वित्त वर्ष 2009 के लिए इन्फोसिस के गाइडेंस में कहा गया है कि उसकी आय करीब 20 फीसदी वृध्दि के साथ 20,000 करोड़ रुपये होगी।
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इसके अलावा प्रति शेयर आय 16.3-18.2 फीसदी बढ़कर 92.30-93.90 रुपये होगी। हालांकि यह बहुत ज्यादा उत्साहित करने वाली बात नहीं लगती है। लेकिन बाजार की अपेक्षाओं और माहौल में मंदी को देखते हुए यह उत्साहबर्ध्दक है। गाइडेंस से स्टॉक के नीचे जाने में रोक लगेगी।
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पिछले मंगलवार को इन्फोसिस का स्टॉक 6.2 प्रतिशत के उछाल के साथ 1,511 के स्तर पर था।
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हालांकि बड़ी पीई री-रेटिंग की संभावना नहीं है।इसकी वजह यह है कि वित्त वर्ष 09 की पहली तिमाही के गाइडेंस कमजोर है।इस दौरान आय में उससे पिछली तिमाही के मुकाबले 5 फीसदी की गिरावट आएगी।
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बहरहाल इस गिरावट का मुख्य कारण वेतन में बढ़ोतरी होगा। लेकिन सबसे खेदजनक बात यह है कि आने वाले दिनों में कंपनी के राजस्व में एक फीसदी से भी कम की बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी। इस वजह से मार्जिन में गिरावट देखने को मिलेगी।
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हालांकि उस परिस्थिति में जब देश की अन्य बड़ी कंपनियां अपना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएंगी, तब भी 16,692 करोड़ रुपये के राजस्व वाली इन्फोसिस का प्रदर्शन सबसे उम्दा होगा। लेकिन अगर ऐसी स्थिति नहीं आती है यानी देश की अन्य कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर रहता है या उन कंपनियों की कमाई में 17 से 18 फीसदी की बढ़त के संकेत मिलते हैं, तब इन्फोसिस जिसका वित्तीय वर्ष 2008 में शुध्द लाभ 4,659 करोड़ रुपये था, की मजबूत रीरेटिंग की संभावना नहीं है।
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इसका मुख्य कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था है जो मंदी की ओर बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2009 के लिए इन्फोसिस के गाइडेंस में परियोजनाओं की कीमतों में स्थिरता की बात कही गई है, हालांकि पिछले साल की अपेक्षा कीमतें बढ़ी हैं।
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इन सब के बीच यह नहीं समझा जाना चाहिए कि इन्फोसिस अपनी गति खो रही है। उल्लेखनीय है की मार्च की तिमाही में इन्फोसिस ने तीन बड़े समझौते किए। इस दौरान कंपनी ने करीब 40 नए ग्राहक बनाए। यही नहीं वित्त वर्ष 2008 की अंतिम तिमाही के दौरान कंपनी की स्थिति बहुत खराब भी नहीं थी। गौरतलब है कि मुश्किलों के दौर में भी कंपनी अपने परिचालन मुनाफे मार्जिन को 32.54 फीसदी पर बरकरार रखे हुए थी।
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प्रबंधन का कहना है कि इन्फोसिस वित्तीय वर्ष 2009 में भी अपने मार्जिन को बनाए रखेगी। कंपनी का मजबूत पक्ष- उसके कैश बैलेंस में 8,000 करोड़ रुपये होना है।
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ऑयल रिटेलर: रिकवरी मुश्किल
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देश की ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (ओएमसी)- उदाहरण के तौर पर बीपीसीएल- को एक बार फिर झटका लगने वाला है। दूसरे शब्दों में कहें तो वाहन ईंधनों, मिट्टी तेल और घरेलू गैस (एलपीजी) के उत्पादन मूल्य और उसके खुदरा बिक्री- जो बेहद कम है - में बहुत का अंतर है, जिसकी वजह से तेल कंपनियों के सामने मुश्किलें आ सकती हैं।
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उल्लखेनीय है कि मार्च 2008 की तिमाही में वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े को पार कर गई थी। हालांकि सरकार और देश की बड़ी तेल कंपनियां, उदाहरण के तौर पर ओएनजीसी थोड़ा-थोड़ा करके इस विकट स्थिति से निजात दिलाने की कोशिश में जुटी हुई है। एक अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2008 में 78,000 करोड़ रुपये की रिकवरी होनी थी। सरकार को इसमें से 57 फीसदी हिस्सा, ऑयल बॉन्ड के जरिए ओएमसी को मुआवजे के रूप में देना था।
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बहरहाल, वित्तीय वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में बीपीसीएल का शुध्द लाभ में 24 फीसदी की बढ़ोतरी होनी चाहिए थी लेकिन उसके परिचालन मुनाफे में 42 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसके साथ ही, वित्तीय वर्ष 2008 के अंत तक कंपनी की शुध्द बिक्री 1.08 लाख करोड़ रुपये, 11 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ शुध्द लाभ 1,740 करोड़ रुपये और साथ ही पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 3 से 4 फीसदी की गिरावट होनी चाहिए थी।
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साल 2008 की शुरुआत से ही इसके शेयर, जो 411 रुपये पर था, में 21 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2009 में कमाई के लिए कंपनी 4.3 गुना अधिक कारोबार करेगी। उल्लेखनीय है कि मार्च 2008 की तिमाही में आईओसी के लिए वसूली के तहत 16,000 करोड़ रुपये जुटाने थे। बहरहाल, वित्त वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में आईओसी के परिचालन मुनाफे में 5 फीसदी और राजस्व में 13 फीसदी के आसपास बढ़ोतरी होनी चाहिए थी।
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