गठबंधन की सहयोगी पार्टियों से ज्यादा कर्मठ हैं कांग्रेस के मंत्री | दिल्ली डायरी | | ए. के. भट्टाचार्य / October 13, 2009 | | | | |
शपथ ग्रहण करने के बाद के कुछ महीनों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नई मंत्रिपरिषद के कामकाज का आकलन करते समय सबसे पहले आम तौर पर स्वीकार्य इस विचार का ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रमुख मंत्रालयों में तैनात मंत्री पिछली सरकार के मुकाबले काफी ज्यादा उम्दा हैं।
दूसरे शब्दों में संप्रग-2 के पास संप्रग-1 के मुकाबले बेहतर और ज्यादा सक्रिय मंत्री हैं। यहां हम कैबिनेट में शामिल सिर्फ दिग्गज कांग्रेसी मंत्रियों की बात नहीं कर रहे हैं। हां, इन्होंने काफी फर्क लाया है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दिखा दिया है कि 25 साल के लंबे अंतराल के बाद वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभालते हुए उनमें वही दमखम यानी जोश बचा हुआ है।
गृह मंत्री की भूमिका में पी. चिदंबरम ने दिखा दिया है कि संप्रग-1 के कार्यकाल के शुरुआती साढ़े चार साल के दौरान क्या-क्या कमियां रह गई थीं, जब शिवराज पाटिल के पास देश की आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा था। यहां तक कि नई भूमिका यानी बतौर भूतल परिवहन मंत्री कमलनाथ ने सुनिश्चित किया है कि आधारभूत संरचना के विकास को उतना ही महत्त्व मिल रहा है जितना कि उसे मिलना चाहिए।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संचालन में फर्क स्पष्ट रूप से दिख रहा है। इस मंत्रालय का कार्यभार कपिल सिब्बल के पास है और आने वाले दिनों के लिए कई तरह की गतिविधियां सुनिश्चित की गई हैं। इसी तरह पर्यावरण व वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने लोगों को भरोसा दिलाया है कि जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय वार्ता के दौरान भारत के पक्ष को ठीक तरह से रखा जाएगा।
यहां तक कि वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय आनंद शर्मा ने दोहा दौर की व्यापार वार्ता पर आए गतिरोध को दूर करने की बाबत दबाव बनाने और इस वार्ता को बहाल करने में सकारात्मक भूमिका निभाई है। इसके अलावा भी कुछ ऐसे लोग भी हैं जो प्रधानमंत्री के भरोसे को कायम रखने के लिए कुछ कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इसी उम्मीद में मंत्रालयों की अगुवाई करने के लिए इनका चयन किया था।
ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे इस सूची में सबसे ऊपर होंगे। वर्तमान योजना में ऊर्जा क्षमता को जोड़ने का लक्ष्य अभी भी काफी पीछे है, जबकि ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की खातिर किसी तरह की गतिविधि के संकेत नहीं हैं। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री के तौर पर मुरली देवड़ा का प्रदर्शन औसत ही रहा है।
न ही स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद या फिर शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी की तरफ से प्रमुख नीतिगत शुरुआत के बारे में कुछ सुना गया है। लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल अन्य घटकों के मंत्रियों का प्रदर्शन कैसा है?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो नेता शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल कैबिनेट में हैं। इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है कि कृषि व खाद्य मंत्री के तौर पर संप्रग-2 के कार्यकाल में शरद पवार ने कुछ हासिल करने की कोशिश की है। इसके विपरीत नागरिक उड्डयन मंत्री के तौर पर प्रफुल्ल पटेल मीडिया में छाए रहे हैं और इसकी वजह एयर इंडिया की गिरती वित्तीय सेहत और हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण से जुड़ी समस्याएं है।
एयर इंडिया की समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रहने और हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण की योजना को पटरी पर उतारने के बाद उठा विवाद पटेल की छवि को बहुत ज्यादा धूमिल नहीं कर पाया है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के अन्य घटकों में से रेल मंत्री ममता बनर्जी ने भारतीय रेल को पश्चिम बंगाल में अपना राजनीतिक आधार मजबूत करने के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया है।
उनका प्राथमिक लक्ष्य साल 2011 में पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव जीतने का है और राज्य में अपनी सरकार बनाने का है। इसलिए बनर्जी ने अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल जनवादी कदमों मसलन भूमि अधिग्रहण विधेयक पर अडंग़ा लगाने में और सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया में पात्रता के मानक को और नीचे लाने में किया है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-2 के दौरान विभिन्न मंत्रियों ने पिछले कुछ महीनों में जिस तरह का प्रदर्शन किया है उससे सबक लिए जाने की दरकार है। कांग्रेसी मंत्रियों का प्रदर्शन गठबंधन के घटक दलों के मंत्रियों के मुकाबले सामान्यत: बेहतर है। ऐसा इसलिए क्योंकि गठबंधन के घटक दलों के मंत्रियों का लक्ष्य जरूरी नहीं है कि सरकार चलाने वाली मुख्य पार्टियों के जैसा ही हो, इस मामले में मुख्य पार्टी कांग्रेस है।
शायद गठबंधन के सभी मंत्रियों द्वारा क्रियान्वयन किए जाने वाले राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम की कमी महसूस हो रही है। संप्रग-1 के न्यूनतम साझा कार्यक्रम की तरह संप्रग-2 के पास कोई एजेंडा नहीं है। दिलचस्प यह है कि प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर 4 जून 2009 को संसद में दिया गया प्रतिभा पाटिल का भाषण मौजूद है, ताकि अगर कोई संप्रग सरकार के एजेंडे पर नजर डालना चाहता हो तो वह इसे देख सके।
सवाल यह है कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के गठजोड़ से बनी सरकार के लिए क्या कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम होना चाहिए। वास्तव में अगर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को कैबिनेट में जगह दी जाती है तो उन्हें राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम से मदद मिलती है। तब कैबिनेट में शामिल छोटी राजनीतिक पार्टियों के मंत्रियों को साझा कार्यक्रम के हिसाब से चलने को कहा जा सकता है।
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