केंद्र सरकार का थिंक टैक, नीति आयोग कोयले के परिवहन के लिए ढुलाई की लागत में कमी लाने की कवायद कर रहा है। यह देश में कोयले की लागत को अनुकूल करने के लिए नीति का हिस्सा है, जिसे कोयला और बिजली मंत्रालय मिलकर तैयार करेंगे। हालांकि इसका सबसे ज्यादा असर भारतीय रेल पर पड़ेगा, जिसकी माल ढुलाई से कुल आमदनी में कोयले की ढुलाई की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड की ओर से सूचना के अधिकार (आरटीआई) से मांगी गई जानकारी के जवाब में नीति आयोग ने कहा, ‘इसकी रिपोर्ट अभी बन रही है और यह प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजी जाएगी।’ आरटीआई के जवाब में कहा गया, ‘रिपोर्ट्स की सिफारिशों के आधार पर, कोयला मंत्रालय और बिजली मंत्रालय कोयला भाड़ा शुल्क में कमी और आयातित कोयले के प्रतिस्थापन के लिए नीति को अंतिम रूप देंगे।’ जवाब में भारतीय रेलवे की भागीदारी का उल्लेख नहीं किया गया था। नीति आयोग एक राज्य से दूसरे राज्य में कोयले की परिवहन लागत का अध्ययन करने के लिए और इसी तरह कोयले से बिजली उत्पादन और उसके परिवहन की लागत का अध्ययन करने के लिए एक तुलनात्मक विश्लेषण कर रहा है। कोयला मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि वह नीति आयोग द्वारा तैयार की जा रही रिपोर्ट से अवगत हैं लेकिन इसकी सिफारिशों के आधार पर अगर किसी तरह की कार्रवाई की जाती है तो सभी हितधारकों की राय की जरूरत होगी, जिनमें रेलवे प्रमुख है। अधिकारी ने कहा, ‘जहां तक आयातित कोयले में कमी का संबंध है कोयला मंत्रालय और राष्ट्रीय खनन कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने घरेलू उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है और यह मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त से भी अधिक होगा।’ इस साल अप्रैल-अगस्त के बीच देश में ताप विद्युत इकाइयों को कोयले की भारी कमी का सामना करना पड़ा था। उसके बाद नीति का मसौदा तैयार करने के कदम उठाए गए हैं। यह हर साल की समस्या है। कोयले की मांग और आपूर्ति में अंतर की मुख्य वजह केंद्र के कुछ विभागों, राज्यों और बिजली संयंत्र के ऑपरेटरों के बीच तालमेल का अभाव है। लेकिन कोयले की ढुलाई लागत को कम करने की योजना रेलवे के राजस्व के लिए हानिकारक हो सकता है। मामले के जानकार रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय अब तक कोयले की माल ढुलाई की दरों में कमी करने के लिए अनिच्छुक रहा है, जो उसके राजस्व का लगभग आधा हिस्सा है। पिछले वित्त वर्ष में रेलवे ने कोयले की ढुलाई से 67,356 करोड़ रुपये की कमाई की थी। रेल मंत्रालय ने खबर प्रकाशित होने तक अखबार द्वारा भेजे गए सवालों का कोई जवाब नहीं दिया है। एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि केंद्र सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने माल ढुलाई की दरों को युक्तिसंगत बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है और परिवहन लागत कम करने के लिए मंत्रालय कोई योजना बना सकता है। अधिकारी ने कहा, ‘कोयले की तटीय नौवहन की दरों के मुताबिक माल ढुलाई के ढांचे में बदलाव किया जा सकता है। रेल-समुद्र-रेल मार्ग के तहत रेलवे खदान से बंदरगाह तक और गंतव्य बंदरगाह से बिजली घरों तक कोयले के परिवहन के लिए अलग-अलग भाड़ा वसूल करता है।’ उम्मीद की जा रही है कि प्रस्तावित ढांचे के तहत मंत्रालय दोनों तरह की ढुलाई की यात्राओं को एक खेप के रूप में वर्गीकृत करेगा, जिसे टेलीस्कोपिक फ्रेट कैलकुलेशन के रूप में जाना जाता है। रेलवे के राजस्व का सबड़े बड़ा स्रोत कोयले की ढुलाई है। इसकी माल ढुलाई में कोयले की हिस्सेदारी करीब आधी है। इससे रेलवे ने 2021-22 में 1.43 लाख करोड़ रुपये कमाए हैं। औसत कोयला माल ढुलाई रेक द्वारा तय की गई दूरी जून में एक साल पहले के 465 किमी से बढ़कर 565 किमी हो गई। दूसरी ओर रेल मंत्रालय भी कोयला ढुलाई योजना पर अत्यधिक स्वायत्तता रखने की योजना बना रहा है, जिसके बारे में बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पहले ही खबर दी थी। इससे रेलवे को लाभदायक आपूर्ति मार्ग तय करने, एक छोर से दूसरे छोर तक ढुलाई करने और आगामी कोयला खदानों और मांग स्थानों के आधार पर भविष्य के रेल मार्गों की योजना बनाने की सहूलियत मिल सगेगी। इस प्रस्ताव पर पीएम गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के तहत काम किया जा रहा है।
