सरकार अगले दौर की लाइसेंसिंग प्रक्रिया में नीलाम होने वाले 42 हाइड्रोकार्बन ब्लॉक के लिए उत्खनन लाइसेंस देने की तैयारी में है। हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने घोषणा की है कि 26 तेल एवं गैस ब्लॉक तथा 16 कोल बेड मीथेन ब्लॉक इस दौर में नीलामी के लिए उपलब्ध रहेंगे। तेल एवं गैस ब्लॉकों में खास रुचि देखने को मिल सकती है। इनमें से तीन जमीन पर हैं जबकि शेष 15 ब्लॉक काफी गहरे पानी में स्थित हैं। सरकार को साफतौर पर उम्मीद है कि इस नीलामी में निजी क्षेत्र काफी अच्छी भागीदारी करेगा। ह्यूस्टन में इस क्षेत्र के प्रतिनिधियों से मुलाकात के बाद केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टि्वटर पर लिखा, ‘वैश्विक तेल कंपनियां भारत में उत्खनन और उत्पादन में असाधारण रुचि का प्रदर्शन कर रही हैं।’ निश्चित तौर पर बिना पर्याप्त पूंजी तथा शीर्ष वैश्विक कंपनियों के तकनीकी निवेश के 2030 तक 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में उत्खनन का घोषित लक्ष्य हासिल कर पाना मुश्किल होगा। 2022 के आरंभ में केवल दो लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में उत्खनन हो रहा था। बहरहाल, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि इस क्षेत्र में अतीत के अनुभव बहुत उत्साह जगाने वाले नहीं रहे हैं। एक लंबे अंतराल के बाद और लाइसेंसिंग प्रणाली तथा मूल्य निर्धारण फॉर्मूले को लेकर गहन सार्वजनिक चर्चा के बाद नई हाइड्रोकार्बन उत्खनन और लाइसेंसिंग नीति की घोषणा की गई और जनवरी 2018 में पहले दौर में 55 ब्लॉक की नीलामी की गई। इस दौरान जो उदारताएं बरती गईं उनके मुताबिक कंपनियां खुद अपनी पसंद के ब्लॉक चुन सकती थीं और उन्हें विपणन तथा मूल्य निर्धारण के क्षेत्र में भी अधिक आजादी प्रदान की गई थी। इसके बावजूद विदेशी तेल कंपनियां इसमें रुचि नहीं दिखा रही थीं और भारत के निजी क्षेत्र में भी मुख्य तौर पर वेदांत की ओर से ही दिलचस्पी दिखाई जा रही थी। आखिरकार जिन 55 ब्लॉक की पेशकश की गई थी उनमें से वेदांत को 41 हासिल हुए और बाद के दौर में उसे 10 अन्य ब्लॉक हासिल करने में कामयाबी मिली। इसके अलावा अधिकांश ब्लॉक सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को मिले। जाहिर है नई नीति इसके लिए तैयार नहीं की गई है। जहां तक इस क्षेत्र में वैश्विक निवेश आकर्षित करने के प्रयासों की बात है तो यहां भी प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है। 2011 और 2021 के बीच तेल एवं गैस के (वेदांत द्वारा केयर्न इंडिया की खरीद को छोड़कर) 26 अरब डॉलर मूल्य के सौदे हुए। ताजा दौर के परिणाम भी ऐसे ही हो सकते हैं। इस वर्ष के आरंभ में जो आठ तेल एवं गैस ब्लॉक पेशकश के लिए थे उनमें से छह को एक खास सरकारी कंपनी की ओर से बोली मिली और बोली लगाने वाली वह इकलौती कंपनी थी। भारत में उत्खनन का क्षेत्र बढ़ाने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता है। मौजूदा ऊर्जा संकट ने एक बार फिर इस बात को रेखांकित कर दिया है कि तेल एवं गैस की आवश्यकता के मामले में विदेशी आपूर्ति पर निर्भर रहना बहुत जोखिमभरा साबित हो सकता है। जीवाश्म ईंधन की कीमतों में अनिश्चितता के इस दौर में भारत खुशकिस्मत रहा है कि उसके बाहरी खाते पर अधिक बोझ नहीं पड़ा। लेकिन जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो।यह आर्थिक सुरक्षा और नीतिगत दोनों लिहाज से अहम है कि तेल एवं गैस के बड़े हिस्से का उत्खनन और उत्पादन देश में किया जाए। बहरहाल, ऐसा केवल तभी हो सकता है जब सरकार की इस क्षेत्र में विदेशी निवेश जुटाने की बात के साथ-साथ समुचित रवैया भी अपनाया जाए। अतीत की बात करें तो केयर्न मामले में कर मांग, केजी-डी6 उत्पादन विवाद आदि निजी क्षेत्र की भागीदारी को लंबे समय से प्रभावित करते रहे हैं। बीपीसीएल के निजीकरण में नाकामी में भी निजी क्षेत्र की अरुचि को महसूस किया जा सकता है। इससे पता चलता है कि भारत में सुनिश्चित मुनाफे को लेकर बहुत अधिक विश्वास नहीं है। यदि सरकार को 2030 के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने हैं तो इस धारणा को बदलना होगा।
