अब तक वाहवाही बटोर रहीं भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों को अब प्रतिकूल परिस्थितियों में खुद को साबित करने की जरूरत है।
पिछला वित्तीय वर्ष (2007-08) निर्यात पर काफी हद तक निर्भर इस इंडस्ट्री के लिए काफी मुश्किल भरा रहा है। इस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपये में 12 फीसदी मजबूती देखने को मिली। ध्यान रहे कि ग्लोबल सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के लिए अवसरों में अमेरिका का हिस्सा आधे से भी ज्यादा है।
चालू वित्त वर्ष (2008-09) में भी इस इंडस्ट्री के लिए आसार अच्छे नहीं नजर आ रहे हैं। अमेरिका में जारी सबप्राइम संकट और मंदी की आहट से यहां की अर्थव्यवस्था की हालत काफी खराब है। सबसे ज्यादा बुरा हाल अमेरिकी वित्तीय सेवाओं का है और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री इसी सेक्टर पर सबसे ज्यादा निर्भर है।
इसके मद्देनजर सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को और मुश्किलों से जूझना पड़ सकता है। यही नहीं अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और इस पद के उम्मीदवार आउटसोर्सिंग और विदेशी पेशेवरों को वीजा जारी किए जाने के खिलाफ जमकर अभियान चला रहे हैं।
इन सारी मुश्किलों के मद्देनजर इंडस्ट्री इस बात का जायजा लेने की कोशिश कर रही है कि क्या यह साल सॉफ्टवेयर जगत के लिए पिछले दशक से बुरा साबित होगा। पिछले दशक में सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को 3 झटके झेलने पड़े थे। इनमें 911 की घटना और टेक्नोलोजी और टेलिकॉम में पैदा हुई कंपनियों की भीड़ शामिल थे। और तो और ज्यादातर निवेशक पहले से ही यह मान चुके हैं कि इस सेक्टर में तेजी का दौर खत्म हो चुका है।
इस वजह से इस सेक्टर में होने वाला मुनाफा अब उतना नहीं होगा, जितना पहले हुआ करता था। ऐसे में इस साल एक सवाल बहुत अहम है। क्या भारतीय सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री 2008 में 50 अरब डॉलर के निर्यात के लक्ष्य के करीब पहुंच पाएगी? दरअसल ऐसी परिस्थितियों में इन्फोसिस और विप्रो पहले यह मान चुके हैं कि उनके लिए इस साल अपने उत्पाद और सेवाओं की कीमतों में उतनी बढ़ोतरी करना मुमकिन नहीं होगा, जितनी पिछले वर्षों में वे करते रहे हैं।
इसके बावजूद बाजार ने विप्रो की 3 फीसदी टॉप लाइन ग्रोथ को हजम कर लिया है और साथ ही आईटी कंपनियों की शेयरों में बढ़ोतरी भी दर्ज की गई है। इसके पीछे 2 कारण प्रमुख हैं। पहला यह कि इंडस्ट्री ने रुपये में मजबूती की वजह से पिछले साल के शुरू में नुकसान की साल के अंत तक काफी हद तक भरपाई कर ली। दूसरी तरफ इन्फोसिस की 2006-07 में टॉप लाइन ग्रोथ 40 फीसदी रही थी और 2007-08 में वह 20 फीसदी ग्रोथ कायम रखने में सफल रही।
इसके अलावा टीसीएस के नतीजे भी उत्साहजनक नहीं रहने की उम्मीद नहीं है। हालांकि इसके मार्जिन पर ज्यादा असर नहीं पड़ने की संभावना है। सॉफ्टवेयर कंपनियों के शेयरों में सुधार की दूसरी प्रमुख वजह इन्फोसिस द्वारा अपने ग्रोथ को 20 फीसदी प्रोजेक्ट करना है। बहरहाल, भारत की सॉफ्टवेयर कंपनियों ने समय-समय पर दिखाया है कि वे अवसरों का लाभ उठाने के साथ मुश्किल दौर में भी खुद को बचाए रखने की ताकत रखते हैं।