पिछले तीन दशकों के मुकाबले अगले दशक में वैश्विक इक्विटी के मुख्य वाहकों में बड़ा बदलाव आने का अनुमान है, जिससे इक्विटी निवेश के लिए राह चुनौतीपूर्ण हो सकती है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज (केआईई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते भूराजनीतिक जोखिम, ऊंची ब्याज दरें, चीन की अर्थव्यवस्था में कमजोरी और पर्यावरण आधारित ऊंची लागत ऐसे कारक हैं जिनसे भविष्य में पूंजी की लागत प्रभावित हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990 के दशक के शुरू में सोवियत संघ पतन के बाद वैश्विक शांति की अवधि को देखते हुए पिछले तीन दशक वैश्विक इक्विटी बाजारों के लिए काफी अच्छे रहे। हालांकि चीन और अमेरिका के बीच वैश्विक दबदबे के लिए बढ़ रहे टकराव की वजह से भूराजनीतिक तनाव पैदा हुआ है। चीन और रूस ने पिछले दशकों में अमेरिका और पश्चिमी दुनिया द्वारा कथित गलतियों को उलटने की दृढ़ता दिखाई है। ध्यान दिए जाने की बात यह है कि यूक्रेन युद्ध इसी का एक परिणाम है। पिछले 12-18 महीनों में मुद्रास्फीति में तेजी ने भी केंद्रीय बैंकों को कम ब्याज दरों से पीछे हटने के लिए बाध्य किया है। अब सरकारें वित्तीय संकट के दौरान वृद्धि को मजबूती प्रदान करने के लिए वित्तीय नीति पर अधिक निर्भर रह सकती हैं। केआईई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन में मंदी का भी वैश्विक जीडीपी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। वर्ष 1991 से 2021 तक वैश्विक वृद्धि में चीन का 24 प्रतिशत योगदान रहा है।
