वायदा बाजार आयोग (फारवर्ड मार्केट कमीशन) कमोडिटी विनिमय में बिना किसी प्रभावशाली प्रबंधन नियंत्रण के एक घरेलू कंपनी को अधिक मालिकाना हक देने के पक्ष में है।
इससे जुड़े सूत्रों का मानना है कि आयोग किसी एक कंपनी के प्रभुत्व को रोकने के लिए किसी एक घरेलू कंपनी को 26 फीसदी से कम मालिकाना हक देने जा रहा है। वैसे आयोग अकेले स्वामित्व वाली कंपनी के प्रावधानों पर काम कर रहा है और इसको लेकर कई कंपनियों से बात करके उनके विचार भी लिए गए हैं।
माना जा रहा है कि नियंत्रक अकेली कंपनी को महत्वपूर्ण हिस्सेदारी देने के पक्ष में है जो बाद में मालिक के लिए बाजार बढ़ाने में बोनस की तरह साबित हो। सूत्रों ने उल्लेख किया है कि जब नैशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना हुई थी तब भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम जैसे वित्तीय संस्थानों के पास 10 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी थी।
ऐसी स्थिति में जब कमोडिटी विनिमय अपरिपक्व स्थिति में हो और उसके विकास के लिए कारोबारियों के सहारे की जरूरत हो तो इस स्थिति में कमोडिटी विनिमय में स्टॉक एक्सचेंजों के लिए एकल कंपनी प्रावधान तय नहीं किए जा सकते हैं। दूसरी ओर भारत में स्टॉक एक्सचेंज अच्छी तरह विकसित वित्तीय बुनियादी बाजार है इस तरह एकल कंपनी में 5 फीसदी हिस्सेदारी मामूली है।
हालांकि कमोडिटी विनिमय के लिए इस तरह की कम सीमा का मतलब है कि जो निवेशक वित्तीय निवेशक के रूप में शामिल होगा आखिर में फायदे में रहेगा। वैसे इसमें एक घरेलू कंपनी के पास 20-26 फीसदी तक हिस्सा रहेगा। किसी एक कंपनी विशेष का पूरी तरह से बोलबाला न हो इस स्थिति से बचने के लिए कुछ प्रावधान जरूरी हो जाते हैं।
अयस्क का इतना हिस्सा तो होना ही चाहिए।ड्रैगन पर आरोपजिस तरह चीन खनिज संसाधनों पर कब्जा जमा रहा है, इससे पर्यावरण पर भी असर पडेग़ा क्योंकि खनिजों का दोहन काफी तेजी से हो रहा है। साथ ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है और खान श्रमिकों का शोषण हो रहा है।
हाल ही में नई दिल्ली में हुए भारत-अफ्रीका बिजनेस कॉन्क्लेव में अफ्रीकी देशों के नुमाइंदे मसलन जांबिया, कांगो और मोजांबिक ने साफ तौर से अपने संदेश में कहा कि अगर आप अफ्रीकी खनिज में भागीदारी चाहते हैं तो आपको चीनी तरीके अपनाने पड़ेंगे। इन देशों में चीन ने भारी निवेश किया है। कांगो के प्रतिनिधि ने कहा - अगर लोग ये पाएंगे कि खनिज संसाधन को वैल्यू एडिशन के लिए कहीं और ले जाया जा रहा है तो वे दुखी होंगे।
अगर उन्हें लगेगा कि इन खनिजों से उसी देश में माल तैयार हो रहा है और लोगों को रोजगार मिल रहा है तो लोग खुश होंगे। ऐसा नहीं है कि भारत अफ्रीका के इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार में योगदान नहीं दे रहा है। ओएनजीसी ने एलएन मित्तल ग्रुप के साथ मिलकर नाइजीरिया में तेल की खोज का अधिकार पाया है और इसके बदले वहां का इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार रहा है। वैसे चीनी चुनौती से निपटने के लिए भारत को अभी कुछ और करना होगा, लेकिन इसके लिए सरकारी मदद की जरूरत होगी, जैसा कि चीन को मिल रहा है।