक्टूबर 2009 को इस स्तंभ में छप गया कि मधु कोड़ा ने 2006 में मुख्यमंत्री पद संभाला जबकि वह 2005 में ही मुख्यमंत्री बन गए थे। इस त्रुटि के लिए हमें खेद है।
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