महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ने महामारी के दौर में रोजी-रोटी की मदद मुहैया कराने में खासी भूमिका निभाई थी। आवाजाही पर लगे प्रतिबंध हटाए जाने के बाद भी इस योजना में रोजगार की मांग लॉकडाउन के पूर्व के स्तर से ऊपर बनी हुई है। नई नौकरियां सृजित करने में भारत का रिकॉर्ड निराशाजनक रहा है, ऐसे में इस योजना का महत्त्व कहीं अधिक ज्यादा हो जाता है। अर्थशास्त्रियों ने इसी तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी योजना की सिफारिश की है। कुछ राज्यों ने इस सुझाव पर ध्यान दिया है। राजस्थान सरकार ने 9 सितंबर, 2022 को इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना की घोषणा की थी। इस योजना के तहत इस राज्य के शहरी क्षेत्र में रह रहे जरूरतमंद परिवारों को साल में 100 दिन का रोजगार प्रदान किया जाता है। राजस्थान में बेरोजगारी की उच्च दर है, जो करीब 25 फीसदी है। सितंबर 2022 में बेरोजगारी दर 23.8 फीसदी थी। ग्रामीण बेरोजगारी दर 23 फीसदी से अधिक और शहरी बेरोजगारी दर 26 फीसदी थी। साल 2018 के मध्य तक बेरोजगारी की दर छह फीसदी से बढ़ी। यह अगले दो साल में नाटकीय रूप से बढ़कर 12 फीसदी हो गई।साल 2020 के अंत से राजस्थान में बेरोजगारी दर 20 फीसदी से अधिक रह रही है। इस राज्य के लिए बेरोजगारी एक चुनौती बन गई है और इसलिए चुनौती से निपटने का प्रयास करना स्वाभाविक है। राजस्थान में बढ़ती बेरोजगारी की दर में उत्साह बढ़ाने वाली बात यह है कि यह श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) बढ़ने का परिणाम है। भारत के राज्यों में सबसे अधिक एलपीआर दर वाले राज्यों में राजस्थान भी है।सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक मई-अगस्त 2022 में यह 44 फीसदी से अधिक थी और 28 राज्यों में शीर्ष के सात राज्यों में राजस्थान था। मई-अगस्त, 2022 के दौरान भारत की एलपीआर 39.2 फीसदी थी जबकि राजस्थान में यह 44.1 फीसदी थी। हालांकि राजस्थान के पड़ोसी राज्यों में स्थिति और खराब रही। पड़ोसी राज्य हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में यह क्रमश 41 फीसदी, 36.9 फीसदी, 35.6 फीसदी और 33 फीसदी रही थी। गुजरात से लेकर दक्षिण तक बेहतर 44.7 फीसदी थी। राजस्थान कुछ उन राज्यों में शामिल है जिनमें एलपीआर की बढ़ती हुई दर दर्ज हुई है। इससे भी बढ़ी बात यह है कि भारत में कोविड महामारी फैलने के बाद भी इस राज्य में एलपीआर की दर में तेजी से बढ़ोतरी हुई थी। राजस्थान के लोग अधिक संख्या और अनुपात में रोजगार के लिए चाहत जता रहे हैं। लेकिन यह पूरे भारत के मामले में सच नहीं है। साल 2016 में एलपीआर 37.6 फीसदी थी। यह साल 2017 में यह बढ़कर 38.6 फीसदी, 2018 में 39.3 फीसदी और 2019 में 40.4 फीसदी हो गई थी। महामारी के साल 2020 में यह बढ़कर 41.4 फीसदी और फिर 2021 में 44.6 फीसदी आंकी गई थी। साल 2022 के शुरुआती आठ महीनों में इसका औसत 44.4 फीसदी था। राजस्थान ने अखिल भारतीय औसत के बीच के अंतर को 2016 से 2019 के दौरान लगातार कम किया है। साल 2020 से अखिल भारतीय औसत से कहीं अधिक राजस्थान में एलपीआर दर हो गई है। राजस्थान के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में एलपीआर दर बढ़ गई है। लेकिन यह कुछ अलग तरह की है। आमतौर पर शहरी क्षेत्रों से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में एलपीआर रहती है। हालांकि राजस्थान में ग्रामीण एलपीआर 2021 की शुरुआत से 44.6 फीसदी के करीब स्थिर हो गई है। हालांकि मई-अगस्त, 2022 में यह गिरकर 44 फीसदी हो गई। शहरी एलपीआर में निरंतर इजाफा हो रहा है और यह करीब 45 फीसदी पर पहुंच गई है। हालांकि अखिल भारतीय स्तर पर शहरी एलपीआर करीब 37.5 फीसदी है। राजस्थान एक और मायने में विकास के एक और पथ पर अग्रसर है। इस राज्य में ग्रामीण महिला श्रम बल से अधिक शहरी महिला श्रम बल की भागीदारी दर है। साल 2019 से 2021 की शुरुआत तक ग्रामीण एलपीआर से कम शहरी एलपीआर था। हालांकि 2021 के मध्य से राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा राज्य के शहरी एलपीआर दर उच्च रही थी। इस तरह राजस्थान ने शेष भारत से अलग हटकर प्रदर्शन किया। अखिल भारतीय स्तर पर शहरी महिलाओं की एलपीआर करीब सात फीसदी है। हालांकि राजस्थान में शहरी महिला की एलपीआर आठ फीसदी से अधिक रही। इसी तरह अखिल भारतीय स्तर से अधिक राजस्थान में शहरी पुरुष श्रम बल सहभागिता दर है। अखिल भारतीय स्तर पर शहरी पुरुष श्रम बल सहभागिता दर करीब 64 फीसदी है। इससे अधिक राजस्थान में शहरी पुरुष श्रम बल सहभागिता दर करीब 73 फीसदी है। हालांकि शेष भारत के शहरी हिस्सों से अधिक नौकरी का दबाव राजस्थान का शहरी श्रम बल झेल रहा है। हाल के समय में राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी राजस्थान पर नौकरी का दबाव थोड़ा तेजी से बढ़ा है। लेकिन राजस्थान तेजी से बढ़ती मांग के अनुरूप नौकरी का सृजन नहीं कर पा रहा है। हरियाणा के बाद दूसरे नंबर पर बेरोजगारी दर राजस्थान में है। राजस्थान में बेरोजगारी की दर करीब 26 फीसदी है। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों से कहीं अधिक शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर है। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी की दर करीब 25 फीसदी है और इस राज्य के शहरी इलाके में बेरोजगारी दर 29 फीसदी है।राजस्थान और उसके पड़ोसी राज्य हरियाणा के समक्ष एक जैसी चुनौतियां हैं। दोनों राज्यों में श्रम बल की उच्च सहभागिता और उच्च बेरोजगारी दर है। दोनों राज्यों ने इन चुनौतियों से निपटने की कोशिश की है लेकिन अलग-अलग ढंग से। हरियाणा ने नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है जिसमें निजी क्षेत्र में भी आरक्षण दिया गया है। इस आरक्षण से प्रवासियों को अलग रखा गया है क्योंकि यह राज्य गुणवत्ता वाली नौकरी के लिए इन लोगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। दूसरी तरफ राजस्थान ने लोगों को नौकरी मुहैया कराने का रास्ता चुना है। इस राज्य ने एक समस्या को सही ढंग से हल करने की कोशिश की है जिसमें एक शहरी इलाकों में नौकरी की समस्या है।यह राज्य हाल में सफल रही मनरेगा योजना से सीख ले चुका है। यह तार्किक रूप से उचित है कि इस योजना का शहरी स्तर तक विस्तार किया जाए। हरियाणा ने चुनौती से हल करने का जिस तरह प्रयास किया है, उसमें उसे न्यायालय में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। राजस्थान को इस चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा लेकिन राजस्थान को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।भारत में बेरोजगारी दर ने कभी-कभार ही सत्ता पक्ष को तेजी से आर्थिक विकास करने के लिए प्रेरित किया है और यह केवल चुनाव से पूर्व के वादों तक ही सीमित रहता है। हालांकि राजस्थान और हरियाणा के प्रमाणों से यह पता चलता है कि जब बेरोजगारी दर करीब 25 फीसदी होती है तो सभी विचारधाराओं के प्रतिष्ठान तेजी से काम करना शुरू करते हैं। (लेखक सीएमआईई प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
