जेनेटिक इंजीनियरिंग आकलन समिति (जीईएसी) ने 18 अक्टूबर को हुई बैठक में जीन संवर्धित (जीएम) सरसों डीएमएच-11 को परीक्षण संबंधी मंजूरी दे दी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और डीएमएच-11 में अहम भूमिका निभाने वाले दीपक पेंटल ने संजीव मुखर्जी से बातचीत में कहा कि इस मंजूरी से भारत में जीएम के इस्तेमाल की राह खुलेगी। संपादिश अंश: जीएम के क्षेत्र में अब अगला कदम क्या होगा? हमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की ओर से आयोजित परीक्षणों के साथ मिलकर परीक्षण करने को कहा गया है। अगर आप हाइब्रिड का प्रदर्शन देखना चाहते हैं तो इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन आदर्श रूप में हमें प्रयोगशालाओं और कंपनियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है, ताकि नई संकर किस्में विकसित की जा सकें। क्या आपका मतलब है कि हमें और फील्ड ट्रायल की जरूरत है? नहीं, अब हमें और ज्यादा फील्ड ट्रायल की जरूरत नहीं है। अब हाइब्रिड को कुछ निश्चित शर्तों के तहत सामान्य इस्तेमाल के लिए मंजूरी मिल गई है। मुझे लगता है कि मंजूरी का मतलब है कि इसका वाणिज्यीकरण, विविधीकरण किया जा सकता है और इच्छित रूप से इसका इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन बायोटेक रेगुलेटर जीईएसी को इसके बारे में सूचित करना होगा। आईसीएआर की राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षण की व्यवस्था है और हमें इसके इस्तेमाल में हिचकने की जरूरत नहीं है। मेरे हिसाब से हाइब्रिड बीज हमेशा कंपनियों द्वारा बनाया जाना चाहिए। अगर आज को आरंभ की तिथि मानें तो जीएम सरसों किसानों तक कब पहुंचेगा? क्या आप 2017 जैसी स्थिति पा रहे हैं, जब मंजूरी वापस ले ली गई थी? मुझे नहीं लगता कि 2017 जैसी स्थिति होगी, क्योंकि सभी मंजूरियां मिल गई हैं। अगर हम आज को शुरुआत के रूप में देखें और आगे कोई व्यवधान न आए तो भारतीय किसानों को दो साल में जीएम आधारित हाइब्रिड सरसों मिल जाएगा। डीएमएच-11 को परीक्षण की मंजूरी मिलने को कितनी बड़ी प्रगति मान रहे हैं? मेरे लिए यह प्रगति अहम है, क्योंकि हमने सरकार को मनाने में कई साल लगाए हैं और देश ने नई तकनीक स्वीकार किया है। विज्ञान और तकनीक के बगैर भारतीय कृषि क्षेत्र समृद्ध नहीं हो सकता। साथ ही यह फसल के लिए भी अच्छा है, क्योंकि इस तरह के और फैसलों के लिए राह दिखाएगा। मुझे उम्मीद है कि उपयोगी जीएमम तकनीक का इस्तेमाल हो सकेगा। क्या आपको लगता है कि हमने जीएम तकनीक और इसकी स्वीकार्यता की ओर कदम बढ़ा दिया है? हमने 2002 में यात्रा शुरू की, जब पहला हाइब्रिड विकसित किया गया। आदर्श रूप में इसे 2005-06 में मंजूरी मिल जानी चाहिए थी। जीएम विरोधी लॉबी के विरोध के कारण आवश्यक मंजूरियां रुकी रहीं। अगर आप पूरी दुनिया की स्थिति देखें तो जापान ने जीनोम एडिटिंग के लिए राह खोली। यूरोपीय संघ खासकर ब्रिटेन में भी इसने तेजी पकड़ी। तमाम देश यह तकनीकी नवोन्मेष स्वीकार कर रहे हैं, जो खेती के लिए बहुत उपयोगी है।
