अमेरिका में काम पर रखे जाने के दौरान उम्र और लिंग भेद के मामले में एक पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी द्वारा इन्फोसिस पर एक बार फिर मुकदमा दायर किया जा रहा है। वरिष्ठ उपाध्यक्ष (टैलेंट एक्विजिशन) जिल प्रेजीन द्वारा दायर इस मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि जब उन्होंने भेदभावपूर्ण कार्यों के बारे में ध्यान दिलाने का प्रयास किया, तो कंपनी ने भेदभाव किया और बदले की कार्रवाई की। प्रेजीन के इन दावों को खारिज करने का इन्फोसिस का प्रस्ताव न्यूयॉर्क की यूनाइटेड स्टेट्स डिस्ट्रिक्ट कोर्ट सदर्न डिस्ट्रिक्ट के एक जज ने खारिज कर दिया। जहां एक तरफ अदालत ने इन्फोसिस और अन्य लोगों का मुकदमा खारिज करने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया, वहीं दूसरी ओर अदालत ने प्रतिवादियों को इस आदेश की तारीख के 21 दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। इस संबंध में इन्फोसिस को भेजे गए ईमेल का समाचार लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिल पाया। बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा देखे गए दस्तावेज के अनुसार यह मामला इन्फोसिस, परामर्श प्रमुख और वरिष्ठ उपाध्यक्षस मार्क लिविंगस्टन तथा डैन अलब्राइट ऐंड जेरी कर्ट्ज के पूर्व साझेदारों के खिलाफ दर्ज किया गया है। याचिका के विवरण के अनुसार लिविंगस्टन और अन्य साझेदारों ने प्रेजीन को भारतीय मूल के सलाहकारों, बच्चों वाली महिलाओं और 50 वर्ष के आसपास या इससे अधिक उम्र वाले उम्मीदवारों को नियुक्त नहीं करने के लिए कहा था।प्रेजीन को वर्ष 2018 में काम पर रखा गया था। 59 वर्षीय प्रेजीन टैलेंट एक्विजिशन की उपाध्यक्ष के रूप में काम कर रही थीं। प्रेजीन का तर्क है कि खुद को नए पद के अनुरूप ढालने के लिए उन्होंने इन्फोसिस के साझेदारों के साथ बैठकें कीं ताकि उनकी भर्ती की जरूरतों और वरीयताओं को सीखा-समझा जा सके। उन्होंने कहा ‘इन बैठकों में साझेदारों ने कथित रूप से भारतीय मूल के अतिरिक्त सलाहकारों, जिन महिलाओं के घर पर बच्चे हों और 50 वर्ष से अधिक उम्र वाले उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिए अनिच्छा जताई थी।’ इससे पहले भी कर्मचारी आईटी कंपनियों पर मुकदमा दायर करते रहे है। मिसाल के तौर पर वर्ष 2020 में डैविना लिंग्विस्ट ने कंपनी के खिलाफ गवाही देने की वजह से निकाले जाने के बाद इन्फोसिस पर मुकदमा दायर किया था। वर्ष 2017 में जे पाल्मर ने यह आरोप लगाते हुए मुकदमा दायर किया था कि इन्फोसिस ने एच-1 बी के बजाय बी-1 वीजा पर लोगों को काम पर रखा था। बाद में कंपनी ने मामला सुलझा लिया। टीसीएस और विप्रो में भी ऐसे मुकदमे देखे गए हैं।
