चालू और बचत खाते पर जोर देने का मतलब बेहतर मार्जिन भी है | सवाल-जवाब : टी यशवंत प्रभु, प्रबंध निदेशक एवं अध्यक्ष, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स | | मनोजीत साहा / October 06, 2009 | | | | |
अगस्त के अंत में टी यशवंत प्रभु ने ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक का कार्यभार संभाला और वे नए माहौल में जल्द ही ढल गए।
नया कार्यभार संभालने के बाद अपने पहले साक्षात्कार में प्रभु ने मनोजीत साहा को बताया कि बैंक को कम लागत वाली जमाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने और अपनी शाखाओं का विस्तार करने की जरूरत है। बैंक सरकार से 1,000 करोड़ रुपये की पूंजी उपलब्ध कराने की बात भी की है। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश:
बैंक के लिए आप किन चीजों को तरजीही तौर पर देख रहे हैं?
मेरी पहली प्राथमिकता होगी कुल जमाओं में चालू और बचत खाते (कासा) की हिस्सेदारी को बढ़ाना। हमारे कासा की हिस्सेदारी अन्य सार्वजनिक बैंकों की तुलना में कम है। चालू वित्त के अंत तक हम कुल जमा के 25 से 26 प्रतिशत तक इसे पहुंचाने में सक्षम होंगे। फिलहाल कुल जमा में कासा की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत है। हम प्रयास कर रहे हैं कि सितंबर 2010 तक कासा की हिस्सेदारी बढ़ कर 28 प्रतिशत हो जाए।
आप इस दिशा में क्या कर रहे हैं क्योंकि अन्य परिसंपत्ति वर्गों से भी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है?
वर्तमान में हमारी मात्र 1,419 शाखाएं हैं। इस साल हम 117 शाखाएं खोलने जा रहे हैं। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि ये शाखाएं दिसंबर के अंत से पहले खुल जाएं। इन नई शाखाओं से हमें कम लागत वाली जमाओं की हिस्सेदारी को सुधारने में मदद मिलेगी।
पिछले साल हमने 1,400 कर्मचारियों को नियुक्त किया था जिन्हें विभिन्न शाखाओं में प्रशिक्षित किया जा रहा है और इससे हमारी शाखाओं के विस्तार की योजना में मदद मिलनी चाहिए। हमने नये उत्पाद भी लॉन्च किए हैं जिससे कासा को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
बैंक का मार्जिन उद्योग में सबसे कम है। कासा पर बल देने से मार्जिन में भी सुधार होगा। हमारा शुध्द ब्याज मार्जिन काफी कम है (जून के अंत में 1.9 प्रतिशत था)। कासा पर ध्यान केंद्रित करने का उद्देश्य शुध्द ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में सुधार करना है। दिसंबर के अंत तक हमारा लक्ष्य एनआईएम 2 प्रतिशत पार करने का है।
क्या आपको लगता है कि जमा दरों में कटौती की गुंजाइश है, इससे आपके मार्जिन के सुधरने में मदद मिलेगी?
हमारी परिसंपत्ति देनदारी समिति नियमित बैठकों के जरिए स्थिति की समीक्षा करती है। वर्तमान में, हमारी दरें काफी अधिक नहीं हैं। यह हमारी बराबरी के बैंकों की पेशकशों के अनुरूप ही है। जल्द ही हमें जमा दरों में कटौती की संभावना नहीं नजर आती है।
ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में सरकार की हिस्सेदारी 51.1 प्रतिशत की है। हिस्सेदारी डायल्यूट कर पूंजी जुटाने की कोई गुंजाइश नहीं है। क्या आपने सरकार से पूंजी प्रवाहित करने की बात कही है?
हमने सरकार से लगभग 1,000 करोड़ रुपये के पूंजी प्रवाह की बात की है। हम अभी तक इसकी रूपात्मकता नहीं जानते साथ ही यह भी नहीं मालूम कि पूंजी कब तक उपलब्ध कराई जाएगी। पूंजी प्रवाहित करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हम पूंजी पर्याप्तता अनुपात 12.5 प्रतिशत बरकरार रखें साथ ही टियर-1 पूजी 9.5 प्रतिशत पर बनी रहे।
अतिरिक्त पूंजी से क्या आप खुदरा क्षेत्र, जहां आपका निवेश काफी अधिक नहीं है, पर अधिक ध्यान देना चाहेंगे?
मेरा नजरिया काफी स्पष्ट है कि सूक्ष्म और मझोली कंपनियां, कृषि और खुदरा क्षेत्रों पर हम विशेष ध्यान देंगे। हमारा खुदरा पोर्टफोलियो अभी काफी कम है और इसमें 20 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है। हम आवास ऋण की मांग में तेजी देख रहे हैं।
यही वजह है कि हम बाजार में बने रहना चाहते हैं। हम उन ग्राहकों को ऋण उपलब्ध कराना चाहते हैं जिनकी इच्छा धर खरीदने की है। तीन महीने की विशेष पेशकश के तौर पर हमने आवास ऋण की दरों में आधा फीसदी की कटौती की घोषणा की है।
रियल एस्टेट क्षेत्र को उधार देने के बारे में क्या ख्याल है क्योंकि आरबीआई ने सतर्कता बरतने की बात कही है?
रियल एस्टेट क्षेत्र को हम आक्रामक रूप से ऋण नहीं दे रहे हैं। रियल एस्टेट के लिए हमारी कुछ सीमाएं हैं। पहले भी हम इस मामले में काफी चुनिंदा थे।
अभी तक ऋण वृध्दि कम रही है। आपने अपने लिए क्या लक्ष्य तय किए हैं?
वर्तमान वर्ष में हमारा लक्ष्य उद्योग के औसत से कम से कम 2 से 3 प्रतिशत अधिक बढ़ोतरी का है। इसलिए, हमारी वृध्दि की रफ्तार 22 से 23 प्रतिशत की होनी चाहिए। सितंबर तक हमारे अग्रिमों तथा जमाओं में 22 से 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
क्या आपको उम्मीद है कि मौद्रिक नीति समीक्षा में आरबीआई नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की घोषणा कर सकता है?
अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं और वर्तमान नीति कुछ समय तक बनी रहनी चाहिए। मुझे नहीं लगता कि नीतियों में महत्वपूर्ण रूप से बदलाव किए जाएंगे।
क्या सरकार द्वारा ऋण लिए जाने से दरों पर दबाव बढ़ रहा है?
मैं ऐसा नहीं समझता क्योंकि प्रणाली में पर्याप्त नकदी उपलब्ध है।
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