इस्पात के वैश्विक दामों में गिरावट और 22 मई, 2022 को सरकार द्वारा लगाए गए 15 प्रतिशत निर्यात शुल्क, जिससे भारत के तैयार इस्पात निर्यात का लगभग 95 प्रतिशत प्रभावित हुआ, के कारण वित्त वर्ष 23 की पहली छमाही में इस्पात निर्यात में 53 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। एक बातचीत में जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी शेषगिरि राव ने ईशिता आयान दत्त को बताया कि निर्यात शुल्क वापस लेने से धारणा को बड़ा बढ़ावा मिलेगा। संपादित अंश ... इस्पात के वैश्विक दामों में तेज गिरावट के मद्देनजर क्या आप निर्यात में काफी ज्यादा इजाफा देख रहे हैं?इस्पात की मांग में वैश्विक स्तर पर गिरावट काफी तेज है और निर्यात के अवससर फिलहाल सीमित हैं। चीन में मांग में यह गिरावट वर्ष के पहले 10 महीने के दौरान 1.6 करोड़ टन की रही। उन्होंने कम इस्पात आयात किया और निर्यात लगभग समान स्तर पर रहा, उत्पादन कुछ हल्का रहा लेकिन मांग में गिरावट की तुलना में यह पर्याप्त नहीं था। तकरीबन पूरी दुनिया की यही कहानी है। वैश्विक स्तर पर उत्पादन में समायोजन पर्याप्त रूप से मांग में गिरावट के अनुरूप नहीं है, जिससे दामों पर दबाव पड़ रहा है। इसलिए निर्यात शुल्क हटाने से शायद भारत से इसकी मात्रा में इजाफा न हो, लेकिन यह (निर्यात) बाजार में आक्रामक होने का अवसर प्रदान करता है। कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां इस्पात की मांग बढ़ रही है - जैसे पश्चिमी एशिया और भारत के अलावा पांच एशियाई देश। निर्यात शुल्क वापस लेने से धारणा को काफी बढ़ावा मिलेगा।आयात लागत और घरेलू दामों के बीच कितना अंतर है? घरेलू दाम आयात लागत से अधिक स्तर पर हैं, चीन जैसे देशों से किए जाने वाले आयात की लागत करीब 52,000 रुपये प्रति टन है, जबकि घरेलू दाम 55,000 रुपये प्रति टन के दायरे में हैं। वैश्विक बाजारों में पांच से छह फीसदी की गिरावट नजर आई है। भारत में हाजिर दामों में कमी आई है। स्थानीय बाजार में दाम आयात लागत से प्रभावित होंगे।घरेलू और वैश्विक मांग के संबंध में क्या परिदृश्य है? वैश्विक स्तर पर जो कुछ हो रहा है, उसकी तुलना में घरेलू मांग में अच्छी वृद्धि हुई है। लेकिन यह निर्यात में गिरावट वहन करने के लिए काफी नहीं है। चीन ने अपने परिसंपत्ति बाजार को सक्रिय करने के लिए 16 सूत्री कार्यक्रम पेश किया है। इस घोषणा के बाद चीन में इस्पात के दाम प्रति टन 10 से 15 डॉलर तक बढ़ गए हैं। यह एक बड़ी सकारात्मक बात है, क्योंकि चीन लगभग 50 से 55 प्रतिशत इस्पात की खपत करता है, इसलिए इसका इस क्षेत्र पर प्रभाव पड़ेगा। लौह अयस्क के दाम भी बढ़े हैं। लेकिन चीन की शून्य-कोविड नीति के संबंध में अनिश्चितता है, इसलिए प्रॉपर्टी क्षेत्र में इतने बड़े कार्यक्रम की घोषणा के बावजूद इस्पात के दामों में उतना सुधार नहीं हुआ है।क्या लौह अयस्क के दामों में इजाफे का तीसरी और चौथी तिमाही में मार्जिन पर असर पड़ेगा? एक विरोधाभास है - लौह अयस्क के दाम बढ़े हैं, लेकिन कोकिंग कोल में गिरावट आई है। तीसरी तिमाही के मामले में हमने पूर्वानुमान जताया है कि कोकिंग कोल के दाम में दूसरी तिमाही की तुलना में करीब 80 डॉलर प्रति टन तक की कमी आएगी। ऐसा जरूर होगा। नवंबर में कोकिंग कोल में गिरावट देखने को मिल रही है। जेएसडब्ल्यू ने इस साल की शुरुआत में वित्त वर्ष 23 के लिए पूंजीगत व्यय 5,000 करोड़ रुपये तक घटाकर 15,000 करोड़ रुपये कर दिया है। क्या निर्यात शुल्क हटने से आप इसकी समीक्षा के लिए प्रेरित होंगे?पहले छह महीने में हमारा एबिटा केवल 6,000 करोड़ रुपये था, जो पिछले साल की तुलना में काफी कम है, यही वजह है कि हमने पूंजीगत व्यय को कम किया है। पहली छमाही में हमने जो खोया है, उसकी भरपाई करना संभव नहीं है। मुझे नहीं लगता कि हमने इस वर्ष जितनी कमी की है, उसमें हम संशोधन करेंगे।लेकिन क्या निर्यात शुल्क वापस लेने से आपको वित्त वर्ष 25 तक एक करोड़ टन क्षमता विस्तार के साथ आगे बढ़ने में सहूलियत होगी? हां, हमारा निर्यात हमेशा ही 20 से 25 फीसदी (बिक्री का) के दायरे में रहता है, जब तक कि वैश्विक बाजार खराब न हो। खराब बाजार में भी यह 10 फीसदी होगा। किसी भी प्रतिबंध से हमारी निर्यात क्षमता बाधित होती है।यह (निर्यात शुल्क की वापसी) निश्चित रूप से बाजार खोलेगा। जहां तक अमेरिका और यूरोप जैसे वैश्विक बाजारों की बात है, तो एक साल तक दिक्कत हो सकती है।
