फिलहाल सोने की कीमतें पिछड़ रही हैं और यह मार्च के ऊपरी स्तर से 18 फीसदी नीचे है। लेकिन इक्विटी यानी शेयर बाजार में गिरावट इससे कहीं ज्यादा है। परिणामस्वरूप घरेलू और वैश्विक दोनों बाजारों में सोने का प्रदर्शन इक्विटी की तुलना में बेहतर दिखने लगा है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी ) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मौजूदा कैलेंडर वर्ष में अब तक सोने की घरेलू कीमतें 2.5 फीसदी बढ़ी है। जबकि बेंचमार्क सेंसेक्स समान अवधि के दौरान 1.7 फीसदी टूटा है। कैलेंडर वर्ष 2020 में भी इक्विटी के मुकाबले सोने का प्रदर्शन बेहतर था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में शुक्रवार (12 अक्टूबर) को सोना 136,325.16 रुपये प्रति औंस पर कारोबार कर रहा था जबकि दिसंबर 2021 की समाप्ति पर सोने की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 134,239 रुपये प्रति औंस थी। वहीं बीसई का बेंचमार्क संवेदी सूचकांक सेंसेक्स शुक्रवार को 57,919.97 के स्तर पर बंद हुआ जबकि पिछले कैलेंडर वर्ष की समाप्ति पर यह 58,253.8 के स्तर पर था। घरेलू सराफा बाजार में भी सोने का प्रदर्शन तुलनात्मक रूप से बेहतर रहा है। मुंबई सराफा बाजार में बीते हफ्ते 24 कैरट सोने की कीमत 52,250 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई जो पिछले कैलेंडर वर्ष की समाप्ति पर 49,680 रुपये प्रति 10 ग्राम थी। इस तरह से देखें तो घरेलू सराफा बाजार में सोने की कीमतों में इस अवधि के दौरान 5.2 फीसदी की तेजी आई । घरेलू बाजार में सोने की कीमत मुख्यतया तीन बातों पर निर्भर करती है।पहला अंतरराष्ट्रीय कीमत, दूसरा डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में उतार-चढ़ाव और तीसरा सोने पर लगने वाले कस्टम ड्यूटी यानी सीमा शुल्क में बदलाव पर। इस कैलेंडर वर्ष में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में 10 फीसदी की गिरावट आई है। जबकि केंद्र सरकार द्वारा जून में सोने पर लगने वाले आयात शुल्क में बढ़ोतरी की गई। इन दो वजहों से घरेलू बाजार में सोने की कीमतों को समर्थन मिला जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस दौरान सोने की कीमतें नरम हुई।अंतरराष्ट्रीय बाजार में इक्विटी के मुकाबले सोने का प्रदर्शन घरेलू बाजार से कहीं ज्यादा बेहतर रहा है। इसकी बड़ी वजह अमेरिका और पश्चिमी यूरोप जैसे बड़े और विकसित देशों में इक्विटी में आई भारी बिकवाली रही। अमेरिकी डॉलर में सोने की कीमत इस कैलेंडर वर्ष में अभी तक 6.9 फीसदी कमजोर हुई है जबकि समान अवधि के दौरान अमेरिकी बेंचमार्क डाऊ जोंस में 19.6 फीसदी की गिरावट आई है। अमेरिकी हाजिर बाजार में बीते हफ्ते सोना 1,644.47 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करता दिखा जबकि पिछले कैलेंडर वर्ष की समाप्ति पर यह 1,805.85 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार कर रहा था। समान अवधि के दौरान डाऊ जोंस में 20 फीसदी की नरमी रही है। जहां डाऊ 2021 की समाप्ति पर 36,383.3 के स्तर पर था, वहीं शुक्रवार को 29,634.83 के स्तर पर बंद हुआ। अमेरिकी इक्विटी बाजारों में आई हालिया बिकवाली की वजह से सोने का प्रदर्शन ज्यादा लंबी अवधि के लिए और भी बेहतर रहा है। डाऊ ने कोविड महामारी के बाद की अपनी सारी बढ़त गंवा दी है। 2019 की समाप्ति के अपने स्तर 28,538 से अभी यह महज 2.4 फीसदी आगे है। जबकि इस अवधि के दौरान सोने की बढ़त 11 फीसदी की है। ज्यादातर विश्लेषक हालांकि सोने की कीमतों को लेकर उत्साहित व आशावादी नहीं हैं जिसकी वजह अमेरिका में ब्याज दरों में जारी बढ़ोतरी, अमेरिकी बॉन्ड का चढता प्रतिफल और डॉलर इंडेक्स में उछाल है। अर्थव्यवस्था में जब अनिश्चितता का दौर होता है उस समय वैश्विक स्तर पर निवेश के सुरक्षित विकल्पों को लेकर सोने को अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी सरकारी बॉन्ड से होड़ लेनी पडती है। लेकिन अमेरिकी सरकारी बॉन्ड के प्रतिफल में बढ़ोतरी से निवेशकों के लिए सोने की चमक फीकी पड़ जाती है। वैसे भी निवेशकों को सोने के ऊपर कोई प्रतिफल या ब्याज नहीं मिलता। इस कैलेंडर वर्ष में अभी तक 10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़कर दोगुना से ज्यादा हो गया है। शुक्रवार को यह 4.02 फीसदी रहा जबकि दिसंबर 2021 की समाप्ति पर यह महज 1.5 फीसदी था।सोने की कीमतों का अमेरिकी डॉलर या डॉलर इंडेक्स के साथ भी मजबूत रिश्ता है। इसको ऐसे समझिए- जब डॉलर बढ़ता है तो सोने की कीमतें गिरती हैं, वहीं जब डॉलर कमजोर होता है तो सोने की चमक में इजाफा होता है। 2022 में डॉलर इंडेक्स अब तक 18 फीसदी मजबूत हुआ है जिसकी वजह से सोना सहित अन्य कमोडिटी की कीमतों पर दबाव बना है। एमके वेल्थ मैनेजमेंट के विश्लेषक के मुताबिक, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में की जा रही बढ़ोतरी की वजह से अमेरिकी डॉलर विश्व की अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। मजबूत डॉलर की वजह से सोना खरीदना महंगा हो जाता है जिसकी वजह से इस धातु को लेकर निवेशकों की मांग पर असर पडता है। हालांकि, विकसित देशों में देखी जा रही रिकॉर्ड महंगाई और बढ़ती आर्थिक अनिश्चितता से सोने की कीमत को समर्थन भी मिल रहा है। कोटक सिक्योरिटीज में वीपी- हेड कमोडिटी रिसर्च रवींद्र राव कहते हैं, 'भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक मंदी की चिंताओं के बावजूद, निवेश के ज्यादा सुरक्षित पनाहगाह/विकल्प के तौर पर सोने में ज्यादा खरीदारी नहीं दिखी है क्योंकि निवेशकों का झुकाव बड़े पैमाने पर डॉलर इंडेक्स की ओर है। डॉलर में तेजी जारी रहने तक सोने की कीमतों पर दबाव बना रह सकता है।' वहीं भारतीय निवेशकों के लिए सोना रुपये में जारी गिरावट का देश में महंगाई और अन्य परिसंपत्ति बाजार पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के खिलाफ भी एक बचाव है। इस वजह से घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में वृद्धि जारी रह सकती है या कम से कम मजबूत बनी रह सकती है, भले ही डॉलर इंडेक्स में उछाल और अमेरिका में उच्च बॉन्ड प्रतिफल के कारण वैश्विक स्तर पर यह दबाव में रहे।
