निजी इक्विटी फर्मों से बेहतर प्रस्ताव प्राप्त करने के लिए रिलायंस कैपिटल के प्रशासक ने दिवालिया रिलायंस कैपिटल को चार अलग-अलग कोर इन्वेस्टमेंट कंपनियों (सीआईसी) में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया है। राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) द्वारा दिवालिया प्रक्रिया को अगले साल जनवरी तक पूरा करने के लिए मंजूरी दिए जाने के बाद प्रशासक ने मंगलवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को पत्र लिखकर उसकी मंजूरी मांगी है। इस प्रस्ताव के अनुसार ये चार सीआईसी हैं - रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी (आरजीआईसी), रिलायंस निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी (आरएनएलआईसी); रिलायंस सिक्योरिटीज, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी, निजी इक्विटी, रियल एस्टेट संपत्ति सहित आरसीएपी के अन्य सभी व्यवसाय तथा रिलायंस कमर्शियल फाइनैंस ऐंड रिलायंस होम फाइनैंस। इस नई संरचना से रिलायंस कैपिटल के बीमा कारोबार के बोलीदाताओं को बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के उन दिशानिर्देशों से बचने में मदद करेगी, जो नए निवेशकों के लिए पांच साल की लॉक इन अवधि से संबंधित हैं। बीमा नियामक के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि निजी इक्विटी फंड सहित प्रवर्तकों और अन्य निवेशकों के इक्विटी योगदान में अंतिम मंजूरी देने के समय लॉक-इन अवधि पांच साल की होनी चाहिए। पांच साल की यह लॉक इन अवधि हटने से एडवेंट प्राइवेट इक्विटी जैसी निजी इक्विटी बोलीदाताओं को किसी भी समय बीमा उद्यम से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। एडवेंट ने सामान्य बीमा उद्यम के लिए 7,000 करोड़ रुपये की अधिकतम गैर-बाध्यकारी बोली लगाई थी। फिलहाल रिलायंस कैपिटल के बीमा उपक्रमों के लिए चार कंपनियां मैदान में हैं। एडवेंट प्राइवेट इक्विटी के अलावा सामान्य बीमा कंपनी के लिए बोली लगाने की खातिर पिरामल समूह ने ज्यूरिख इंश्योरेंस के साथ करार किया है। आदित्य बिड़ला कैपिटल रिलायंस निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी के लिए बोली लगाने की योजना बना रही है। वहीं जीवन बीमा कंपनी में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली जापान की निप्पॉन लाइफ एक स्थानीय कंपनी के साथ मिलकर बाकी हिस्सेदारी के लिए बोली लगाना चाह रही है।
