डिजिटलीकरण के बावजूद भारत में नकदी का इस्तेमाल कम नहीं हुआ है। अब यह सवाल प्रासंगिक नहीं है कि ई-रुपये को क्यों अपनाया जाए, बल्कि यह है कि इसे कब अपनाया जाएगा। बता रहे हैं सव्यसाची कर पिछले हफ्ते भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भारत की केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा या सीबीडीसी को लेकर एक कॉन्सेप्ट नोट यानी अवधारणा प्रपत्र जारी किया, जिसे पैसे के इस नए स्वरूप से जुड़ी चिंता को दूर करने का प्रयास माना जा सकता है। इस नोट में वर्चुअल मुद्रा के रूप में ई-रुपये को अपनाने को सही ठहराने के लिए कई तर्क दिए गए हैं। आरबीआई के आंतरिक कार्य समूह ने देश की केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा के लिए ई-रुपया नाम चुना है। अब सवाल यह है कि आरबीआई द्वारा दिए गए तर्क कितने मजबूत हैं? इस मुद्दे के किसी भी उचित आकलन के लिए, उस संदर्भ को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण है जिसके तहत भारत डिजिटल मुद्रा जारी कर रहा है। विशेष रूप से हमें भारत में मौद्रिक, वित्तीय और भुगतान से जुड़े मौजूदा बुनियादी ढांचे की स्थिति को समझने की आवश्यकता है जो इस डिजिटल मुद्रा के आने से प्रभावित होगी और इसके साथ ही ई-रुपये का कामकाज भी प्रभावित होगा। भारतीय मौद्रिक और वित्तीय प्रणाली मुख्य रूप से बैंक पर आधारित हैं जिसमें पैसा नकदी और बैंक जमा के रूप में मौजूद है। इस तंत्र में डिजिटल भुगतान, वाणिज्यिक बैंकों द्वारा बनाई गई वर्चुअल मुद्रा पर आधारित था। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में भुगतान के इस बुनियादी ढांचे में काफी बदलाव आया है। भारत डिजिटल भुगतान प्रणाली तैयार करने में अग्रणी है। इस क्षेत्र के खेल में बड़ा बदलाव लाने वाला यूनिवर्सल पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) रहा है जो रियल-टाइम भुगतान प्रणाली के रूप में कार्य करता है और यह मोबाइल उपकरण का इस्तेमाल कर दो बैंकों के बीच पूंजी के तात्कालिक हस्तांतरण को सुगम कर सकता है। इस मंच का इस्तेमाल करते हुए गूगल पे, पेटीएम और फोनपे जैसे ऐप ने डिजिटल भुगतान को जबरदस्त तरीके से लोकप्रिय बनाया है। डिजिटलीकरण के बावजूद भारत में नकदी का इस्तेमाल कम नहीं हुआ है। हाल के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि महामारी के कम होने की वजह से नकदी की मांग बढ़ सकती है। ऐसा भी अंदाजा लग रहा है कि अगर सीबीडीसी की शुरुआत की जाती है, तब आने वाले कुछ समय के लिए, ई-रुपया, कानूनी नोट के रूप में नकदी के लिए एक माध्यमिक भूमिका निभा सकता है। इस संदर्भ में सीबीडीसी शुरू करने के फायदे का भी आकलन किया जाना चाहिए। ई-रुपया अपनाने की प्रक्रिया को सही ठहराने के लिए आरबीआई की तरफ से दिए गए तर्कों को तीन हिस्से में वर्गीकृत किया जा सकता है, मसलन मौद्रिक और वित्तीय प्रणालियों पर प्रभाव, भुगतान बुनियादी ढांचे पर प्रभाव और कल्याणकारी नीतियों पर प्रभाव। ई-रुपया मौद्रिक प्रणाली को अधिक सक्षम और वित्तीय बाजारों को कई तरीकों से अधिक स्थिर बना सकता है। सबसे पहले, नकदी प्रबंधन की लागत कम करके ऐसा किया जा सकता है। आरबीआई के कॉन्सेप्ट नोट से यह पता चलता है कि भारत में नकदी प्रबंधन की लागत काफी ज्यादा है। सीबीडीसी की शुरुआत करने से इसे कम करने में मदद मिलेगी क्योंकि सीमांत लागत कम हो जाएगी। दूसरा तरीका, जिससे ई-रुपया मौद्रिक प्रणाली के लिए मददगार साबित होगी वह है डिजिटलीकरण। कॉन्सेप्ट नोट में कहा गया है कि भारत में कम मूल्य वाले लेन-देन में नकदी का काफी इस्तेमाल किया जाता है। ये लेन-देन ई-रुपये में किए जा सकते हैं अगर लेन-देन करने वालों की उचित तरीके से पहचान छिपाई जा सके। अर्थव्यवस्था में वित्तीय स्थिरता भी बढ़ेगी क्योंकि ई-रुपया, क्रिप्टो परिसंपत्तियों का विकल्प बनेगी। यह जनता को जोखिम मुक्त वर्चुअल मुद्रा देगा और इस विकल्प से लोग निजी वर्चुअल मुद्रा की अस्थिरता से बचे रह सकते हैं। कॉन्सेप्ट नोट में दावा किया गया है कि ई-रुपया दो तरह से बेहतर भुगतान ढांचा मुहैया कराएगा। पहला, यह एक अतिरिक्त माध्यम देकर घरेलू भुगतान प्रणाली में मदद करेगा। यह वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली के बाहर भी भुगतान सेवाएं प्रदान करता है। यह भुगतान विकल्पों की सीमा में विविधता ला सकता है, खासतौर पर ई-कॉमर्स के लिए। दूसरा, यह सीमा पार लेनदेन को तेजी से और किफायती बनाकर अंतरराष्ट्रीय भुगतान के बुनियादी ढांचे में मदद करता है। चूंकि भारत में दुनिया के कई हिस्सों से पूंजी भेजी जाती है ऐसे में अंतरराष्ट्रीय लेनदेन की लागत हमें काफी प्रभावित करती है। यह सीमा पार भुगतान में जटिलताओं को भी कम कर सकता है जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है। इन सभी के लिए निश्चित रूप से यह आवश्यक होगा कि अंतरराष्ट्रीय पहलुओं का ध्यान भी सीबीडीसी को तैयार करते वक्त रखा जाए। कॉन्सेप्ट नोट में यह तर्क भी दिया गया है कि ई-रुपया सब तक पहुंच के माध्यम से गरीब वर्गों का भी कल्याण करेगा। यह बैंकरहित और बैंक तक कम पहुंच वाली आबादी के लिए भी वित्तीय सेवाएं अधिक सुलभ बनाएगा। ऑफलाइन विकल्प के रूप में ई-रुपया से इंटरनेट के बिना भी लेनदेन किया जा सकेगा। कम इंटरनेट या बिना इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में इसकी पहुंच सुनिश्चित होगी। इसके अलावा, वित्तीय प्रणाली में बैंक सेवाओं से महरूम रहने वाली आबादी की डिजिटल पहचान बनने से, ई-रुपया इन लोगों को ऋण उपलब्धता की सुविधा दे सकता है। भारत के संदर्भ में आखिर ये तर्क कितने मजबूत हैं? यदि ई-रुपया निकट भविष्य में कानूनी नोट के रूप में सीमित भूमिका निभाता है तब मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थिरता के संदर्भ में ये तर्क मजबूत नहीं हैं। जब तक ई-रुपये का पर्याप्त इस्तेमाल नहीं होगा तब तक विशेष रूप से खुदरा रूप में नकदी प्रबंधन की लागत कम करना, डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना या निजी पूंजी की जगह इसका इस्तेमाल उतना महत्त्वपूर्ण नहीं होगा। हालांकि, अन्य तर्क मजबूत आधार पर हैं। सीमित उपयोग के साथ भी ई-रुपया भुगतान के बुनियादी ढांचे को अधिक प्रभावी बना सकता है। घरेलू क्षेत्र में, यह यूपीआई बुनियादी ढांचे का पूरक बन ऐसा कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सीबीडीसी का सीमित इस्तेमाल होगा और इसका उपयोग केवल बैंकों द्वारा किया जाएगा। फिलहाल सीबीडीसी के सीमित इस्तेमाल से सबको वित्तीय सेवाओं के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है क्योंकि अधिकांश खुदरा सीबीडीसी उन लोगों के लिए लक्षित है जो वित्तीय प्रणाली से बाहर हैं। ये तर्क ई-रुपये को अपनाने का समर्थन करते हैं। कई लोगों ने इस बात की ओर इशारा किया है कि सीबीडीसी के कई विकल्प हैं जो चर्चा किए गए सभी उद्देश्यों को पूरा कर सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि भारत के सीबीडीसी को अपनाने के लिए एक और मजबूत तर्क है जो कॉन्सेप्ट नोट से गायब है। डिजिटल युआन को स्थापित करने के लिए चीन द्वारा बड़े पैमाने पर जोर दिया जा रहा है और यह न केवल घरेलू मुद्रा के रूप में बल्कि अपने व्यापार और निवेश भागीदार वाले देशों के साथ सीमा पार भुगतान के लिए भी उपयोग किया जा रहा है। एक बार जब डिजिटल युआन एक वैश्विक मुद्रा के रूप में स्वीकार्यता हासिल कर लेगा तब भारतीय अर्थव्यवस्था में भी इसके आने में देर नहीं लगेगी। यह न केवल पारंपरिक अर्थों में डॉलर वाली समस्या को बढ़ाएगा बल्कि इससे डेटा सुरक्षा से जुड़े गंभीर जोखिम भी है। चीन के साथ भारत के विवादास्पद संबंधों को देखते हुए इस संभावना को सीमित करना भारत के हित में है। इन मुद्दों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका सीबीडीसी के सीमा पार इस्तेमाल पर वैश्विक नियम तय करने हैं। इन अंतरराष्ट्रीय नियमों के संदर्भ में अपनी बात रखने के लिए भारत को एक महत्त्वपूर्ण हितधारक के रूप में देखा जाना चाहिए। एक विश्वसनीय और कारगर सीबीडीसी के बिना यह एक कठिन कार्य साबित होगा। जाहिर है ई-रुपये को अपनाने के लिए अब यह सवाल प्रासंगिक नहीं है कि क्या यह संभव है बल्कि अब सवाल यह है कि ऐसा कब होगा। (लेखक इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ में आरबीआई चेयर प्रोफेसर हैं।)
